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जानते हैं आप भागलपुर के दीप बाबू को, जिन्‍हें मिली है बिहार केसरी की उपाधि, 26 जनवरी को हुआ था जन्‍म

दीप नारायण सिंह की जयंती पर विशेष बिहार केसरी की उपाधि से विभूषित किए गए थे दीप बाबू। उनके घर पर ही ठहरते थे महात्मा गांधी व राजेंद्र बाबू। नमक सत्याग्रह आंदोलन में बढ़-चढ़कर लिया था हिस्सा।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Wed, 26 Jan 2022 04:40 PM (IST)Updated: Wed, 26 Jan 2022 04:40 PM (IST)
जानते हैं आप भागलपुर के दीप बाबू को, जिन्‍हें मिली है बिहार केसरी की उपाधि, 26 जनवरी को हुआ था जन्‍म
महात्‍मा गांधी के साथ दीप नारायण सिंह।

जागरण संवाददाता, भागलपुर। अंग क्षेत्र की धरती ने कई महापुरुषों को जन्म दिया है। ऐसे ही एक महापुरुष थे दीप नारायण सिंह। इन्हें प्यार से लोग दीप बाबू कहकर बुलाते थे। बिहार की जनता ने उन्हें बिहार केसरी की उपाधि से विभूषित किया था। दीप बाबू नमक सत्याग्रह आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। वे महात्मा गांधी के प्रिय पात्र थे। जब भी महात्मा गांधी भागलपुर आते थे, उन्हीं के आवास पर ठहरते थे। डा. राजेंद्र प्रसाद और सरोजनी नायडू भी दीप बाबू के यहां आ चुके हैं।

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दीप नारायण सिंह का जन्म जमींदार तेज नारायण सिंह के घर 26 जनवरी 1875 को हुआ था। दीप बाबू की प्रारंभिक शिक्षा कलकत्ता के एक अंग्रेजी स्कूल में हुई। कालेज की शिक्षा सेंट जेवियर्स कालेज में हुई। 16 वर्ष की उम्र में उच्च शिक्षा के लिए उन्हें लंदन भेज दिया गया। वहीं से बैरिस्टरी पास करने के बाद लंदन की अदालत में ही उनका निबंधन हो गया था, लेकिन देशप्रेम के कारण वे अपने देश लौट आए। देश लौटने के बाद वे स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए। वे संयुक्त बिहार-बंगाल के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रिम पंक्ति के नेताओं में एक थे। उन्होंने किसानों और श्रमिकों की आर्थिक व सामाजिक दशा सुधारने और शिक्षा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

दीप बाबू को कांग्रेस से लगाव बचपन से था। जब वे 13 वर्ष के थे, तब वे 1888 में जार्ज शूल की अध्यक्षता में हुए इलाहाबाद कांग्रेस अधिवेशन में अपने पिता के साथ सम्मलित हुए थे। यहीं इनकी मुलाकात डा. सच्चिदानंद सिन्हा से हुई। 1901 में उन्होंने बंगाल प्रांतीय सम्मेलन में भागलपुर की अध्यक्षता की। 1905-06 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने। 1905 में स्वदेशी आंदोलन में उनकी भूमिका चरम पर थी। 1906 से 1910 तक बिहार के लगभग सभी प्रांतीय सम्मेलन की अध्यक्षता की। 1908 में सोनपुर में बिहार कांग्रेस कमेटी की स्थापना इन्हीं की प्रेरणा से हुई थी। बंगाल विधान परिषद के भी वे सदस्य थे। 1909 में वे बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव बनाए गए। 1920 में दीप बाबू की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। इसके बाद वे असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। उन्हें असहयोग आंदोलन के संचालन के लिए गठित समिति के सदस्य भी बनाए गए। दीप बाबू दूर-दूर देहातों में घूम-घूमकर कोष संग्रह किया।

बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे दीप बाबू 

1920 में गांधी जी शौकत अली के साथ दीप बाबू के मेहमान बने और लोगों को संबोधित किया। वर्तमान में जिला जज का आवास दीप बाबू का आवास हुआ करता था। 1922 में देशबंधु चितरंजन दास की अध्यक्षता में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में दीप बाबू मजदूरों के हित के लिए मजदूर कोषांग का प्रस्ताव पारित कराया। 1928 में वे बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 1930 में नमक सत्याग्रह आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। डा. राजेंद्र प्रसाद की गिरफ्तारी के बाद देश में आंदोलन चलाने के लिए डिक्टेटर नियुक्त किए गए। इस दौरान वे दिल्ली में गिरफ्तार हुए। उन्हें हजारीबाग जेल भेजा गया, जहां वे चार महीने तक रहे। 26 जनवरी 1930 को दीप बाबू ने पटल बाबू रोड पर विशाल जनसभा को संबोधित किया था।

समाज के लिए समर्पित थे दीप बाबू 

दीप बाबू यहां के समाज के लिए अनेकों कार्य किए। विधवा व बेसहारा महिलाओं के लिए अपनी पहली पत्नी रामानंदी के नाम पर नाथनगर में विधवा आश्रम के साथ अनाथालय की स्थापना की। 1928 में लाला लाजपत राय की मौत के बाद घर के सामने 30 एकड़ जमीन दान में दे दी, जो आज लाजपत पार्क के नाम से जाना जा रहा है। आर्य समाज से प्रेरित होकर आर्य समाज मंदिर के निर्माण के लिए जमीन दान दी। दीप बाबू ने अपने पिता के नाम पर तेज नारायण बनैली कालेज, तेज नारायण बनैली ला कालेज, तेज नारायण बनैली कालेजिएट स्कूल के लिए जमीन दिया है। इसके अलावा भी उन्होंने बिहार-बंगाल के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए।


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