Corona effect : राष्ट्रधर्म के लिए यह काम भी स्वीकार, वस्तु विनमय का फार्मूला बना वरदान
लॉक डाउन में कटिहार के कुछ इलाकों में प्राचीन समय में चलने वाली वस्तु विनिमय प्रणाली का फार्मूला फिर से कारगर साबित हो रहा है।
कटिहार [प्रकाश वत्स]। लॉकडाउन के दौरान कई चीजों की बिक्री थम गई है और इसका असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दिख रहा है। लिहाजा, अब कुछ इलाकों में प्राचीन समय में चलने वाली वस्तु विनिमय प्रणाली का फार्मूला फिर से कारगर साबित हो रहा है। दुकानदार भी लोगों की मजबूरी समझकर इसे सहर्ष स्वीकार कर रहे हैं।
डंडखोरा प्रखंड के द्वाशय गांव निवासी नगरू यादव (90) ने बताया कि सोमवार को उनके पड़ोस की महिला आशा देवी को जरूरी सामान खरीदने के लिए हजार रुपये की जरूरत पड़ी। उनके घर में पांच क्विंटल धान था, जो लॉकडाउन के कारण नहीं बिक रहा था। आशा ने दुकानदार को धान देकर उसके बदले में सामान ले लिया। यह आशा देवी की ही नहीं, अधिकांश ऐसे लोगों की कहानी है जिनके मवेशी, अनाज या अन्य सामान अभी नहीं बिक पा रहे हैं। ऑटा-रिक्शा आदि चलाने वाले लोगों के समक्ष भी ऐसी ही परेशानी है। इनके पास पैसे नहीं आ रहे हैं। ऐसे में लोग एक सामान देकर दूसरा सामान खरीद रहे हैं।
गांव के श्रवण संन्यासी, महेंद्र ऋषि व गोपाल यादव आदि ने बताया कि कोई दूध देकर सब्जी ले रहा है तो कोई बकरी-पाठा देकर अन्य सामान। भमरैली के अमर लॉकडाउन के पूर्व ऑटो चलाते थे। 27 मार्च से वह साइकिल से सब्जी बेच रहे हैं। भमरैली गांव में कुछ मजदूर शारीरिक दूरी का पालन कर मखाना लगाने का काम कर रहे हैं। जुगल सहनी ने बताया कि गांव में रोजी-रोजगार फिलहाल चौपट है। बाहर से भी काफी संख्या में लोग घर लौटे हैं। सभी को काम की दरकार है। ऐसे में काम नहीं मिलने पर लोग घर के सामान के बदले अन्य जरूरी सामान ले रहे हंै।