... अब गर्मी में भी फलेगा बैगन, बीएयू के वैज्ञानिकों ने किया शोध
बैंगन के बीज या पौधे बरसात के बाद रोपे जाते हैं और सर्दी के मौसम में इनका फलन होता है। औसतन 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है।
भागलपुर [ललन तिवारी]। अब बेमौसम भी बैगन की खेती हो सकेगी। बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) सबौर के वैज्ञानिकों ने छह वर्ष के प्रयास से बैगन की तीन किस्मों का विकास किया है। इनमें से दो किस्में गर्मी के दिनों में फलन देगी।
वहीं, एक किस्म में बीज की मात्र नहीं के बराबर होगी। यह चोखा बनाने के लिए उपयुक्त होगी। इन तीनों ही किस्मों का उत्पादन और रोग प्रतिरोधक क्षमता तुलनात्मक रूप से ज्यादा होगी। साथ ही यह विटामिन, एंटीऑक्सीडेंट और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होगा। बीएयू देश के कई संस्थानों और किसानों के माध्यम से इसकी प्रायोगिक खेती करा रहा है जो अंतिम पड़ाव पर है। जल्द ही इसे राष्ट्रीय फलक पर रिलीज किया जाएगा।
शोध से जुड़े वरीय वैज्ञानिक डॉ. रणधीर कुमार और परियोजना की वैज्ञानिक डॉ. शिरीन अख्तर का कहना है कि बैगन की सब्जी की दो नई किस्में बीआरबीएल 1 (अंडाकार हरा धारीदार)और बीआरबीएल 2 (लंबा बैगनी )की बिहार में पहली बार गर्मी के दिनों में भी पैदावार होगी। दोनों किस्मों की उत्पादन क्षमता साढ़े चार सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। तीसरी किस्म बीआरबीएल 7(बैगनी अंडाकार से थोड़ा लंबा) को चोखा स्पेशल माना जा रहा है। इसकी उत्पादन क्षमता चार सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। तीनों बिहार की जलवायु के लिए उपयुक्त है।
बताते चलें कि बैंगन के बीज या पौधे बरसात के बाद रोपे जाते हैं और सर्दी के मौसम में इनका फलन होता है। औसतन 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है। नई किस्मों की खेती से किसानों को ज्यादा लाभ होगा। रिलीज होने के बाद बीएयू इसकी पौध सामग्री और बीज किसानों को उपलब्ध कराएगा।
बीएयू सबौर के कुलपति डॉ. अजय कुमार सिंह सब्जी उत्पादक किसानों के लिए बैगन की ये नई किस्में समृद्धि का द्वार खोलेगी। गुणवत्ता का सफलता पूर्वक मूल्यांकन राष्ट्रीय स्तर पर किया गया है। इन्हें जल्द ही रिलीज किया जाएगा।