गंगा तट पर डॉल्फिन कर रहीं अठखेलियां, गदगद हो रहे लोग
गंगा नदी का पानी मुहल्लों में सड़कों के करीब पहुंच गया है। इससे गंगा नदी में डॉल्फिन की अठखेलियां करते देख लोग गदगद हो रहे हैं।
भागलपुर, जेएनएन। गंगा नदी का जलस्तर कई स्थानों पर सड़कों के बराबर पहुंच गया है। इससे गंगा तट पर हर रोज डॉल्फिन को अठखेलियां करते आसानी से देखा जा सकता है। डॉल्फिन को देखने भारी संख्या में आसपास के जिलों के लोग भी पहुंच रहे हैं। हर कोई डॉल्फिन को कैमरे में कैद कर रहे हैं।
राष्ट्रीय जलीय जीव गांगेय डॉल्फिन के प्रति अब लोगों की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। शंकर टॉकीज से लेकर मानिक सरकार घाट तक डॉल्फिनों की अठखेलियां आसानी से देखी जा सकती है। लोग गंगा नदी के विहंगम दृश्य के साथ-साथ डॉल्फिनों को मस्ती करते देख रहे हैं।
60 किमी लंबा डॉल्फिन सेंचुरी क्षेत्र
1990 में बिहार सरकार ने सुल्तानगंज से कहलगांव तक गंगा नदी के 60 किलोमीटर के क्षेत्र को विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन सेंचुरी के रूप में घोषित किया था। गांगेय डॉल्फिन को भारत सरकार द्वारा अक्टूबर 2009 में राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया। फिलहाल इस आश्रयणी में करीब 250 डॉल्फिन हैं।
स्तनधारी जलीय जीव है डॉल्फिन
डॉल्फिन मछली नहीं है, यह एक स्तनधारी जलीय जीव है। इसे एक्वैटिक रडार भी कहते हैं। ये इको लोकेशन या सोनार पद्धति के द्वारा अपने शिकार को ढूंढती हैं। छोटी-छोटी मछलियां इनका भोजन है। मादा डॉल्फिन नर से बड़ी होती है। प्रत्येक तीन से चार मिनट के अंतराल पर यह जल के सतह पर सांस लेने आती है। उस समय इनके नाक से सों-सों की आवाज आती है। इसीलिए इसे सोंस भी कहते हैं।
इको टूरिज्म को मिल सकता है बढ़ावा
पीजी जंतु विज्ञान के प्राध्यापक प्रो. डीएन चौधरी ने गुरुवार को डेढ़ घंटे तक डॉल्फिनों के क्रियाकलापों का अध्ययन किया। उन्होंने बताया कि जैव विविधता के क्षेत्र में भागलपुर अग्रणी है। दुर्लभ गांगेय डॉल्फिन तथा बड़ा गरूड़ की प्रजनन स्थली कदवा दियारा में होने के कारण इको टूरिज्म की प्रबल संभावना है। इको टूरिज्म भागलपुर एवं आसपास के क्षेत्रों में लेकर विकसित किया जा सकता है।