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बिहार कृषि विश्वविद्यालय ने परवल की नई किस्म की है इजाद की, आप भी जानिए Bhagalpur News

गंगा किनारे बालू पर होने वाली परवल की फसल को अब कड़ी मिट्टी में भी आसानी से उत्पादित किया जा सकता है। जैविक उत्पादन कर किसान इससे स्वास्थवर्धक सब्जी के साथ बेहतर आय मिलेगा।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Sun, 16 Feb 2020 12:30 PM (IST)Updated: Sun, 16 Feb 2020 12:30 PM (IST)
बिहार कृषि विश्वविद्यालय ने परवल की नई किस्म की है इजाद की, आप भी जानिए Bhagalpur News
बिहार कृषि विश्वविद्यालय ने परवल की नई किस्म की है इजाद की, आप भी जानिए Bhagalpur News

भागलपुर [ललन तिवारी]। बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर (बीएयू) ने परवल की नई किस्म विकसित की है। देश में अब तक विकसित किस्मों की तुलना में इसका सबसे ज्यादा उत्पादन होगा। इसकी खासियत यह है कि कड़ी मिट्टी में भी गुणवत्तायुक्त जैविक उत्पादन किया जा सकता है। यह सामान्य परवल से जल्द और देर समय तक फलन देता है। इसमें प्रतिरोधक क्षमता भी ज्यादा होने के कारण रोग लगने की संभावना कम है।

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देश में 17 हजार छह सौ हेक्टेयर भूमि में परवल की खेती होती है, जिसमें उत्पादन तीन लाख 46 हजार पांच सौ टन होता है। देश में इसकी उत्पादकता का औसत 19.08 टन प्रति हेक्टेयर है जबकि बिहार में छह हजार पांच सौ हेक्टेयर भूमि में परवल की खेती होती है। यहां 69 हजार सात सौ टन उत्पादन होता है। औसत 10.06 टन प्रति हेक्टेयर का है।

बिहार का औसत उत्पादन आधा

परवल की नई किस्म विकसित करने वाले विज्ञानी डॉ. आरबी वर्मा कहते हैं कि राष्ट्रीय औसत से परवल की उत्पादकता बिहार में आधी है। इसका मूल कारण अच्छे किस्मों का अभाव और सेक्स रेसियो का संतुलन नहीं रहना है। बीएयू की ओर से विकसित परवल की नई किस्म का उत्पादन 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होगा जबकि अन्य किस्में 150 क्विंटल तक सिमट कर रह जाती हैं। नई किस्म की खेती करने से किसान तो समृद्ध बनेंगे ही औसत उत्पादकता भी देश की उत्पादकता से ज्यादा होगी। यदि इस किस्म को पूरे देश के किसान अपना लें तो परवल की उपज एक सौ क्विंटल तक प्रति हेक्टेयर ज्यादा होगी।

कड़ी मिट्टी में भी आसानी से होगा उत्पादन

गंगा किनारे बालू पर होने वाली परवल की फसल को अब कड़ी मिट्टी में भी आसानी से उत्पादित किया जा सकता है। जैविक उत्पादन कर किसान इससे स्वास्थवर्धक सब्जी के साथ बेहतर आय प्राप्त कर सकते हैं।

ऐसे लगाएं परवल

एक क्यूसेक फीट के गढ्ढा में बराबर मात्रा में कड़ी मिट्टी, गोबर की सड़ी खाद और गंगा का बालू साथ ही कुछ मात्रा में नीम की खल्ली मिलाकर गढ्ढा भर खेत तैयार कर लिया जाता है। मिट्टी इतनी हल्की हो कि जड़ तक वायु संचार हो सके। अक्टूबर माह में एक मीटर के परवल के पौधे की लत्ती आठ आकृति में मोड़कर एक कतार से दूसरे कतार की दूरी दो मीटर और एक मीटर पौधा से पौधा की दूरी में इसे लगाया जाता है। नर और मादा का औसत नौ अनुपात एक होना चाहिए। यह मार्च से अक्टूबर तक फलन देता है।

बहुत जल्द होगा रिलीज

प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. आरके सोहाने की मानें तो तीन वर्ष कड़े संघर्ष के बाद इस किस्म को प्रायोगिक प्रक्षेत्र के अलावा किसानों के खेतों पर सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया है। अब विश्वविद्यालय इसे रिलीज करने की तैयारी कर रहा है।

परवल की नई किस्म किसानों के लिए काफी लाभप्रद है। उत्पादित होने वाले परवलों में खास है। इसे बहुत जल्द रिलीज किया जाएगा। - डॉ. अजय कुमार सिंह, कुलपति बीएयू सबौर

बीएयू द्वारा विकसित परवल को राष्ट्रीय फलक पर ले जाया जाएगा, ताकि देश के सब्जी उत्पादक किसान समृद्ध बन सकें। - डॉ. प्रेम कुमार, कृषि मंत्री बिहार सरकार पटना


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