जब अपने बने बेगाने, तब काम आया राजेंद्र का कंधा... अब तक 14 हजार शवों का कर चुका है अंत्यपरीक्षण, जानिए...
बांका का कोरोना योद्धा राजेंद्र लोगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता है। लावारिस शवों के भी ये इकलौते तारणहार हैं। राजेंद्र की असली परीक्षा इस बार कोरोना काल में हुई। पिछले तीन दशक से बिना सरकारी नौकरी के जिला में दुर्घटना और हत्या वाले शवों का रक्षक है।
जागरण संवाददाता, बांका। सदर अस्पताल में ठिगना और दुर्बल काया वाले इस बेजान शख्स पर आपकी नजरें कभी जरूर पड़ी होगी। इनका नाम है राजेंद्र। पिछले तीन दशक से बिना सरकारी नौकरी के जिला में दुर्घटना और हत्या वाले शवों का रक्षक है। वे अब तक 14 हजार से अधिक शव का पोस्टमार्टम कर चुके हैं। जिला के लावारिस शवों के भी ये इकलौते तारणहार हैं। राजेंद्र की असली परीक्षा इस बार कोरोना काल में हुई। जब गांव समाज से लेकर अस्पताल और आइसोलेशन वार्ड में कोरोना संक्रमित आने से दहशत फैल जाता था। लेकिन उस वक्त भी राजेंद्र ने लोगों की मदद की।
...तब लोग शव को हाथ लगाने से भी डर रहे थे
कोरोना से मौत के बाद तो उसके स्वजन भी शव से अपना ङ्क्षपड छुड़ाना चाहते थे। ऐसे में तीन दशक से मजबूत हो चुका राजेंद्र का कंधा उनके काम आया। कोरोना संक्रमण से अमरपुर थाना के दारोगा की मौत के बाद बांका अस्पताल में उसका शेव लेने वाला कोई नहीं था। राजेंद्र के सहारे शव का चांदन नदी में अंतिम संस्कार हुआ। यह सिलसिला यहीं नहीं रूका। शहर में पुरानी बस स्टैंड की एक महिला संक्रमित की मौत लकड़ीकोला आइसोलेशन सेंटर में हो गई। उसके शव का भी कुछ सहयोगियों के साथ राजेंद्र ने नदी में अंतिम संस्कार किया।
होमगार्ड जवान के शव को भी दिया कंधा
बेलहर के होमगार्ड जवान की मौत पर शव के अंतिम संस्कार का जिम्मा राजेंद्र पर आ गया। इसके पहले कोरोना की संदिग्ध मौत पर पंजवारा के संक्रमित के शव का अंतिम संस्कार राजेंद्र ने किया। बाद में उसकी रिपोर्ट निगेटिव आई। राजेंद्र कहते हैं कि शव तो उसकी ङ्क्षजदगी बन गई है। उसकी जिंदगी हजारों शवों से खेलकर ही आगे बढ़ रही है। दरकार थी कि सरकार उसे अस्पताल में सरकारी नौकरी दे दे। ताकि उसके परिवार और बच्चों का भविष्य लाश न बने।