बिहार पुलिस का कारनामा : दोषी को छोड़ा और निर्दोष को पीट-पीट कर मार डाला
भागलपुर के बरारी थाने में सिंचाई विभाग के कर्मचारी संजय की मौत हो गई। संजय निर्दोष था। उसे पुलिस ने हंगामा के बाद पूछताछ के लिए थाना लाया। जहां उसकी पिटाई कर दी। इसके बाद उसकी मौत हो गई।
जागरण संवाददाता, भागलपुर। मायागंज में बच्चों के विवाद में हुई दो टोलों के बीच की मारपीट का मसला साधारण था सोमवार की शाम को ही दब गया था। लेकिन सिटी एएसपी पूरन कुमार झा और उनके साथ पहुंचे बरारी थानाध्यक्ष प्रमोद साह और पुलिस जवानों ने बांका के कटोरिया में लघु सिंचाई विभाग में तैनात संजय कुमार को हिरासत में लेकर थाने लाने से लोगों का आक्रोश भड़क गया। दरअसल मायांगज के लोग इस बात से वाकिफ थे कि संजय तो बांका से तुरंत लौटा ही था। घर के समीप पहुंचा ही था कि तभी पुलिस टीम वहां पहुंच गई। संजय की बेटी मोनिका भारती दरवाजे पर पापा को जानकारी दे ही रही थी कि गांव में मारपीट हुई है तभी पुलिस उसके पिता को ही घसीट कर ले जाने लगी। गले में पड़े गमछे को पकड़ कर पुलिस जिप्सी में बैठा ले गई।
संजय को हिरासत में लेकर जाने से मारपीट के बाद शांत हुआ माहौल पुलिस के खिलाफ हो गया। चंद मिनट में लोग घरों से निकलकर मायागंज चौक पर जमा हो गए। लोग पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। लोगों का कहना था कि ठीक है मारपीट हुई है। ग्वाल टोली और पासवान टोली में मारपीट की घटना सचमुच हुई लेकिन मारपीट करने वाले को पुलिस पकड़ी नहीं। पहुंचते ही सबसे पहले संजय को ही घसीट ले गई जिसे ठीक से घटना की जानकारी तक नहीं थी। थाने में संजय से सख्ती हुई तो वह असहज हो गया। उसकी तबियत बिगड़ गई और कुछ देर में ही वह दम तोड़ दिया। उसने दम थाने में तोड़ा या अस्पताल में उसकी मौत हुई या अस्पताल ले जाने के क्रम में रास्ते में हुई यह अब न्यायिक जांच का विषय है। लेकिन संजय की पत्नी, बेटे, बेटियों ने जो सवाल खड़ा किया है उसका जवाब पुलिस अधिकारी फिलहाल गोल-मटोल ही दे रहे हैं। बरारी पुलिस यही कह रही है कि उसकी मौत अस्पताल में हुई है। थाने में लगे सीसी कैमरे की एक फुटेज भी उसके समर्थन में दिखा रही है जिसमें संजय को पसीने से लथपथ थाने से ले जाते दिखाया गया है।
हालांकि उस फुटेज से यह साबित नहीं हो पा रहा है कि वह फुटेज पुलिस हिरासत में थाने लाते समय का है या तबियत बिगडऩे के बाद थाने से अस्पताल ले जाते समय का है। निर्दोष बताए जा रहे सिंचाई कर्मी संजय को हिरासत में ले जाने के बाद सोमवार की शाम से मंगलवार को पोस्टमार्टम होने तक लोग 18 घंटे तक सड़कों पर ही रहे। इस बीच पास में घर होने के बाद भी घर का रुख नहीं किया। सबकी एक ही मांग थी संजय को न्याय मिले। दोषी पुलिसकर्मी को सजा मिले, उनके खिलाफ केस हो, पत्नी या बच्चे को नौकरी मिले, सरकार की तरफ से पर्याप्त मुआवजा मिले। आश्वासन बाद ही लोग वहां से हटे। इस बीच पुलिस शांति समिति, पुलिस मित्र, सामाजिक कार्यकर्ता समेत शांति बहाली के लिए तमाम हथकंडे अपनाए लेकिन लोग तभी हटे जब एसएसपी ने स्पष्ट किया कि दोषी पुलिस पदाधिकारी पर केस दर्ज होगा। घटना की न्यायिक जांच कराई जाएगी। संजय के स्वजनों ने पुलिस पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। स्वजनों ने कहा कि पहले तो घटना से उनका कोई लेना देना नहीं था। तुरंत घर आए ही थे। पुलिस उसे उठा ले गई। स्वजनों ने कहा कि जिस तरह उन्हें वाहन में बैठाया गया और जिस सख्ती के साथ पुलिस उनसे पेश आए। वह उचित नहीं था। थाने में उनकी पिटाई हुई है। इसके बाद उनकी मौत हो गई।
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