महाराष्ट्र और दिल्ली में कफ्र्यू के बाद घर लौटने लगे बिहारी, हर किसी को सता रहा लॉकडाउन की चिंता
महराष्ट्र और दिल्ली में कफ़र्यू लगने के बाद बिहार के लोग लौटने लगे हैं। लोगों को सबसे ज्यादा चिंता लॉकडाउन का है। दूसरे प्रदेश से लौट रहे प्रवासियों ने बताया कि कोरोना के कारण उन लोगों का काम छूट गया है। इस कारण सबसे अधिक परेशानी हो रही थी।
जागरण संवाददाता, भागलपुर। गत वर्ष लॉकडाउन के बाद सितंबर माह में आंखों में रोजगार के सपने लिए बड़ी संख्या में लोग महाराष्ट्र और दिल्ली गए। वहां रोजगार भी मिल गया। गृहस्थी की गाड़ी धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही थी कि मार्च में कोरोना की दूसरी लहर ने फिर कहर बरपाना शुरू कर दिया। केस बढऩे के बाद शहरों में कफ्र्यू लग गया। सभी को लॉकडाउन की ङ्क्षचता सताने लगी। घर वापसी के सिवाय कोई विकल्प नहीं दिख रहा था। लाचारी में परदेस से लौटने को मजबूर हो गए। रोजगार छूटने का मलाल सभी के चेहरे पर साफ दिख रहा था। बुधवार को आनंद विहार टर्मिनल और पुणे से आई ट्रेन से उतरने वाले ज्यादातर पैसेंजर ऐसे थे, जो लॉकडाउन लगने के डर से अपने-अपने घर लौट आए।
केस स्टडी-एक
साहिबगंज निवासी आनंद कुमार, संजय पासवान पासवान दिल्ली के किसी फैक्ट्री में काम करते थे। नागलोई इलाके में दोनों पांच वर्ष से रह रहे थे। पिछले वर्ष मार्च में लॉकडाउन हुआ तो फैक्ट्री बंद हो गई। मई महीने में दोनों श्रमिक ट्रेन से लौट आए। यहां दो महीने तक रोजगार के लिए हाथ पैर मारते रहे। रोजगार नहीं मिला तो फिर दिल्ली का रूख किया। फैक्ट्री वालों से बात की रवाना हो गए। फिर से कोरोना का मामला बढ़ा तो वापस लौटने को मजबूर हो गए। कोरोना के डर से काम पर जाना बंद कर दिए थे। लॉकडाउन लगने की ङ्क्षचता से घर लौट गए। यहां अपने राज्य में काम का अभाव है। परिवार का पेट भरना मुश्किल है।
केस स्टडी-दो
पूर्णिया का शाहिद मुंबई में सात वर्ष से सिलाई का काम करता था। होली से पहले परिवार को छोड़कर वापस मुंबई लौटा था। कोरोना का मामला बढ़ा तो दोस्तों के साथ वापस घर आने का मन बना लिया। मुंबई की ट्रेन से उतरे रामकिशन महतो ने कहा कि यहां रहते तो भूखे मर जाते। इसलिए अक्टूबर में मुंबई चले गए। वहां सिलाई का काम शुरू किया। कोरोना और कफ्र्यू लगने के बाद लौटना मुनासिब समझे।
केस स्टडी-तीन
सन्हौला के भवेश मंडल दिल्ली के आजादपुर इलाके में दोस्तों के साथ चार वर्ष से रह रहे थे। कोरोना का केस आने लगा तो कुछ दिन इंतजार किया। फिर डेरा समेटकर ट्रेन से अपने घर लौट आए। भवेश ने कहा कि घर परिवार से दूर काम करने के लिए जाने का मन नहीं करता है। बिहार में रोजगार की कमी है। इसलिए घर से बाहर जाने के सिवाय कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है।