तब नरेंद्र सिंह ने सीएम के मंच से ही ठोक दिया था ताल, प्रत्याशी चयन को लेकर थे नाराज
नरेंद्र ने सीएम के मंच से ही ठोक दिया था ताल उदय नारायण चौधरी को उम्मीदवार बनाए जाने से नाराज थे नरेंद्र। जमानत जब्त करा देने का किया था ऐलान। उक्त घटना के बाद से ही नरेंद्र सिंह की राजनीतिक धमक की उल्टी गिनती शुरू हो गई।
जमुई [अरविंद कुमार सिंह]। खैरा की एक चुनावी सभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष ही तब के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह ने मंच से ही जदयू प्रत्याशी की जमानत जब्त करा देने की चुनौती दे डाली थी। जांघ पर ताल ठोकते हुए। मंत्री का अक्खड़पन देख मुख्यमंत्री और मंचासीन नेता हैरान थे। भीड़ स्तब्ध रह गई।
बात लोकसभा चुनाव 2014 की है। तब एनडीए से अलग होने के बाद जदयू वामपंथी दलों के साथ चुनाव मैदान में था। मुख्यमंत्री जदयू प्रत्याशी उदय नारायण चौधरी के लिए खैरा में चुनावी सभा करने आए थे। तब चर्चा थी कि जमुई लोकसभा क्षेत्र के प्रत्याशी चयन में नरेंद्र सिंह को तवज्जो नहीं दी गई। इसी बात से नरेंद्र सिंह नाराज चल रहे थे। इसी नाराजगी में मंच से ही उन्होंने ताल ठोक कर उदय नारायण चौधरी की जमानत जब्त करा देने की चुनौती दे डाली।
उक्त घटना के बाद से ही नरेंद्र सिंह की राजनीतिक धमक की उल्टी गिनती शुरू हो गई। रही-सही कसर इस चुनाव में दोनों बेटे को एनडीए से बेदखल कर पूरी कर दी गई। हालांकि उन्होंने अपने दोनों की जीत खूंटा गाड़कर जमुई में कैंप करने का ऐलान कर दिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि राजनीति में नेतृत्व के निर्णय को चुनौती देने की हिम्मत जुटाने वाले नरेंद्र सिंह की मुख्यधारा की राजनीति में पुनर्वापसी होती है या फिर उनके राजनीतिक अवसान की पटकथा इस चुनाव में लिख दी जाएगी।
35 वर्षों की राजनीति में पहली बार मुख्यधारा से कटे नरेंद्र
35 वर्षों की राजनीति में 2020 का चुनाव पहला मौका है जब नरेंद्र सिंह मुख्यधारा से दूर खड़े दिख रहे हैं। 1985 में चकाई विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा में कदम रख राजनीति की शुरुआत करने वाले नरेंद्र सिंह ने 1995 को छोड़ कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। तब वे चकाई से जनता दल के उम्मीदवार थे। 2000 के विधानसभा चुनाव में तो उन्होंने चकाई के साथ-साथ जमुई से भी जीत दर्ज कराई। जमुई से इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव में सुशील कुमार सिंह उर्फ हीरा जी की जीत सुनिश्चित करने का सेहरा भी उनके ही माथे बंधा था। इसके अलावा जमुई को जिला बनाने में कामयाबी हासिल करने से लेकर अन्य उपलब्धियां राजनीतिक वजूद के दम पर हासिल कराई। लेकिन वक्त का पहिया ऐसा घूमा कि वे प्रदेश के प्रमुख दोनों गठबंधन में से किसी का भी हिस्सा नहीं रहे। आखिरकार तीसरे गठबंधन से पुत्र अजय प्रताप को सिंबल मिला, जबकि दूसरे पुत्र सुमित कुमार सिंह चकाई से निर्दलीय ही मैदान में हैं।