बस्ते के बोझ तले दबता जा रहा 'बचपन'
दिब्यांशु कक्षा एक में पढ़ता है। उसके बैग का वजन आठ किलो से अधिक है। स्कूल बैग उठाकर चलने में वह हाफने लगता है, लिहाजा मा रोजाना स्कूल तक छोड़ने जाती हैं।
भागलपुर। तिलकामांझी का दिब्यांशु कक्षा एक में पढ़ता है। उसके बैग का वजन आठ किलो से अधिक है। स्कूल बैग उठाकर चलने में वह हाफने लगता है, लिहाजा मा अंजना रोजाना स्कूल तक छोड़ने जाती हैं। यह किसी एक बच्चे की नहीं, बल्कि स्कूल में पढ़ने वाले सभी बच्चों की समस्या है। छुट्टी में क्लास से स्कूल गेट तक पहुंचने में ही बच्चों के पसीने छूट जाते हैं। मजबूरी ये है कि बच्चों को पूरी किताब-कॉपियों के साथ स्कूल आना-जाना पड़ता है।
आखिर बच्चे बेकार का बोझ क्यों उठाएं? कई किताबें ऐसी होती हैं, जिनकी साल भर पढ़ाई नहीं होती। केवल टर्न के अनुसार ही बैग में किताबों का वजन इतना हो जाता है कि देखने वाले भी बच्चों पर तरस खाते हैं।
चिकित्सकों की मानें तो स्कूल में पढ़ने वाले 60 फीसद बच्चे जोड़ों के दर्द, 30 फीसद बच्चे कमर दर्द और 58 फीसद बच्चे अन्य हड्डी रोगों से पीड़ित हैं। लेकिन स्कूलों की प्रतिस्पर्धा सिर्फ सिलेबस बढ़ाने में है। नौनिहालों की तकलीफ समझने को कोई तैयार नहीं। स्थिति यह है कि चार से छह साल तक के बच्चों के बस्तों का वजन पाच किलो से तो कम है ही नहीं। नतीजतन, बच्चे घर पहुंचते ही बस्ते को कोने में रखने के साथ बिस्तर पर पसर जाते हैं।
यदि हालात यही रहे तो बच्चों की कमर कमजोर हो जाएगी और उनका मन पढ़ाई से दूर होने लगेगा। स्कूल बैग के बोझ तले बच्चे दबे जा रहे हैं, सीधे खड़े होने की बजाए बस्ते को लादकर ले जाने के लिए आगे झुककर चलना पड़ता है।
बच्चों का कोर्स एनसीईआरटी के नियमों के मुताबिक होना चाहिए। पुस्तकें मानकों के मुताबिक बस्तों में रखवाएं। किताबों का बोझ कम होगा तो वे बेहतर महसूस करेंगे। बस्ते का बोझ कम करने के लिए स्कूल प्रबंधक और प्रधानाचार्यो की बैठक आयोजित होनी चाहिए।
-प्रदीप द्विवेदी, एक विद्यालय के प्राचार्य।
कम उम्र में ज्यादा वजन उठाने से बच्चों के कंधों पर असर पड़ता है। रीढ़ की हड्डी में भी दर्द होता है। वजन के कारण बच्चों को कमर झुकाकर चलने की आदत पड़ जाती है। बच्चों की कमर पर बस्ते का वजन कम होना चाहिए। बच्चा अगर दर्द की शिकायत करता है तो फौरन हड्डी रोग विशेषज्ञ से सलाह लें।
-डॉ. प्रवीण कुमार झा, फिजियोथेरेपिस्ट
केस स्टडी एक
मिरजानहाट रोड के रहने वाला आदित्य वर्द्धन कक्षा पांचवीं का छात्र है। लेकिन उसके बस्ते का वजन बारह किलो से अधिक है। वह सुबह रिक्शा से स्कूल पहुंचता है। स्कूल तक पहुंचने में उसे बस्ते के वजन के कारण परेशानी उठानी पड़ती है। उसकी मा रितु का कहना है कि दोपहर में छुट्टी के समय कोशिश रहती है कि वह खुद ही बस्ता लेकर जाएं।
केस स्टडी एक
नाथनगर निवासी विकास आनंद कक्षा दो का छात्र है। उसको स्कूल छोड़ने और लेने के लिए मा आरती जाती हैं। बच्चे के बस्ते का वजन करीब साढ़े सात किलो है। उनका कहना है कि बस्ते को वह खुद उठाकर लाती हैं, लेकिन बच्चे को स्कूल में अपना बस्ता खुद ही उठाना पड़ता है। भारी वजन के कारण बच्चा थक जाता है।
केस स्टडी तीन
भीखनपुर निवासी जगमोहन अपनी पुत्री रागिनी को प्रतिदिन स्कूल छोड़ने और लेने जाते हैं। कक्षा तीन में पढ़ाई करने वाली रागिनी अपना बैग नहीं उठा पाती है। जगमोहन कहते हैं कि बच्चों की किताबों का इतना वजन समझ से परे है। शिकायत करें भी तो किससे, कोई सुनने वाला नहीं है। बच्चों को मजबूरी में बोझ उठाना पड़ता है।