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पूजा पंडालों के निबंधन में पर्यावरण का ध्यान जरूरी

मूर्ति विसर्जन के दौरान गंगा नदी प्रदूषित नहीं हो, इसको लेकर बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद् ने सूबे के जिलाधिकारियों को पत्र भेजा है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 14 Sep 2018 02:15 PM (IST)Updated: Fri, 14 Sep 2018 02:15 PM (IST)
पूजा पंडालों के निबंधन में पर्यावरण का ध्यान जरूरी
पूजा पंडालों के निबंधन में पर्यावरण का ध्यान जरूरी

भागलपुर [नवनीत मिश्र]। मूर्ति विसर्जन के दौरान गंगा नदी प्रदूषित नहीं हो, इसको लेकर बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद् ने सूबे के जिलाधिकारियों को पत्र भेजा है। पर्षद् ने जिलाधिकारियों से अनुरोध किया है कि पूजा स्थलों के निबंधन के समय ही यह तय कर दिया कि मूर्ति और पंडाल के निर्माण के दौरान वैसी मिट्टी और रंग का प्रयोग करें, जिससे प्रदूषण न हो। बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद् ने राज्य के सभी जिला पदाधिकारियों को पत्र भेजकर कहा है कि मू‌िर्त्त निर्माण एवं विसर्जन की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। पहले देवी-देवताओं के पूजन के लिए सिर्फ उपलब्ध प्राकृतिक वस्तुओं का प्रयोग किया जाता था। मू‌िर्त्तयॉं भी चिकनी मिट्टी की बनाई जाती थी एवं उन्हे प्राकृतिक रंगो से ही रंगा जाता था। कालांतर में मिट्टी के अतिरिक्त प्लास्टर ऑफ पेरिस, सजावट के लिए धातुओं के आभूषण, तैलीय पदार्थ, सिंथेटिक रंगों, विषाक्त रसायनों का उपयोग किया जाने लगा है। पूजन के पश्चात ऐसी मूर्तियों के जल स्त्रोतों में विसर्जन से जल प्रदूषण की समस्या बढ़ी है।

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उच्च न्यायालय, मुम्बई के निर्देशों के अनुपालन में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली द्वारा त्योहारों के दौरान मू‌िर्त्त व अन्य पूजन सामग्री के जल निकायों में विसर्जन के लिए दिशा-निर्देश बनाए गए हैं। इस संदर्भ में बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद् ने राज्य के सभी जिला पदाधिकारियों से अनुरोध किया है कि पूजा पंडालों के निबंधन के समय ही उपरोक्त नियमों के दृढ़ता पूर्वक अनुपालन के आवश्यक निर्देश देने की कृपा करेंगे। सभी संबंधित से इस आशय का शपथ-पत्र भी प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही संबंधित हितधारकों के बीच इन नियमों के पालन के लिए समुचित प्रचार-प्रसार की व्यवस्था करना चाहेंगे।

मूर्ति निर्माण : मूर्ति बनाने में प्लास्टर ऑफ पेरिस, पकाए गए मिट्टी आदि का उपयागे न कर पारंपरिक मिट्टी तथा इको-फ्रेंडली वस्तुओं का ही प्रयोग करना चाहिए।

मूर्ति पेंटिंग : मूर्ति रंगने के लिए पानी में घुलनशील तथा विष-रहित प्राकृतिक रंजकों (डाय) का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। रंगाई में उपयोग किये जाने वाले विषैले रसायनों जिनका जैविक विधि से नाश नहीं किया जा सकता हो (बायो-डेग्राडेबल)का प्रयोग पूर्णत: वर्जित है।

मूर्ति विसर्जन : जल स्त्रोतों में मूर्ति-विसर्जन से पूर्व कागज व प्लास्टिक से बने सजावट की सामग्री व पूजन सामग्री जैसे फूल आदि को हटा लेना चाहिए। जैविक क्रिया से नष्ट हो जाने वाली सामग्री (बायो-डेग्राडेबल) को अलग कर उनका उपयोग स्वास्थ्यकर भू-भराई आदि कार्यो में किया जाना चाहिए। मूर्ति विसर्जन के स्थल का पूर्व से घेराबंदी कर, चिंहित कर उस स्थल के तल में सिंथेटिक लाइनर का उपयोग किया जाना चाहिए। मूर्ति-विसर्जन के पश्चात 48 घटे के भीतर सिंथेटिक-लाइनर समेत मूर्ति के अवशेष आदि को हटा लेना चाहिए। बास एवं लकड़ी के टुकड़े आदि यदि कोई हो, का पुन: उपयोग किया जाना चाहिए। मिट्टी आदि का निपटान भू-भराई में किया जाना चाहिए। मूर्ति-विसर्जन क्षेत्र में पूजा की सामग्रियों अथवा अन्य ठोस कचरों को जलाने पर रोक होनी चाहिए।

मालूम हो कि गणेश पूजा, विश्वकर्मा पूजा, दुर्गा पूजा, लक्ष्मी पूजा, सरस्वती पूजा आदि अवसरों पर विभिन्न पंडालों में मूर्तियों का निर्माण कर पूजा किया जाता है। मूर्ति के निर्माण में पर्यावरण के दृष्टिकोण से वर्जित सामग्री का भी उपयोग कर दिया जाता है। साथ ही मूर्तियों को विभिन्न जल स्त्रोतों यथा-नदी, तालाब, झील आदि में गैर-योजनाबद्ध तरीके से विसर्जित किया जाता है, जिससे जल स्त्रोतों के प्रदूषित होने की संभावना काफी बढ़ जाती है।


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