Bihar Assembly Elections 2020 : सीमांचल की चुनावी यात्रा : डीलरों के देस में लीडर खोज रही है हमारी जनता
Bihar Assembly Elections 2020 सीमांचल में कल मतदान है। तीसरे चरण का कल मतदान होगा। गुरुवार को मतदाताओं को रिझाने का अंतिम दिन था। चुनाव प्रचार कल ही समाप्त हो गया। जनता ने भी विकास नहीं करने वालों को सबक सीखाने का फैसला लिया है।
पूर्णिया, जेएनएन। Bihar Assembly Elections 2020 : मतदाताओं को सपने बेचने का गुरुवार अंतिम दिन था। सूर्यास्त के साथ ही अगले चुनाव तक इस दुकानदारी पर विराम लग गया। सपने कितने बिके, किस डीलर ने कितनी बिक्री की, यह सब परत दर परत 10 नवंबर की सुबह खुलने लगेगा। पूरे दिन का शोर अपने-अपने दाम का ओज गिनाता रहा।
बिहार में अबकी चुनाव में इस अंतिम चरण का मतदान महत्वपूर्ण है। एक-एक वोट चुन लेने की प्यास से उम्मीदवारों और स्टार प्रचारकों का गला सूखता रहा। मतदाता खामोश हैं। पहचान रहे हैं कि कौन लीडर है और कौन लीडर का लबादा ओढ़े डीलर है। जाति गिनाने वाला डीलर, पैसा का लालच देने वाला डीलर, हर बार की तरह झूठे नारे और वादे गढऩे वाला लीडर......। सीमांचल का चुनावी परिदृश्य यही है। अररिया जिले के फारबिसगंज विधानसभा क्षेत्र में चुनावी शोर परवान पर है। नेपाल की सीमा से सटे होने के कारण यहां का चुनाव भी दिलचस्प है। यह सीट भाजपा के कब्जे में है। अब विरोधियों की सीधी नजर इस सीट पर लगी हुई है। फारबिसगंज के व्यवसायी राजकुमार अग्रवाल कहते हैं कि यहां की जनता झूठे सपने बेचने वालों पर विश्वास नहीं करती। दल चाहे कोई भी हो, जिनलोगों ने वोटरों को गुमराह किया वे दूसरी बार विधानसभा का मुंह नहीं देख पाए। यह इलाका अल्पसंख्यक बहुल है। अररिया विधानसभा क्षेत्र में प्रवेश करते ही चुनावी शोर थोड़ा कम सुनाई पड़ता है। यहां कानाफूसी ज्यादा है। महिला प्रत्याशी शगुफ्ता अजीम प्रचार में सबसे आगे हैं। चाय विक्रेता नदीम अहमद कहते हैं कि अररिया के लोग अमन पसंद हैं। यहां चुनाव के नाम पर जहर उगलने वालों की कोई जगह नहीं है। चुनाव वही जितेगा जो जनता का हितसाधक होगा। यहां का सबसे बड़ा मुद्दा विकास है। सीमांचल के लगभग सभी जिलों का विकास हुआ है, लेकिन अररिया इस मामले में काफी पिछड़ा है। हर वर्ष यहां के लोग बाढ़ की तबाही से परेशान रहते हैं। रोजगार के नाम पर सिर्फ मजदूरी है। आगे बढऩे पर जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र में चुनावी परिदृश्य कुछ अलग ही है। यहां दो भाइयों के बीच कांटे का मुकाबला है। सीमांचल के गांधी कहे जाने वाले तस्लीमुद्दीन के पुत्र सरफराज अहमद राजद के टिकट पर चुनावी मुकाबले में डटे हैं तो उनके भाई शहनवाज आलम एमआइएमआइएम के टिकट से अपने भाई के खिलाफ ही चुनाव मैदान में हैं। दोनों अपने पिता की विरासत को मतदाताओं के बीच भुनाने का प्रयास करते नजर आते हैं। जोकीहाट में एमआइएमआइएम के नेता ओवैसी का भी प्रभाव दिखता है। यहां पेशे से शिक्षक रहमानी कहते हैं कि जनता दोनों का मूल्यांकन बेहतर तरीके से कर रही है। तस्लीम साहब का असर पूरे सीमांलच में था। चुनाव के अंतिम दिन वोटरों का क्या रुख होगा, यह कह पाना मुश्किल है।
रानीगंज सुरक्षित सीट पर से मुकाबला आमने-सामने का है। सिकटी विधानसभा क्षेत्र में विकास मुख्य रूप से चुनावी मुद्दा बना है। यहां भाजपा से विजय कुमार मंडल और राजद के शत्रुघ्न मंडल के बीच सीधा मुकाबला है। विपक्ष इलाके में विकास न होने को मुद्दा बना रहा है तो सत्ता पक्ष के लोग क्षेत्र में हुए विकास कार्य को मतदाताओं के समक्ष अंगुलियों पर गिना रहे हैं। अररिया में कुल 83 प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे हैं।
पूर्णिया की स्थिति थोड़ी अलग है। यहां सात विधानसभा सीटों पर 105 प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं। चुनावी मैदान में दो मंत्री भी अपना भाग्य आजमा रहे हैं। पूर्णिया शहरी क्षेत्र में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है। भाजपा के विधायक विजय खेमका दूसरी बार जीत की कोशिश में लगे हैं जबकि कांग्रेस प्रत्याशी इंदु सिन्हा 2015 का चुनाव हारने के बाद दूसरी बार चुनाव मैदान में डटी हैं। आरएन साह चौक पर प्रभुनाथ राम बताते हैं कि पूर्णिया का भला किसी ने नहीं किया। यहां से करोड़ों का मक्का देश-विदेश भेजा जाता है, पर आज तक यहां खाद्य प्रसंस्करण उद्योग नहीं लग सका। किसानों को हर सरकार धोखा देती रही है। कोरोना काल में मकई को औन-पौन कीमत पर बेचना पड़ा। कसबा में त्रिकोण्रीय संघर्ष के आसार हैं। यहां कांग्रेस से विधायक आफाक आलम, हम से राजेंद्र यादव और लोजपा से प्रदीप दास चुनाव मैदान में हैं। यहां के मतदाता चुप्पी साधे हुए हैं। जातीय गोलबंदी यहां प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करती है। रूपौली से मंत्री बीमा भारती के लिए भी चुनाव जीतना इस बार आसान नहीं है। वहां भी लड़ाई त्रिकोणीय है। बीमा के पति अवधेश मंडल दबंग माने जाते हैं। बीमा जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। पत्नी चुनाव न हारे, इसकी चौतरफा व्यवस्था की कमान उन्होंने थाम रखी है। बनमनखी से मंत्री कृष्ण कुमार ऋषि भाजपा के टिकट पर तो धमदाहा से पूर्व मंत्री लेसी सिंह जदयू के टिकट पर चुनाव मैदान में डटे हैं। लेसी के पक्ष में प्रचार करने चुनाव के अंतिम दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी आना पड़ा। उनके आने का फायदा लेसी को मिल सकता है। किशनगंज जिले की सीमा बांग्लादेश और नेपाल के बॉर्डर को छूती है। यहां अल्पसंख्यक वोटरों की संख्या लगभग 68 फीसद है। शहरी सीट पर त्रिकोणात्मक संघर्ष के आसार हैं। कांग्रेस से इजराहुल हुसैन, एआइएमआइएम से कमरूल होदा और भाजपा की स्वीटी ङ्क्षसह के बीच कांटे की टक्कर है। कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी आ चुके हैं तो एआइएमआइएम के लिए चुनाव प्रचार की कमान स्वयं ओवैसी संभाल रहे हैं। किशनगंज की चारों विधानसभा सीटों पर एआइएमआइएम ने उम्मीदवार दिए हैं। इससे सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस और राजद प्रत्याशियों को होता दिख रहा है। चुनाव के अंतिम दिनों तक यदि ओवैसी फैक्टर मतदाताओं के सिर चढ़ कर बोलता रहा तो यहां का चुनावी परिणाम चौंकाने वाला होगा। यहां कुल 51 उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं। किशनगंज के ठाकुरगंज में मिले रंजीत मंडल का कहना था कि यहां दो ही वर्ग के लोग रहते हैं, या तो जमींदार या फिर खेतीहर मजदूर। इस इलाके में चाय का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। आज तक इसकी फैक्ट्री नहीं लग पाई। चुनाव के समय में हिंदू-मुस्लिम कहकर वोटरों को बांटा जाता है। वोटर बंट भी जाते हैंं पर चुनाव समाप्ति के बाद बांटने वाले लोग नजर नहीं आते।
कटिहार का चुनावी परि²श्य बड़ा ही अनूठा है। 2015 के चुनाव में यहां बीजेपी ने दो, राजद ने एक, कांग्रेस ने तीन और माले ने एक सीट पर जीत हासिल की थी। इस बार भी जदयू ने बरारी, मनिहारी व कदवा सीट पर अपना उम्मीदवार दिया है जबकि भाजपा ने कटिहार, कोढ़ा और प्राणपुर सीट पर अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं। बलरामपुर सीट वीआइपी के खाते में है। महागठबंधन की ओर से राजद सदर और बरारी सीट से चुनाव लड़ रही है। यहां कांग्रेस ने पिछले चुनाव में अपनी स्थिति को बेहतर देखते हुए चार सीटों पर दावा ठोंका है। कांग्रेस प्रत्याशी कदवा, मनिहारी, प्राणपुर और कोढ़ा में ताल ठोक रहे हैं। बलरामपुर सीट माले के खाते में है। 2015 के चुनाव में भी यह सीट माले के ही कब्जे में थी। यहां से एआइएमआइएम ने भी चुनावी मैदान में अपने प्रत्याशी उतारे हैं। चुनाव के विशेषज्ञों का मानना है कि ओवैसी फैक्टर महागठबंधन के लिए नुकसानदेह है। चुनाव प्रचार के अंतिम दिन के बाद कानाफूसी और वोट के ठेकेदारों का कितना चल पाएगा, यह 10 नवंबर को पता चलेगा।