Bhagalpur coronavirus update: बिखरे पड़े हैं मास्क और ग्लब्स, निस्तारण की व्यवस्था नहीं, क्यों नहीं फैलेगा कोरोना, संभलिए
Bhagalpur coronavirus updateशहर में ढाई सौ एमटी कूड़े में करीब 100 किलोग्राम तक निकल रहा मास्क और ग्लब्स। नगर निगम ने पीले रंग के कूड़ेदान की नहीं की व्यवस्था। ऐसे में कोरोना वायरस का संक्रमण का खतरा काफी बढ़ा हुआ है।
जागरण संवाददाता भागलपुर। Bhagalpur coronavirus update: शहर में कोरोना संक्रमण को लेकर मास्क व ग्लब्स के साथ-साथ पीपीई किट का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। लोग संक्रमण से बचाव के लिए इसका उपयोग तो करते हैं। लेकिन इसके निस्तारण की कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। नतीजा घरों के कूड़े के साथ मास्क वह अन्न संक्रमण से संबंधित बचाव का सामग्री कूड़ेदान के साथ डाल दिया जाता है। सड़कों पर जहां-तहां मास्क बिखरे पड़े रहते हैं। शहर में जगह-जगह कूड़े के ढेर के साथ इसकी मात्रा बड़ी है जिसे डंपिंग ग्राउंड में नगर निगम फेंक रहा है। इससे काफी हद तक संक्रमण की संख्या भी बढ़ रही है। मास्क और ग्लब्स अलग से उठाव के लिए निगम के पास कोई व्यवस्था नहीं है। प्रतिदिन नगर निगम द्वारा ढाई सौ मेट्रिक टन पुणे का उठाव होता है। इसमें से करीब 100 किलोग्राम संक्रमण वाले पूरे निकल रहे हैं। जबकि संक्रमण वाले सामग्री को रखने के लिए पीले रंग के कूड़ेदान का इस्तेमाल किया जाना है।शहर में बायोमेडिकल वेस्ट को अलग से रखना है। सार्वजनिक स्थानों पर तीन तरह के डस्टबिन रखने की व्यवस्था है। कहीं भी इस डब्बे की व्यवस्था नहीं हुई।
वहीं घर में दो डस्टबिन रखने के लिए दिया जाना था। एक में किचन वेस्ट और दूसरे में सूखा कचरा डालना है। इस कूड़ेदान की खरीदारी के लिए नगर निगम बीते दो साल से प्रयास कर रहा है। लेकिन अब तक खरीदारी प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है। बहरहाल जब घरों में ही निगम हरे और नीले रंग के कूड़ेदान उपलब्ध नहीं करा पाया। ऐसे में पीले रंग के कूड़ेदान की और सोचना भी बेमानी है।
हरे कूड़ेदान में डालें गीला कचरा
रसोई घर से निकलने वाला सभी तरह का गीला कचरा इसमें डालें। सब्जियों-फल के छिलके, चाय पत्ती, खाना बनाने के दौरान जो गीला कचरा इकट्ठा होता है उसे हरे डस्टबिन में डालना है। इसके अलावा पूजा सामग्री, फूल भी इसी में डालने हैं।
नीले में डालें सूखा कचरा
प्लास्टिक कवर, बोटल, चिप्स पैकेट के रैपर, दूध की खाली थैली, पिज्जा बॉक्स पेपर, मेटल, जार व अन्य प्रकार का हार्ड वेस्ट समेत जो भी घर में सूखा कचरा निकलता है उसे नीले कूड़ेदान में डालना है।
लाल या काले डस्टबिन में डालें यह सामान
इसमें खतरनाक ठोस अपशिष्ट डालने हैं जिसमें किसी भी प्रकार का बायोमेडिकल वेस्ट, सेनिटरी नेपकिन, डायपर, कंडोम, एक्सपायर दवाई।
पैथोलॉजी, ब्लड बैंक, ऑपरेशन थियेटर, जनरल वार्ड, बर्न वार्ड आदि में रखे रहने वाले लाल रंग के डिब्बे में ट्यूबिन, ग्लब्स, आईवी सेट, ब्लड बैग, यूरिन बैग जैसी इंफेक्टेड सामग्री डाली जाती है।
पीला रंग के कूड़ेदान का भी महत्व
पीले रंग के डिब्बे में मानव उत्तक (टिश्यू), रक्त रंजित रुई, पट्टियां, प्लेसेंटा (बच्चे की नाल), मान के कटे हुए भाग आदि डाले जाते हैं।
नीला कूड़ा दान में इसका करें इस्तेमाल
ब्लेड्स, दवाओं का कचरा, कांच की टूटी बोतलें, प्लास्टिक की टूटी-फूटी बोतलें आदि सामान नीले रंग के डिब्बे में डाली जाती हैं।
अस्पताल के कचरे से प्रदूषण
नर्सिग होम और क्लीनिकों से अस्पताल का कचरा उठाया जाता है। इसे मायागंज के प्लांट में इंसीनेटर से निस्तारण किया जाता है। कई निजी क्लिनिक का कचरा सड़क पर या कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है। इससे संक्रमण का भी खतरा बढ़ रहा है। खुले में बायो मेडिकल वेस्ट पड़ा रहने और इसमें आग लगाने से तमाम तरह के इंफेक्शन फैलने की आशंका रहती है। टीबी, निमोनिया, फेंफड़ों संबंधी बीमारी, अस्थमा, खांसी, दमा और ब्रांकाइटिस आदि बीमारियों की आशंका रहती है। इसके अलावा कटे मानव अंगों, मांस के टुकड़े, मवाद और खून आदि की बदबू से वातावरण दूषित होता है।
निगम के पास लाल पीले रंग का कूड़ा दान नहीं है। अगर गोदाम में होगा तो कुछ सार्वजनिक स्थल पर रखा जाएगा। स्वास्थ्य विभाग को भी इसके लिए पहल करना चाहिए। संक्रमित वाले सामग्री के निस्तारण की अलग से व्यवस्था हो। - प्रफुल्ल चंद्र यादव ,प्रभारी नगर आयुक्त