रोजेदारों के लिए तोहफा है ईद, गरीबों को भी खुशी में करें शामिल
इस्लाम के पांच फर्ज में रमजान का रोजा सबसे अहम है। ईद की खुशी के मौके गरीबों को भी शामिल करना चाहिए।
भागलपुर [कामरान हाशमी]। इस्लाम के पांच फर्ज में रमजान का रोजा सबसे अहम है। रोजा सभी वयस्कों पर फर्ज है। रमजान का रोजा रखने वालों से अल्लाह खुश होता है। पूरा रोजा रखना और उस दौरान ज्यादा से ज्यादा इबादत और तिलावत करने वालों के लिए ईद के रूप में अल्लाह की ओर से दिया गया नायाब तोहफा ईद है। इसलिए लोग ईद की नमाज पढ़कर एक दूसरे से गले मिलकर मुबारकबाद देते हैं।
सिर्फ नमाज पढ़कर गले मिलना ईद नहीं है। गरीब, मजबूर और लाचारों के लिए भी खुशियां लेकर ईद आता है। संभ्रांत लोग ईद की नमाज के पूर्व फितरा (शरीर का सदका) निकालते है। ये राशि ढाई किलो गेहूं (करीब 50 रुपये) की कीमत के बराबर होती है। फितरा परिवार के सभी सदस्यों का निकाला जाता है। इन पैसों पर सिर्फ गरीब, लाचार और बेसहारा लोगों का अधिकार होता है। गरीब, लाचार और बेसहारा लोगों को दें जकात के पैसे जकात भी पांच फर्ज में से एक है। दौलतमंद लोगों की संपत्ति (नकद) और सोने-चांदी की ढाई फीसद राशि जकात के रूप में निकाली जाती है। जिनके पास साढ़े बावन तोला (भर) या इससे अधिक चांदी है और सात तोला या इससे अधिक सोना है तो उसकी कीमत की राशि गरीब, लाचार और बेसहारा लोगों में बांट दें। आपकी ईमानदारी के पैसों से उनलोगों की ईद होती है। आपकी खुशियों में वैसे गरीब लोग भी शामिल हो जाते हैं जो खुद के पैसों से ईद में न तो नया कपड़ा बना सकते हैं न ही सेवई और लजीज भोजन कर सकते हैं। ईद में इत्र लगाना और मीठा खाना सुन्नत है
साफ सुथरे कपड़े पहनकर और इत्र लगाकर ईद की नमाज पढ़ना सुन्नत है। ईद की नमाज के बाद लोग एक दूसरे के घर मुबारकबाद देने जाते हैं। मेजबान उनका स्वागत इत्र लगाकर और मीठा खिलाकर करते हैं। इस खास मौके पर कई तरह के मीठे व्यंजन बनाए जाते हैं। सेवइयां और शीर खुरमा उनमें खास हैं।
इस बार अलग दिखेगा त्योहार
इस समय भारत समेत पूरा विश्व कोरोना के प्रकोप से जूझ रहा है। समूचा भारत लॉकडाउन पर है। यूं कहें, जीवन ठहर सा गया है। इस कारण सभी जगहों की मस्जिदों और खनकाहों में समूह में नमाज नहीं पढ़ी जा रही। इस रमजान में चार शुक्रवार आए। शुक्रवार की नमाज भी मस्जिदों में नहीं पढ़ी गई। कल रमजान का अंतिम शुक्रवार था, जिसे अलविदा भी कहते हैं। उस खास मौके पर भी मस्जिदों में अलविदा की नमाज नहीं पढ़ी गई। लोगों ने व्यक्तिगत तौर से घरों में ही जोहर की नमाज के रूप में अलविदा की नमाज पढ़ी। दो दिनों बाद ईद है। ईद की नमाज भी घरों पर ही शुकराने की नमाज के रूप में व्यक्तिगत रूप से पढ़ी जाएगी। रमजान में सूनी रहीं मस्जिदें
कोरोना जैसे वायरस ने पूरे विश्व को इस तरह जकड़ लिया मानों जिदगी का कोई वजूद ही न हो। लोग घरों में कैद हो गए। सड़कें सुनसान हो गईं। बाजार, वाहन परिचालन, रेल, हवाई सेवा सभी लॉकडाउन के कारण बंद रहे। इन सबों के साथ मस्जिद और खानकाह भी सुना पड़ गया। शायद इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ हो जब रमजान और ईद में नमाज मस्जिदों, ईदगाहों और खनकाहों में नहीं पढ़ी गई हो। जुमा और ईद की नमाज समूह में पढ़ी जाती है। कोरोना का संक्रमण समूह में तेजी से फैलता है। इस कारण सरकार ने उस अनजान संक्रमण से बचने के लिए मस्जिदों और खनकाहों में समूह में नमाज अदा करने पर रोक लगा दी। सरकार के इस निर्णय के बाद उलेमा और गद्दीनशीनों ने भी लोगों से मस्जिदों में नमाज नहीं पढ़ने का आह्वान किया।
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अपने-अपने घरों में पढ़ें नमाज
मुल्लाचक शरीफ स्थित खानकाह शहबाजिया के गद्दीनशीं सैयद शाह इंतखाब आलम शाहबाजी मियां साहब ने कहा कि लॉकडाउन लगने के बाद हमने समय-समय पर लोगों से इस वबा से परहेज करने की अपील भी की। वर्तमान हालात को देखते हुए ईद की दो रेकअत नमाज घरों में शुकराने की नमाज के रूप में अदा करें। ऐसे हालात में मस्जिद, ईदगाह और खानकाह में ईद की नमाज नहीं पढ़ी जा सकती।