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तत्काल टिकट कटाने के लिए रात से ही शुरू होता है सेटिंग का खेल

सुबह दस बजे से कटने वाले टिकट के लिए एक दिन पहले रात आठ बजे से ही सिंडिकेट के सदस्य तैयारी करना शुरू कर देते हैं। रात में ही इन्हें कंफर्म अथवा ओके का आश्वासन मिल जाता है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Wed, 10 Apr 2019 01:20 PM (IST)Updated: Sun, 14 Apr 2019 12:01 PM (IST)
तत्काल टिकट कटाने के लिए रात से ही शुरू होता है सेटिंग का खेल
तत्काल टिकट कटाने के लिए रात से ही शुरू होता है सेटिंग का खेल

भागलपुर [जेएनएन]। 'तत्काल' का मतलब इमरजेंसी जैसा नाम वैसी मशक्कत। अस्पताल के इमरजेंसी में इलाज के लिए लोगों को डॉक्टरों के आगे-पीछे करना पड़ता है। पर, विलंब से ही सही इलाज हो जाता है। वहीं, तत्काल टिकट के लिए चिरौरी नहीं सेटिंग काम आती है। स्टेशनों पर तत्काल टिकट के लिए 14 घंटे कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। सेटिंग-गेटिंग करनी पड़ती है। जब तक टिकट काटने वालों का हरा सिग्नल नहीं मिलता तब तक तत्काल टिकट कटाने वाले सिंडिकेट के सदस्य आश्वस्त नहीं होते हैं।

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सुबह दस बजे से कटने वाले टिकट के लिए एक दिन पहले रात आठ बजे से ही सिंडिकेट के सदस्य तैयारी करना शुरू कर देते हैं। रात में ही इन्हें कंफर्म अथवा ओके का आश्वासन मिल जाता है। एजेंट रात में ही मुसाफिर का नाम और गंतव्य उपलब्ध करा देते हैं। राशि का भुगतान टिकट कटने के बाद होता है। लेकिन एक टिकट पर कितना खर्च पर बैठेगा इसकी जानकारी रात में ही मिल जाती है।

सिंडिकेट के सदस्यों की मशक्कत यहीं पर समाप्त नहीं होती। इसके बाद पहले नंबर पर रहने के लिए स्टेशन पर हल्की मशक्कत करनी पड़ती है। यहां भी चढ़ावा देकर पहले नंबर की बुकिंग कर लेते हैं। कभी-कभार तत्काल टिकट दलालों को दूसरा नंबर मिलता है तो कन्फर्म टिकट कटने की संभावना कम होती है। एक फॉर्म पर दो और तीन से अधिक नाम होते हैं। इतनी सारी प्रक्रिया के बाद एजेंटों के हाथ में कन्फर्म टिकटें मिल पाती है।

तीन से चार मिनट सीट फुल

एसी क्लास का कन्फर्म टिकट सुबह 10 बजे और स्लीपर क्लास की टिकटें 11 बजे से कटती हैं। जिस रूट की ट्रेनों में भीड़ ज्यादा होती है उसमें टिकटें तीन से चार मिनट में ही फुल हो जाती हैं। वहीं जिस मार्ग में भीड़ कम होती हैं उन ट्रेनों की टिकटें कुछ देर तक बची रहती है।

संडे को एजेंट ई-टिकट पर रहते हैं आश्रित

तत्काल टिकट सिंडिकेट के सदस्यों को सप्ताह में छह दिन तो परेशानी नहीं होती है, यह अमूमन रेल आरक्षण काउंटरों पर निर्भर रहते हैं। पर, रविवार को छोटे स्टेशनों पर आरक्षण काउंटर बंद रहते हैं। वहीं बड़े स्टेशनों पर काउंटर खुलते हैं लेकिन यहां सफलता हाथ नहीं लगती है। इस कारण उन्हें ई-टिकट पर आश्रित होना पड़ता है।

मुख्‍य बातें

-तत्काल टिकट कटाने के लिए रात से ही शुरू होता है सेटिंग का खेल

-भागलपुर जंक्शन पर वर्षों से जमे हैं आरक्षण कर्मी

-नाम और जगह रात में ही करा दिया जाता है उपलब्ध

-01 और दो नंबर पर लाइन लगाने के लिए दी जाती है मोटी राशि

-03 नंबर के बाद तत्काल टिकट मिलना होता है मुश्किल

-01 टिकट आरक्षण काउंटर होता है छोटे स्टेशनों पर

-03 से ज्यादा यात्रियों का एक फार्म में रहता है नाम


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