Bihar Assembly Elections 2020: पंडितजी ने मुंहबोली पुत्री को दे दिया अपना टिकट, पलासी के प्रथम विधायक थे पुण्यानंद झा
अररिया में चुनावी सरगर्मी के बीच यहां पंडित जी की चर्चा के बिना चुनावी चर्चा अधूरी मानी जाती है। आज टिकट के लिए भाई भाई में बैर तो विभिन्न राजनीतिक दलों में घमासान जारी है। लेकिन पुण्यानंद झा ने 1957 में अपना टिकट मुंह बोली बेटी को दे दिया था।
अररिया [ज्योतिष झा]। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1952 में अररिया जिले की पलासी विधानसभा सीट पर पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की टिकट पर स्वतंत्रता सेनानी पंडित पुण्यानंद झा ने भारी बहुमत से जीत हासिल कर एसेंबली पहुंचे थे। वे जिले के जोकीहाट प्रखंड के जहानपुर गांव के रहने वाले थे। उनकी उदारता, विद्वता और त्याग की कहानी आज भी गांव गांव में बूढ़े बुजुर्ग सुनाते हैं।
विधानसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच यहां पंडित जी की चर्चा के बिना चुनावी चर्चा अधूरी मानी जाती है। आज टिकट के लिए भाई भाई में बैर तो विभिन्न राजनीतिक दलों में घमासान जारी है। लेकिन एक समय था जब त्याग की प्रतिमूर्ति विधायक पंडित पुण्यानंद झा ने 1957 के दूसरे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का अपना टिकट मुंह बोली बेटी को देकर राजनीति में नई इबारत लिख दी थी। जहानपुर गांव के सेवानिवृत प्रधानाध्यापक मही नारायण झा ने बताया कि 1957 के दूसरे विधानसभा चुनाव में पलासी विधानसभा से पंडित जी को कांग्रेस का टिकट दोबारा कंफर्म था। उसी दौरान पलासी प्रखंड के भीमा गांव के स्वर्गीय रामानंद ठाकुर की पुत्री शांति देवी ने पंडितजी के पास आकर कहा बाबूजी मैं विधानसभा चुनाव लडऩा चाहती हूं। इस पर पंडित जी ने खुश होकर अपनी कांग्रेस की टिकट शांति देवी को देने की अनुशंसा कर दी और उन्हें टिकट मिल गया। पंडितजी ने कहा कि यदि बेटी चुनाव लडऩा चाहे तो पिता को चाहिए कि वह अपनी इच्छा का दमन कर बेटी को हर तरह से समर्थन दे। इस तरह पंडित जी की कृपा से शांति देवी चुनाव में विजय हासिल कर विधानसभा पहुंच गईं। पंडित जी के इस त्याग की आज भी जिले भर में ही नहीं बल्कि सीमांचल तक में चर्चा होती है। वे सच्चे मायने में राजपुरुष थे। हालांकि कुछ समय बाद पुण्यात्मा झा ने राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा कर दी थी। पूर्व प्रधानाध्यापक झा के अनुसार पंडित जी विधानसभा में अपने ही दल के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण ङ्क्षसह की गलत नीतियों की आलोचना करने से भी नहीं हिचकते थे। उन्होंने 'एसेबंली में क्या क्या देखाÓ काव्य रचना भी की थी। पंडित जी कहा करते थे कि राजनीति सेवा के लिए की जाती है। लेकिन राजनीतिक कुटिलता उन्हें मंजूर नही थी। वे कहा करते थे कि राजनीति सेवा के लिए की जाती है। लेकिन राजनीतिक कुटिलता उन्हें मंजूर नही थी। समाजसेवियों का कहना है चुनाव लडऩे के लिए आज कहीं भाई भाई में टकराव तो विभिन्न राजनीतिक दलों के टिकट चाहने वाले नेताओं में भी भारी आक्रोश देखा जा रहा है जो लोकतंत्र के लिए कतई ठीक नहीं है। ऐसे लोगों को पंडित पुण्यानंद झा के त्याग और बलिदान से सीख लेनी चाहिए।
इंदिरा गांधी ने पंडित जी को किया था आर्थिक सहयोग
पंडित पुण्यानंद झा स्वतंत्रता सेनानी, प्रकांड विद्वान और शिक्षाविद् भी थे। अंग्रेजी, फारसी और मैथिली भाषा में उन्हें महारत हासिल थी। अंग्रेजी के प्रसिद्ध लेखक शेक्सपीयर की लिखी किताबें ङ्क्षकग लियर, ओथेलो, मैकबैथ उन्हें जुबानी याद थीं। मैथिली का पहला उपन्यास मिथिला दर्पण पंडितजी ने ही लिखी थी। लेकिन इतने बड़े त्यागी और विद्वान के जीवन का दुखांत लोगों को आज भी रुला देता है। जीवन के अंतिम समय वे बच्चों को पढाकर अर्थोपार्जन कर परिवार का भरण पोषण करते थे। सेवानिवृत प्रोफेसर अनंत मोहन झा ने बताया कि जब पंडित जी की आर्थिक स्थिति खराब हो गई तो मजबूर होकर उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर उनसे आर्थिक सहयोग की इच्छा व्यक्त की। इंदिरा जी ने कई बार डाक द्वारा राशि भेजकर उन्हें आर्थिक सहयोग किया था।