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सुपौल में हर साल तटबंध के अंदर बसे लोगों के घर और सामान बहाकर ले ही जाती है कोसी, इस साल ये है तैयारी

सुपौल में हर साल कोसी के बाढ़ से करोड़ों रुपये का नुकसान होता है। हर साल तटबंध के अंदर बसे लोगों के घर फसल आदि तो बहाकर ले ही जाती है जरा सा चूक होते ही लोगों का बह जाना भी चलता रहता है।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Wed, 16 Jun 2021 04:20 PM (IST)Updated: Wed, 16 Jun 2021 04:20 PM (IST)
सुपौल में हर साल तटबंध के अंदर बसे लोगों के घर और सामान बहाकर ले ही जाती है कोसी, इस साल ये है तैयारी
सुपौल में हर साल कोसी के बाढ़ से करोड़ों रुपये का नुकसान होता है। हर

सुपौल [भरत कुमार झा]। कोसी की प्रकृति ही बहना है। इस बहाव में क्या बह जाए कहा नहीं जा सकता। जो सामने आता है कोसी उसे बहाते हुए ले जाती है। हर साल तटबंध के अंदर बसे लोगों के घर, फसल आदि तो बहाकर ले ही जाती है, जरा सा चूक होते ही लोगों का बह जाना भी चलता रहता है। कोसी में बाढ़, कटाव, बचाव और राहत के नाम पर हर वर्ष करोड़ों की राशि आती है। विभिन्न मदों में राशि खर्च की जाती है। पूरे बरसात बहने-बहाने को रोकने को लेकर जंग चलती है। यह रुकना है नहीं सो नहीं रुकता। जब इतना कुछ बह जाता है तो सरकारी राशि की क्या औकात, यूं ही बहता रहता है। अगर नहीं बहता तो जितनी राशि बाढ़ राहत के नाम पर अबतक बहाई गई उससे इसका स्थाई समाधान हो जाता।

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फ्लड फाइङ्क्षटग के नाम पर चलता खेल

कोसी अपनी धारा बदलने के लिए मशहूर है। कोसी की यही प्रकृति आज तटबंध के लिए अभिशाप साबित हो रही है। कोसी की एक धारा लगातार विगत कई वर्षों से पूर्वी कोसी तटबंध के सटे समांतर बह रही है। बरसात का मौसम आता है, विभाग अपने को अलर्ट बताने लगता है। नदी में जलश्राव बढऩे के साथ ही कोसी तटबंध व स्परों के विभिन्न विन्दुओं पर अपना दबाव बनाने लगती है। और फिर क्या कोसी ने खतरे का निशान छुआ और विभाग तथा सरकार राहत और बचाव कार्य में जुट जाता है। हाय-तौबा मच जाती है। विभाग दिन-रात राहत एवं बचाव कार्य में जुटा तटबंध सुरक्षित है का राग अलापने लगता है और सरकार इस कार्य के लिए कोई कोर-कसर छोडऩा नहीं चाहती। बरसात खत्म बात खत्म। बाढ़ से पहले और बाढ़ के बाद सभी रिलैक्स मोड में होते हैं। निदान की दिशा में कोई गंभीर नहीं दिखता सब के सब बाढ़ और बचाव की तैयारी में जुटे होते हैं।

हर वर्ष जगह लगती रही राशि

कोसी पर राजनीति की गाथा आजादी के बाद से ही प्रारंभ हो गई। उन्मुक्त बहती कोसी को तटबंधों के बीच कैद कर दिया गया। कोसी को बहाने के लिए जो रास्ते बनाए गए वहां भी राजनीति आ गई। कोसी बराज से कोपरिया तक के कई गांव इस राजनीति के शिकार हो गए। फिर पुनर्वास की राजनीति शुरू हो गई। तटबंध से संसद तक आवाज गूंजने लगी। संसद के कई टर्म बदल गए लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो सका। हर वर्ष बाढ़ और बचाव के नाम पर सरकारी राशि जगह लगती रही।

इन मदों में होता खर्च

खाद्यान्न की आपूर्ति, जनसंख्या निष्क्रमण, चलंत स्वास्थ्य केंद्र, क्षतिग्रस्त सड़क, पुलों की मरम्मत, नावों की मरम्मत, संतप्त परिजनों को अनुग्रह अनुदान, पशुचारे की पूर्ति, पशुओं के लिए दवा, प्रभावितों को बर्तन एवं कपड़ा की आपूर्ति, कृषि इनपुट क्षतिग्रस्त फसलों के लिए, बाढ़ से क्षतिग्रस्त मकानों की मरम्मत के लिए, पुनस्र्थापन के लिए, भूमि से रेत हटाए जाने इत्यादि के लिए राशि आवंटित होती है और खर्च किए जाते हैं। उधर बांध की भी सुरक्षा की जानी है सो विभाग बांध के बचाव के लिए एड़ी-चोटी एक किए होता है।

कुछ वर्षो के कोसी के नाम पर किए गए खर्च का अवलोकन करने से कुछ स्थिति स्पष्ट हो सकती है।

राहत व बचाव के नाम पर खर्च

2008-09-

आवंटित राशि-220737 लाख

खर्च-15715.92704 लाख

09-10

आवंटित राशि-210.1415 लाख

खर्च-123.09696 लाख

10-11

आवंटित राशि-3668.57980 लाख

खर्च-3407.54720 लाख

11-12

खर्च- 325 लाख

12-13

आवंटित राशि-20 लाख

खर्च-18 लाख

बांध के सुरक्षा और बचाव में हुए खर्च

2011-12 में 61.46 करोड़

2012-13 में 14012.258 लाख

2013-14 में 72.65 करोड़

2014-15 में 15 करोड़ 61 लाख

2015-16 में 15.18 करोड़

2016-17 में 11 करोड़ 23 लाख

2017-18 में 871 लाख  


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