बिहार चुनाव 2020: सुपौल में कच्चे माल की भरमार पर लोगों को नहीं मिल रहा रोजगार
सीमांचल में कच्चा माल रहने के बावजूद युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है। यहां के लोग रोजी-रोजगार के लिए आज भी दूर प्रदेश की ओर रुख करते हैं। लेकिन हर चुनाव में यह केवल एक मुद्दा बन कर रह जाता है।
सुपौल, जेएनएन। भले ही हुनर को दुनिया सलाम करती हो मगर कोसी क्षेत्र के ग्रामीणों द्वारा चटाई, मिट्टी के बर्तन व बांस पर आधारित घरेलू करोबार को उद्योग का दर्जा नहीं मिल सका। परिणामस्वरूप इस कारोबार से जुड़े लोगों का धीरे-धीरे अपने परंपरागत धंधे से दिल टूटता जा रहा है। इनके सक्षम रोजी-रोटी की समस्या दिन व दिन उत्पन्न होती जा रही है।
संसाधन की पर्याप्त उपलब्धता
कोसी क्षेत्र में चटाई में उपयोग होने वाला पटेर, मिट्टी व बांस की कमी नहीं है। लिहाजा कामगारों के हुनर की भी कोई कमी नहीं है। कमी है तो सिर्फ इनके कारोबार में पूंजी लगाने व जागरूकता पैदा कर इन्हें प्रोत्साहित करने की।
बढ़ते बाजार से नई आशा
इन कामगारों के माल पहले ग्रामीण बाजारों तक ही सिमट कर रह जाते थे। इनके द्वारा तैयार माल की अनुपलब्धता की स्थिति में शहरी इलाकों में प्लास्टिक से बुने चटाई ने अपना अलग स्थान बना लिया। अब जबकि ग्रामीण सड़क संपर्क मुख्य बाजार से जुड़ गया है। जगह-जगह वाहनों का परिचालन प्रारंभ हो गया है। ऐसे में तो इन उद्योगों को पंख लगने के अवसर भी हैं।
विकास के द्वार खुलने की संभावना
कामगारों को प्रोत्साहन देने में सरकार या फिर एनजीओ सहभागिता दे तो निश्चित तौर पर रोजगार के अवसर ही पैदा नहीं होंगे बल्कि क्षेत्र के लोगों की आर्थिक दशा भी ठीक होगी।
हर चुनाव में केवल मुद्दा बन कर रह जाता
कोसी और सीमांचल में रोजगार को लेकर हर बार चुनाव में काफी चर्चा होती है, लेकिन यह शोर केवल चुनाव भर ही रहता है। चुनाव के बाद सभी लोग भूल जाते हैँ। इस बार के चुनाव में भी यह मुद्दा उठा है। लेकिन सभी जानते हैं कि चुनाव खत्म होते ही फिर यह ठंडेबस्ते में चले जाएगा। इससे यहां के लोगों को रोजी रोजगार के लिए दूसरे प्रदेशों की ओर रुख करना पडता है।