मशरूम का सुखौता से आर्थिक उन्नति, आप भी जानिए... रामवती का यह प्रयोग
मशरूम महिला के नाम से प्रसिद्ध है राघोपुर की रामवती देवी। अन्य महिलाओं को भी मशरूम उत्पादन के लिए कर रही प्रेरित। आज इनके कारण सहरसा में लोग मशरूम की खेती कर आर्थिक समृद्धि प्राप्त कर रहे हैं।
जागरण संवाददाता, सुपौल। करीब 10 वर्ष पूर्व जब रामवती देवी की शादी सिमराही बाजार के दीनादास टोले में हुई थी तो लोगों को यह पता नहीं था कि कभी इनके कार्य से इस परिवार का नाम रोशन होगा। आरंभ काल में तो वह भी अन्य महिलाओं की तरह चौखट के अंदर समय गुजार रही थी। उनका अधिकांश समय घर के काम में ही बीत जाता था। कुछ दिनों बाद इन्होंने खेती में हाथ आजमाना शुरू किया। खेती शुरू करने के बाद मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण लिया और एक दिन ऐसा आया कि मशरूम महिला के नाम से प्रसिद्ध हो गई। आज वह खुद तो मशरूम उत्पादन कर ही रही है साथ-साथ गांव की अन्य महिलाओं को भी इसके लिए प्रेरित कर रही हैं। वे गांव की अन्य महिलाओं को कृषि विज्ञान केंद्र राघोपुर तक प्रशिक्षण को ले जाती हैं जहां उन्हें प्रशिक्षण दिलाकर मशरूम उत्पादन को ले प्रेरित करती हैं। देखादेखी गांव की कई अन्य महिलाएं भी अब मशरूम उत्पादन कर स्वावलंबन की राह पर चल पड़ी है। कृषि विज्ञान केंद्र राघोपुर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. मनोज कुमार मानते हैं कि रामबती देवी के प्रयास से करीब डेढ़ दर्जन महिलाएं मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण ले चुकी हैं। आने वाले दिनों में यह छोटा सा टोला मशरूम क्लस्टर के रूप में प्रसिद्ध होगा।
मशरूम उगाना है आसान
मशरूम महिला के नाम से विख्यात रामवती बताती हैं कि वह कम पढ़ी-लिखी है। उनकी शादी एक किसान परिवार में हुई। पति की नौकरी नहीं लगी तो वे खेती करने लगे। खेती से किसी तरह परिवार तो चल जाता था परंतु अन्य जरूरतों के लिए उन्हें आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता था। इधर गांव की रीति-रिवाज ऐसी थी कि वे कृषि कार्य में पति का भरपूर सहयोग भी नहीं कर पाती थी। एक दिन पति ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र और परियोजना आत्मा के माध्यम से महिलाओं को मशरूम खेती का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जिद कर पति को खुद के प्रशिक्षण के लिए तैयार किया। प्रशिक्षण में उन्हें पता चला कि मशरूम उगाना बहुत आसान है। प्रशिक्षण बाद उन्होंने खेती की शुरुआत की।
एक सौ थैले में की है खेती
फिलहाल उन्होंने घर में एक सौ थैला में ऑस्टर मशरूम की खेती की है। मशरूम को वे पति के माध्यम से बाजारों में बेचते हैं। मशरूम से प्रति माह 20-25 हजार की कमाई होती है। उत्पादन के अनुसार खपत नहीं होने पर मशरूम का सुखौता बना लेती है। इससे एक तो मशरूम बर्बाद नहीं होता है और इसका बाजार मूल्य भी अधिक मिलता है। लोग इसका उपयोग अचार, पकौड़ा आदि में करते हैं। वे बताती हैं कि नेपाल के बाजारों में सुखौता की काफी डिमांड है।
देखा है बड़ा सपना
रामबती बताती हैं कि उनका सपना मशरूम उत्पादन को बड़ा बनाना है। वह गांव की कई महिलाओं को इसका प्रशिक्षण भी दिलवा चुकी हैं। आने वाले दिनों में मशरूम को सामूहिक खेती का रूप दिया जाएगा ताकि गांव की अन्य महिलाएं भी इस खेती से जुड़कर स्वाबलंबन की ओर बढ़ सके। बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र राघोपुर द्वारा समय-समय पर तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराई जाती है जिससे मदद मिलती है।