Corona effect : लोग घरों में बंद तो बाहर निकली डॉल्फिन
कल-कारखानों के बंद होने के कारण गंगा नदी में मिलने वाले दूषित जल का आना बंद है। लोगों का स्नान बंद हैं। लाशें नहीं के बराबर जल रही हैं। डॉल्फिन के बच्चे गंगा में उछल रहे हैं।
भागलपुर [नवनीत मिश्र]। कोरोना के कारण लोग घरों में बंद हुए तो जीव-जंतु बाहर आने लगे। लॉकडाउन ने यह अहसास भी कराया है कि प्रकृति किस तरह सिकुड़ सी गई थी। जिस गंगा का पानी मटमैला हो चुका था, उसकी निर्मलता भी देखते बनती है। गंगा में भी आवाजाही बंद है तो डॉल्फिन भी घर से बाहर निकलकर झांक रही है।
यह दृश्य अरसे बाद दिख रहा है। गंगा में लगभग 150 बड़ी डॉल्फिनें हैं। नदी की बेहतर स्थिति देख पर्यावरणविद मान रहे हैं कि इनकी संख्या में और बढ़ोतरी हो सकती है। इस समय डॉल्फिन के बच्चे भी नदी में अठखेलियां करते दिख रहे हैं। इससे इनकी संख्या में वृद्धि का अनुमान लगाया जा रहा है।
चूंकि इस समय लॉकडाउन है, सो मछुआरों का भी गंगा की ओर जाना बंद हो गया है। वे इसमें जाल नहीं डाल रहे हैं। नाव की आवाजाही बंद है। इस कारण डॉल्फिनें स्वछंद विचरण कर रही हैं। उन्हें पर्याप्त भोजन भी मिल रहा है। ये मुख्य रूप से छोटी मछलियों पर निर्भर रहती हैं, जिसे मछुआरे जाल लगाकर निकाल लेेते थे। नौकाओं और जाल के कारण डॉल्फिनें डर जाती थीं।
चूंकि डॉल्फिन देख नहीं पाती है और आवाज की दिशा में ही भोजन के लिए दौड़ती है। इस कारण अक्सर डॉल्फिनें नाव या जाल के कारण चोटिल हो जाती थीं। गंगा में मानवीय गतिविधियों के कारण इसे सही से भोजन भी नहीं मिल पा रहा था। अब सुल्तानगंज से लेकर कहलगंाव तक की गंगा में इन जीवों को उन्मुक्त विचरण करते हुए देखा जा सकता है। यह क्षेत्र डॉल्फिनों के लिए संरक्षित है।
अभी गंगा नदी में लगभग 150 डॉल्फिनें हैं। इनके बच्चे भी दिखाई पड़ रहे हैं। अभी का मौसम भी अनुकूल है। गंगा में प्रदूषण स्तर बहुत कम गया है। मानवीय गतिविधियां शून्य हैं, इस कारण डॉल्फिनों के लिए उपयुक्त माहौल है। उनकी संख्या बढऩे की उम्मीद है। - अरविंद मिश्र, पर्यावरणविद, संस्थापक, मंदार नेचर क्लब, भागलपुर