Corona effect : गांव सीख गया सन्नाटे में जीवन का मंत्र
भागलपुर के ममलखा हाट की यह तस्वीर बता रही ग्रामीण जीवन का अनुशासन शारीरिक दूरी के लिए समझाना नहीं पड़ रहा आपदा से लडऩे की है सामूहिक चिंता। मास्क लगाकर मिर्च बेचते खोखा मंडल।
[अश्विनी]। शहर को सन्नाटा बर्दाश्त नहीं, पर गांव समझ गया है-इस सन्नाटे में ही जीवन है। इसलिए यहां भीड़ नहीं, सड़क पर निकलने का उतावलापन नहीं। मास्क नहीं मिलने की शिकायत भी नहीं, कांधे पर शोभने वाला गमछा मुंह ढकने के काम आ रहा। यह सबौर के ममलखा में लगी हाट का नजारा है।
किसानों की व्यथा भी है, पर नाजुक वक्त का अहसास भी। चेहरे को मास्क से ढके खोखा मंडल बोलते हैं-इस सीजन में तो परवल 70 रुपये किलो तक बेचते थे। 35-40 पर भी आफत है। जवाब भी खुद ही देते हैं, लॉकडाउन है न! तब तो बड़ी मुश्किल हो रही होगी, इस सवाल पर पलक झपकते फूटे एक बोल में जैसे जीवन दर्शन हो- 'जिनगी (जिंदगी) रहेगा न तो सब कुछ आ जाएगा...।' गांव हर संदेश पढ़ रहा, गुन रहा। मोबाइल पर कोरोना से बचाव का संदेश आया। घर पर ही मास्क सिल लिया।
थोड़ी ही दूर पर बैठे चेहरे पर गमछा लपेटे मंगल कुमार कहते हैं, हाट में अब भीड़ नहीं है। पहले पूरा घर उठकर चला आता था, अब इक्का-दुक्का आ रहे। इस बीच चौकीदार शिवदानी पासवान और पारु पासवान वहां पहुंच जाते हैं। हाट में ड्यूटी लगी है। शिवदानी 1970 से चौकीदारी कर रहे, इस साल ही रिटायरमेंट है। वे कहते हैं, 'एतना (इतना) साल गुजर गया, ऐसा कभी नहीं देखे थे...।' अभी जहां भी ड्यूटी लगती है, वे मुस्तैदी से डट जाते हैं। डर नहीं लगता है? फिल्म तीसरी कसम में राजकपूर का हर बात पर 'इस्स' कहना याद हो तो बस शिवदानी को वही समझ लें। उसी अंदाज में-हल्की हंसी के साथ एक झटके से-'नै..., डर काहे लगेगा, अपना गांव-समाज का चिंता सब मिलिए (मिलकर) कर न करेगा? हाट में शारीरिक दूरी का पालन मुस्तैदी से हो रहा है। यहां पुलिस को न डंडे बरसाने पड़ रहे हैं, न ही हाथ जोड़-जोड़ कर समझाना पड़ रहा है। आपदा से लडऩे की कला गांव जैसे खुद जानता हो।