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Durga Puja 2020 : आपदा-विपदा तो खूब देखा बजुर्गों ने भी, पर नहीं देखा ऐसा दशहरा

Durga Puja 2020 प्राकृतिक आपदा को लेकर संवेदनशील इस जिले में बाढ़ व तूफान जैसी आपदा दशहरे के रंग को कई बार फिका कर चुकी है। दशहरे की धूम पर कभी नहीं लगा था ब्रेक कमर भर पानी में भी उमड़ी थी भीड़।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Mon, 26 Oct 2020 09:11 AM (IST)Updated: Mon, 26 Oct 2020 09:11 AM (IST)
Durga Puja 2020 : आपदा-विपदा तो खूब देखा बजुर्गों ने भी, पर नहीं देखा ऐसा दशहरा
कोरोना और अन्‍य प्राकृतिक आपदाओं में दुर्गा पूजा का आनंद फीका हुआ।

कटिहार, जेएनएन। शारदीय नवरात्र का आयोजन सनातन से हो रहा और इसका इंतजार लोगों को सालोंभर रहता है। आराधना हो या उमंग हर आयुवर्ग के लिए दशहरे का उत्साह अलग होता है। यही वजह है कि नवरात्र के पूर्व और नवरात्र के बाद तक लोग दशहरे के रंग में डूबे रहते हैं। इस बीच लोगों ने कई आपदा-विपदा और महामारी का भी सामना किया है, लेकिन दशहरे का ऐसा स्वरूप बुजुर्गों ने भी कभी नहीं देखा था। दशहरे पर सांकेतिक पूजा का आयोजन तो किया गया है, लेकिन इसके बाद लगाई गई पाबंदियां लोगों को जरुर खल रही है। पहली बार वृहद आयोजन और पंडाल के वृहद निर्माण पर रोक लगाई गई है।

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प्राकृतिक आपदा को लेकर संवेदनशील इस जिले में बाढ़ व तूफान जैसी आपदा दशहरे के रंग को कई बार फिका कर चुकी है। फैलिन जैसे तूफान में भी दशहरे के मौके पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी थी। जबकि कई बार बाढ़ की आपदा में लोग कमर और घुटने पर पानी से गुजरकर दशहरे का उत्साह मना चुके हैं, लेकिन कोरोना के कहर ने पहली बार दशहरे के उमंग को पूरी तरह फीका कर दिया है। सालभर से मेले व झूले का इंतजार कर रहे बच्चे जहां उदास है, वहीं बुजुर्गों में भी दशहरे के मौके पर जमने वाली चौकरी के नहीं सजने का मलाल है। यही वह माध्यम था जब सभी लोग मिलकर एक साथ उत्सव मनाते और आनंद से अभिभूत होते थे। कोरोना काल का दशहरा इतिहास के पन्नों पर भी अमिट रहेगा। 90 वर्षीय रामजतन मंडल व 95 वर्षीय कामता झा ने कहा कि दशहरा में यह स्थिति उनके जीवन का पहला अनुभव है।

बुजुर्गों ने भी नहीं देखी थी ऐसी विरानगी

82 वर्षीय बुजुर्ग सत्यनारायण विश्वास ने बताया कि उन्होंने अपने जीवन में कई परेशानियां करीब से देखी है, लेकिन दशहरा का फिका उत्साह पहली बार है। राम बहादूर महतो बताते हैं कि दशहरे का स्वरूप तो बदला है, लेकिन वृहत आयोजन पर रोक पहली बार देखी है। 85 बसंत देख चुके प्रभु नारायण बताते हैं कि कई बार दशहरे में बाढ़ व तूफान की तबाही तो देखी है, लेकिन इसके बाद भी दशहरे की धूम फिकी नहीं पड़ी थी। सुदर्शन चौहान की माने तो दशहरे का ऐसा आयोजन उन्होंने पहली बार देखा है। सुरक्षा तक को ठीक है, लेकिन सालभर के इस पर्व के नियम लचिला होना चाहिए।

उत्साह के साथ रोजगार को भी लगा तगड़ा झटका

दशहरे की वीरानगी ने उत्साह के साथ रोजगार को भी झटका दिया है। जिले में लगभग पांच दर्जन स्थानों पर दशहरे में वृहद मेला का आयोजन होता रहा है। इसके सहारे जहां लोगों को रोजगार मिलता था वही चार दिनों तक लोग उमंग में डूबे रहते थे। खेल तमाशा और झूला व दुकान लगाकर कई परिवारों के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ दशहरे से ही होता था। इस बार सीमित आयोजन के कारण जहां उनका रोजगार छीना है वहीं कपड़े से लेकर सौंदर्य प्रशाधन के कारोबार को भी तगड़ा झटका लगा है।


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