पृथ्वी दिवस : प्रकृति खुद करने लगी मरम्मत, बदल रही धरती की आबोहवा, महज एक माह में गंगा का पानी भी साफ हुआ
कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन है। हर प्रकार की यातायात व्यवस्था रोक दी गई है। फैक्ट्रियां बंद है। इस कारण प्रकृति स्वच्छ हे गई है।
भागलपुर [नवनीत मिश्र]। लॉकडाउन में जैसे प्रकृति अपने कल-पुर्जों की मरम्मत कर रही हो। गंगा का पानी साफ हो गया है। हवा में प्रदूषण की मात्रा भी कम हो गई है। एक महीने के दौरान शहर की आबोहवा में यह परिवर्तन लोगों को भी सोचने को मजबूर कर रहा है कि थोड़ी चिंता कर लें तो धरती का रंग कुछ और ही होगा।
सड़कों पर गाडिय़ों की आवाजाही बंद है, सो धुएं से होने वाला प्रदूषण भी अभी नहीं के बराबर है। 23 मार्च से आपातकालीन सेवा को छोड़ कर अन्य सभी गाडिय़ों का परिचालन बंद है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के अुनसार शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स 90 पीपीएम से भी कम हो गया है। सबौर मौसम विभाग के अनुसार पिछले साल की गर्मी में शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स 400 पीपीएम से ऊपर पहुंच गया था। अभी बाजार, मॉल और फैक्ट्री आदि भी बंद हैं। इस कारण शहर में कूड़े की मात्रा आधी हो गई है। सामान्य दिनों में जहां 250 मीट्रिक टन कूड़ा प्रतिदिन निकलता था, अब घटकर करीब 125 मीट्रिक टन रह गया है। संक्रमण के भय से भी लोग अपने घरों के आसपास सफाई पर ध्यान दे रहे हैं।
गंगा में भी 50 से 60 फीसद तक का सुधार दिख रहा है। दूषित जल का आना बंद है। जल में ऑक्सीजन की मात्रा छह से सात प्रति लीटर मिलीग्राम से बढ़कर 10 के करीब पहुंच गई है। सुल्तानगंज से कहलगांव तक पहले हर दिन करीब दो सौ शवों का दाह संस्कार होता था। अब इसकी संख्या भी 10 से 20 रह गई है। गंगा निर्मल हुई तो डॉल्फिन भी दिख रही है।
हवा में प्रदूषण की मात्रा काफी कम हुई है। अभी 30 से 40 पीपीएम ही धूलकण की मात्रा है, जो गर्मी के दिनों में 400 तक पहुंच जाती थी। इसकी बड़ी वजह गाडिय़ों का परिचालन बंद होना है।
प्रो. बीरेंद्र कुमार, मौसम विज्ञानी, बीएयू सबौर
गंगा नदी का पानी साफ दिख रहा है। शव नहीं जलने, कपड़े आदि नहीं धोने, कूड़ा-कचरा नहीं गिरने के कारण गंदगी कम हुई है। सीवरेज पर लगाम लग जाए तो गंगा और साफ दिखेगी। धरती के प्राकृतिक स्वरूप को बचाने के लिए यह करना ही होगा। - प्रो. विवेकानंद मिश्र, पूर्व विभागाध्यक्ष, रसायन विज्ञान विभाग, टीएमबीयू