Move to Jagran APP

Bihar Politics: बिहार के दिग्गज कांग्रेसी रहे सदानंद सिंह के पुत्र शुभानंद मुकेश थामेंगे जदयू का दामन, कहलगांव से लड़ चुके हैं विधानसभा चुनाव

Bihar Politics बिहार के दिग्‍गज कांग्रेसी रहे सदानंद सिंह के पुत्र शुभानंद मुकेश अब जदयू का दामन थामेंगे। 12 दिसंबर को पटना के श्रीकृष्‍ण मेमोरियल हाल में मिलन समारोह का आयोजन किया गया है। उनके साथ कई और कांग्रेस नेता...

By Abhishek KumarEdited By: Published: Thu, 02 Dec 2021 11:00 AM (IST)Updated: Thu, 02 Dec 2021 11:00 AM (IST)
Bihar Politics: बिहार के दिग्गज कांग्रेसी रहे सदानंद सिंह के पुत्र शुभानंद मुकेश थामेंगे जदयू का दामन, कहलगांव से लड़ चुके हैं विधानसभा चुनाव
Bihar Politics: शुभानंद मुकेश और सदानंद सिंह। फाइल फोटो।

आनलाइन डेस्क, भागलपुर। Bihar Politics: बिहार के दिग्गज कांग्रेसी रहे सदानंद सिंह के पुत्र शुभानंद मुकेश अब जदयू का दामन थामेंगे। 12 दिसंबर को पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हाल में मिलन समारोह का आयोजन किया गया है। उनके साथ अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य शंभू सिंह पटेल समेत कई और कांग्रेसी भी जदयू में शामिल होंगे।

loksabha election banner

जदयू जिलाध्यक्ष पंचम श्रीवास्तव ने इसकी पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि शुभानंद मुकेश के आने से जिला के साथ-साथ प्रदेश स्तर पर भी संगठन को मजबूती मिलेगी। उनके पिता सदानंद सिंह की एक अलग पहचान रही है। मिलन समारोह में कई और कांग्रेस के नेता व कार्यकर्ता भी शामिल होंगे।

दरअसल, कहलगांव विधानसभा सीट पर नौ दफा विजय पताका फहराने वाले सदानंद सिंह का कुछ दिन पूर्व निधन हो गया है। वे पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में ही उन्होंने अपनी विरासत बेटो को सौंपने तय कर लिया था। इसके बाद शुभानंद मुकेश को कहलगांव सीट से कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया था। हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। बीजेपी प्रत्याशी पवन यादव वहां से विजयी रहे थे।

सदानंद सिंह के नाम था कई रिकार्ड

बिहार सरकार के पूर्व मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और लंबे समय तक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे सदानंद सिंह के नाम कई रिकार्ड था। वे मृदुभाषी थे। अपनी सर्व सुलभ छवि के कारण लोगों के बीच के काफी लोकप्रिय थे। वो 1969 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर कहलगांव विधानसभा से चुनाव जीते। इसके बाद वे लगातार जीतते रहे। साल 1985 में उनका टिकट कट गया था। लेकिन वे निर्दलीय भी जीत गए।

पुराने कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलना बड़ी चुनौती

सदानंद सिंह की अपने क्षेत्र में अलग पहचान रही है। वे ज्यादातर समय क्षेत्र में ही गुजारते थे। छोटे-बड़े हर तरह के कार्यक्रमों में शामिल होने की कोशिश करते थे। यही कारण है कि उनके साथ जो लोग एक बार जुड़ जाते थे वे फिर साथ नहीं छोड़ते थे। शुभानंद मुकेश के लिए ऐसे लोगों को साथ लेकर चलना बड़ी चुनौती होगी।  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.