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Bihar Panchayat Election 2021: श्मशान घाट पर भी चल रही गांवों की सियायत की लाइव कथा, सीमांचल में गंगा घाट बन रहा गवाह

बिहार में पंचायत चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो गई है। गली-मोहल्ले और चौक-चौराहे के अलावे इसकी चर्चा अब श्मशान घाट पर भी होने लगी है। सीमांचल का गंगा घाट इसकी गवाह बन रहा है। बात इतना ही नहीं है...

By Abhishek KumarEdited By: Published: Sun, 19 Sep 2021 07:03 PM (IST)Updated: Sun, 19 Sep 2021 07:03 PM (IST)
Bihar Panchayat Election 2021: श्मशान घाट पर भी चल रही गांवों की सियायत की लाइव कथा, सीमांचल में गंगा घाट बन रहा गवाह
बिहार में पंचायत चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो गई है।

पूर्णिया [प्रकाश वत्स]।  एक तरफ धधकती चिता तो चंद दूरी पर ही दूसरी चिता सजाने की तैयारी..। किसी ओर राम-नाम सत्य है का शोर तो कहीं गूंजता निर्गुण...। किनारों में लगे मालवाहक व यात्री जहाजें...। इसी के बीच यात्रियों से भरी नावों के किनारा लगने पर यात्रियों के उतरने व चढऩे का शोर..। जगह-जगह जमी श्रद्धालुओं व शव यात्रियों की चौकड़ी..। कहीं जीवन के अंतिम सत्य पर गहन चर्चा तो कहीं गांवों की सियायत पर बहस..। पंचायत चुनाव की धूम की धमक गंगा घाट तक पहुंच चुकी थी है। पावन गंगा भी किसी की कारुणिक क्रंदन तो किसी की फरियाद के साथ सीमांचल के गांवों की सियासत की लाइव कथा सुन मानो मंद-मंद मुस्करा रही थी...।

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प्रमंडल के कटिहार जिले में अवस्थित मनिहारी गंगा घाट पर फिलहाल यह रोज का नजारा है। मनिहारी गंगा घाट जहां सीमांचल के कोसी के लोगों के लिए सबसे अहम श्मशान घाट है, वहीं आस्था का भी यह बड़ा केंद्र है। औसतन डेढ़ से दो दर्जन शवों का अंतिम संस्कार इस पावन घाट पर होता है। खास अवसरों को छोड़ दे तो नित्य सीमांचल व कोसी के जिलों के अतिरिक्त नेपाल से भी काफी संख्या में श्रद्धालु नित्य यहां स्नान व विभिन्न पूजा-पाठ को लेकर पहुंचते हैं। शनिवार को भी अररिया जिले के नया भरगामा सहित किशनगंज, पूर्णिया सहित अन्य जिलों से लोग अपने मृतक स्वजनों के शवदाह को यहां पहुंचे थे।

घाट के बीचोबीच एक टिन की छतरी के नीचे नया भरगामा से शवदाह को पहुंचे लोगों की चौकड़ी जमी थी। मृतक 99 वसंत देख चुके थे, इसलिए माहौल में खास गम भी नहीं था..। लोगों ने बताया कि वे लोग गांव वासी दीनानाथ आचार्य के शव दाह को यहां आए हैं। चिता जल रही थी और लोग टीन की छतरी के नीचे लगे कुर्सियों पर जम चुके थे। अब कम ही लोगों का ध्यान चिता की ओर थे।

अधिकांश लोग छोटे-छोटे कुनबे में बंट अलग-अलग मुद्दों पर बातचीत में मस्त थे। इसी कुनबे में ङ्क्षहगवा गांव निवासी ब्रह़्मानंद झा, मनोज चौधरी, मनोज झा व प्रवीण कुमार जैसे लोगों की अलग चौकड़ी थी...। बात पंचायती राज व्यवस्था पर छिड़ी और अपने-अपने पंचायत के चुनावी तासीर तक पहुंच गई। पंचायती राज की गुण-दोष पर भी जमकर बहस हुई...। कल्याणकारी योजनाओं पर देश व राज्य के व्यय के साथ उसके प्रतिफल तक चर्चा का केंद्र रहा..। पुराना हीरो होंडा पर चलने वाले मुखिया जी के स्कार्पियो तक के सफर, शहर से गांव तक आलीशान मकान बना लेने तक की दास्तान भी बयां हुई...।

धारा को रोकने की कोशिश भी हुई...। तर्क आया कि अधिकांश विधायक से मंत्री तक को देखिए फिर मुखिया जी का दोष कम नजर आएगा..। गंगा को भी साक्षी बनाने की स्थिति आ गई...। देश के चर्चित घोटालों की कथा तक बयां हुई...। गांव की गलियों के चमकने, घर तक पानी पहुंचने, आपदा-विपदा में सहायता के तर्क से मुखिया जी के स्कार्पियो तक पहुंचने की धारा को रोकने की कोशिश हुई...। इसी बीच किसी ने आवाज लगा दी...। अब पंचकाठ का समय आ गया, चुनाव बाद में कराइएगा...। ठहाके गूंजे और चर्चा थम गई...।


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