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Bihar Assembly Election 2020 : ओवैसी ने सीमांचल में उलझाई अल्पसंख्यक राजनीति

Bihar Assembly Election 2020 किशनगंज तक सीमित ओवैसी की पार्टी सीमांचल में बढ़ा रही अपना दायरा बढ़ा रहा है। उपचुनाव में किशनगंज में हुई थी एक प्रत्याशी की जीत। असदउद्दीन ओवैसी अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र में अपनी पैठ बढ़ा रहे हैं।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Sun, 01 Nov 2020 09:35 AM (IST)Updated: Sun, 01 Nov 2020 09:35 AM (IST)
Bihar Assembly Election 2020 : ओवैसी ने सीमांचल में उलझाई अल्पसंख्यक राजनीति
एआइएमआइएम प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी बिहार के अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र में अपनी पैठ बढ़ा रहे हैं।

भागलपुर [संजय सिंह]। किसी जमाने में सीमांचल की राजनीति पर तस्लीमुद्दीन की पकड़ थी। उनके मरने के बाद सीमांचल में अल्पसंख्यक राजनीति में बिखराव आ गया। इसी बिखराव का फायदा उठाकर असदउद्दीन ओवैसी अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र में अपनी पैठ बढ़ा रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने सीमांचल के गांधी तस्लीमुद्दीन के पुत्र शाहनवाज आलम को जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र से अपना उम्मीदवार घोषित किया है। इनके भाई सरफराज आलम इसी सीट से राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।

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एक समय था कि सीमांचल के जिलों में तस्लीमुद्दीन के इशारों पर राजद के टिकट बंटते थे। अब इनके पुत्रों के बीच ही राजनीतिक महासमर छिड़ा हुआ है। इस प्रकार से किशनगंज जिले से पड़ोस के अररिया जिले के जोकीहाट के वोटबैंक में ओवैसी की पार्टी ने जबरदस्त सेंध लगाई है। किशनगंज में ओवैसी के सबसे विश्वस्त अख्तरुल ईमान माने जाते हैं। 2015 के चुनाव में एआइएमआइएम किशनगंज तक ही सीमित थी।

किशनगंज सीट पर 2019 में उपचुनाव हुए और कमरूल होदा को जीत मिली। इसी जीत की वजह से राज्य में एआइएमआइएम का खाता खुला। इस बार के चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने रालोसपा के साथ राजनीतिक तालमेल किया और सीमांचल की अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर अपने उम्मीदवार दिए। किशनगंज में चार और कटिहार-अररिया-पूर्णिया में तीन-तीन सीटों पर ओवैसी ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं। ये सीटें ऐसी हैं, जहां अल्पसंख्यक वोटरों की संख्या 50 से लेकर 65 फीसद तक है। सीमांचल में कटिहार के पूर्व सांसद और कांग्रेसी नेता तारिक अनवर की भी राजनीतिक दखल मजबूत मानी जाती है। चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद वे कहीं नजर नहीं आए, जबकि कटिहार की दो सीटों कोढ़ा और कदवा के निवर्तमान विधायक कांग्रेस के हैं। कांग्रेस इस बार कटिहार की तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही है। तारिक अनवर के राजनीतिक सीन में नहीं रहने के कारण ओवैसी को अपनी जड़ जमाने में और आसानी हुई है। सीमांचल में अल्पसंख्यकों की राजनीति मुख्य रूप से देशी और शेरशाहवादी मुसलमानों के बीच उलझती रही है। वैसे, इस इलाके में अल्पसंख्यकों को कई उपजातियों में बांटकर रखा गया है। जैसे कुल्हैया, खुट्टा, पश्चिमी आदि। ओवैसी के आने से अन्य दलों की राजनीति भी उलझ गई है। ऊपर से रालोसपा का साथ मिलने से कई अन्य दलों के उम्मीदवार भी अपनी जीत को लेकर खासे चिंतित हैं। ओवैसी आम तौर पर सनसनीखेज भाषण देकर मतदाताओं को आकर्षित करते हैं। अपनी सियासत को चमकाने के लिए कटिहार के बरारी विधानसभा क्षेत्र से राकेश कुमार और मनिहारी विधानसभा क्षेत्र से गोरैती मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर पिछड़े और अनुसूचित जनजाति के समीकरण को भी साधने की कोशिश की है। उन्हें अच्छी तरह से इस बात की जानकारी है कि पूर्णिया और कटिहार में आदिवासियों की संख्या ठीक-ठाक है। यह तो वक्त ही बताएगा कि ओवैसी के कितने उम्मीदवार चुनाव जीतेंगे, लेकिन सीमांचल में अल्पसंख्यक राजनीति उलझकर रह गई है।


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