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ब‍िहार पंचायत चुनाव: पहले पढ़े-लिखे और बुद्धिजीवी को बनाया जाता था मुखिया, मुंगेर के इस बुजुर्ग वोटर को सुनिए

ब‍िहार पंचायत चुनाव लगातार यहां पंचायत चुनाव हो रहा है। अब तक यहां तीन चरण का मतदान और मतगणना हो चुका है। इस बीच मुंगेर के वरिष्‍ठ मतदाताओं ने कहा कि पहले प्रत्‍याशी में योग्‍यता देखी जाती थी।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Mon, 11 Oct 2021 03:05 PM (IST)Updated: Mon, 11 Oct 2021 03:05 PM (IST)
ब‍िहार पंचायत चुनाव: पहले पढ़े-लिखे और बुद्धिजीवी को बनाया जाता था मुखिया, मुंगेर के इस बुजुर्ग वोटर को सुनिए
मुंगेर के बुजुर्ग मतदाता ने पंचायत चुनाव के अतीत की दी जानकारी।

संवाद सूत्र, धरहरा (मुंगेर)। पहले के चुनाव और अब के चुनाव में काफी फर्क है। पहले के मुखिया गांव के सबसे ज्यादा पढ़-लिखे, प्रतिष्ठित व बुद्धिजीवी लोग बनाए जाते थे। उन्हें पढऩे लिखने बोलने समझने का पूरा ज्ञान होता था। पंचायत क्षेत्र की सभी जानकारी होती थी। लोगों के दुख-दर्द में राजनीति से ऊपर उठकर साथ निभाते थे। अब केवल स्वार्थ के भाव से लोग मुखिया बनते हैं। अब चुनाव लडऩे के लिए प्रत्याशी धन-बल व छल-बल का खूब इस्तेमाल करते हैं। प्रशासन के भरोसे कुर्सी हासिल करने की जुगत में लगे रहते हैं। समाज सेवा व अपने व्यक्तित्व के सहारे चुनाव जीतने की क्षमता नहीं है। अब मतदाता चुनाव जीतने वाले प्रत्याशी के सामने विकास की बात करने का साहस नहीं जुटा पाते हैं। छठे चरण में होने में चुनाव को लेकर गांव के बुजुर्ग वोटरों ने अपनी-अपनी बातें रखीं।

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आज पंचायत चुनाव की जो स्थिति है, मन करता है कि वोट का बहिष्कार करें, लेकिन पुरखों ने अपनी कुर्बानी देकर राजतंत्र को हटाकर लोकतंत्र स्थापित किया है। वोट बहिष्कार से अमर शहीदों की शहादत को ठेस पहुंचेगा। असामाजिक मूर्ख के व जापात के आधार पर विकास की बात बेमानी है। - सुरेंद्र पासवान, गोविंदपुर

बहुत पहले सरपंच का चुनाव भी होता था। ज्यादातर पंचायतों में निर्विरोध सरपंच हुआ करते थे। आज तो दिन भर एक उम्मीदवार के साथ तो रात भर दूसरे के साथ। वोटर भी पैसे और अन्य प्रलोभन में फंस रहे हैं, ऐसे में विकास की उम्मीद क्या करेंगे। -राजकुमार पासवान, गोविंदपुर

40 वर्ष पूर्व केवल मुखिया व सरपंच का चुनाव होता था। गांव के बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ताओं आर्थिक रूप से मजबूत होते थे, ग्रामीण वैसे लोगों को पसंद करते थे। नामांकन के बाद कुछ भी खर्च विद्वान नहीं करते थे, आज सीधे उल्टा हो रहा है। - रामेश्वर राम, गोविंदपुर

पूर्व के जमाने में मुखिया जी चेक नहीं काटते थे उन्हें घर से ही खर्च करना पड़ता था। पहले चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवार को समर्थक मतदाता चंदा देते थे। गांव के पढ़े-लिखे या फिर सामाजिक कार्यकर्ता ही चुनाव मैदान में आने की हिम्मत करते थे। चुनाव का साफ-सुथरा होता था। -लक्ष्मी तांती, गोविंदपुर


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