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मिर्च ने भर दी आदिवासियों के जीवन में मिठास, जानिए

सिंचाई की उत्तम व्यवस्था से महरूम व मानसूनी खेती पर निर्भर चकाई की ग्रामीण महिलाएं मिर्च की खेती कर अपने सुनहरे भविष्य को गढ़ रही हैं।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Thu, 22 Feb 2018 10:06 AM (IST)Updated: Thu, 22 Feb 2018 04:15 PM (IST)
मिर्च ने भर दी आदिवासियों के जीवन में मिठास, जानिए
मिर्च ने भर दी आदिवासियों के जीवन में मिठास, जानिए

जमुई [आशीष कुमार चिन्टू]। यूं तो मिर्च तीखा होता है, परंतु चकाई के आदिवासी बाहुल्य गांवों में मिर्च ने लोगों के जीवन में मिठास भर दी है। सिंचाई की उत्तम व्यवस्था से महरूम व मानसूनी खेती पर निर्भर चकाई की ग्रामीण महिलाएं मिर्च की खेती कर अपने सुनहरे भविष्य को गढ़ रही हैं। दर्जन भर गांवों की महिला मिर्च की खेती से जुड़कर अपने पारिवारिक दायित्व के साथ अर्थोपार्जन कर रही हैं। फलत: घरों में भी आवश्यक सुविधायुक्त वस्तु के साथ संतुष्टि ने जीवन में मिठास घोल दी है।

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ललिता और छोटकी ने की थी शुरुआत

दो महिला का प्रयास व हिम्मत ने पूरे समाज को दिशा दिखा दी। दुलमपुर पंचायत के वनगुंडा गांव निवासी ललिता मरांडी व छोटकी हांसदा ने वर्ष 2010 में मिर्च की खेती शुरू की। दरअसल, मेहनत के बावजूद खेती से आपेक्षित पैदावार नहीं मिलने से परेशान ललिता व छोटकी ने देखा कि यत्र-तत्र मिर्च के पौधे स्वत: उगे हैं। इसे देख उन्हें मिर्च की खेती करने का विचार आया और दोनों मिर्च की खेती में जुट गई।

बेसरा ने तैयार की नर्सरी

ललिता व छोटकी के लहलहाते मिर्च के पौधे को देख वर्ष 2011 में सुंदरमुनी बेसरा ने नर्सरी तैयार करने की जिम्मेवारी ली। पूरे गांव के लिए उसने मिर्च का नर्सरी तैयार किया।

बढ़ता गया कारवां

मिर्च की खेती करने वाली महिलओं का कारवां बढ़ता गया। अब खोकलो, नौआडीह पंचायत के गोङ्क्षवदपुर, जबरदाहा, गजही पंचायत के मोरियाडीह गांव में मिर्च की खेती होने लगी। धीरे-धीरे बढ़ते हुए अब वर्तमान में लगभग 40 एकड़ में मिर्च की खेती होने की बात बताई जाती है।

समूह में शुरू हुई खेती

मिर्च की खेती से प्रभावित मार्शल महिला संघ नामक एक प्रखंड स्तरीय संस्था ने स्वयं सहायता समूह बनाकर खेती को प्रोत्साहित किया। संस्था द्वारा तकनीकी जानकारी दी जाने लगी। जबरदाहा में बाहा महिला मंडल की महिलाएं समूह में खेती करने लगी।

कहती हैं महिलाएं

सुरजमुनी मुरमुर ने बताया कि मिर्च की खेती से उसे नौ हजार रुपये की कमाई होती है। अब बच्चों की मांग के साथ-साथ घरेलू जरूरतें पूरी हो जाती है। मोरियाडीह की मीना देवी ने बताया कि मक्का की खेती को छोड़कर वह मिर्च की खेती से जुड़ गई। उसके परिवार की जरूरतें मिर्च से पूरी हो जाती है। महिलाओं ने बताया कि दो कट्ठा (12 डिसमल) जमीन से 8 हजार से लेकर 10 हजार की आमदनी हो जाती है।


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