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बांस की खेती: उन्नत किस्म से किसानों को पहुंच रहा लाभ, कटिहार में फल फूल रहा ये व्यापार

कटिहार में बांस की खेती ने जोर पकड़ लिया है। उन्नत किस्म की खेती से किसानों को दोगुना लाभ मिल रहा है। यही वजह है कि कटिहार में बांस के व्यापार ने जोर पकड़ लिया है। लाभकारी खेती को लेकर अब यहां रकवा बढ़ गया है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट....

By Shivam BajpaiEdited By: Published: Thu, 20 Jan 2022 03:42 PM (IST)Updated: Thu, 20 Jan 2022 03:42 PM (IST)
बांस की खेती: उन्नत किस्म से किसानों को पहुंच रहा लाभ, कटिहार में फल फूल रहा ये व्यापार
कटिहार में बांस की खेती का रकवा बढ़ा।

संवाद सूत्र, हसनगंज, कटिहार: प्रखंड क्षेत्र में बांस की खेती का रकवा बढ़ रहा है। नकदी के रूप में यह किसानों के लिए काफी फायदेमंद माना जा रहा है। वैसे तो ग्रामीण क्षेत्रों में बांस की खेती काफी पूर्व काल से होती आ रही है। लेकिन अब उन्नत किस्म की बांस लगाकर किसान इससे ज्यादा फायदा कमा रहे हैं। जिसका परिणाम है कि अन्य किसान भी इसमें रूचि ले रहे हैं। प्रखंड क्षेत्र में बडे पैमाने पर बांस की खेती होती है। परंतु किसानों के लिए नई प्रजाति के बांस की खेती बड़ा सहारा बन रहा है। ग्रीन एटीएम के नाम से प्रचलित बांस की खेती उनके लिए बड़ा आर्थिक संबल साबित हो रहा है। इसका उपयोग घर बनाने के साथ-साथ पौधों की घेराबंदी, बांस की सामग्री बनाने समेत अन्य कार्यों में किया जाता है।

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हसनगंज प्रखंड के कालसर पंचायत में उन्नत किस्म के बांस की खेती के प्रति किसानों का रुझान ज्यादा बढ़ा है। किसान मायाशंकर विश्वास ने बताया कि करीब दो एकड़ में साधारण बांस की खेती किया करते थे। जिससे सलाना करीब एक लाख की आमदनी बांस से हो जाती थी। बांस की खेती में कुछ अलग करने की चाहत से रुपौली प्रखंड स्थित अपने स्वजनों के यहां से उन्नत किस्म के बांस का एक पेड़ लाकर यहां लगाए। जिससे एक पूरा बगान तैयार हो गया।

इसकी बढ़ती मांग व अन्य बांसों की तुलना में इसका चार गुना ज्यादा कीमत मिलने से इसकी ज्यादा रकवे में खेती कर रहे हैं। इस तरह अन्य किसान भी इस प्रजाति के बांस लगाने की दिशा में पहल कर रहे हैं। बता दें कि जहां साधारण बांस नौ से 11 इंच मोटा होता है और सौ रुपए में उसकी बिक्री होती है। वहीं इस प्रजाति की बांस 30 से 40 इंच मोटा होता है और चार से पांच सौ रुपए प्रति पीस की दर से इसकी बिक्री होती हैं। इससे अन्य किसानों का भी रुझान इस बांस की खेती के प्रति बढ़ रहा है।


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