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एशिया के पहले रेशम कॉलेज का सौ साल पूरा, अब खंडहर है गवाह, पिछले 24 साल से पहचान को मोहताज, जानिए

भागलपुर में स्‍थापित एशिया के पहले रेशम महाविदयाल के सौ साल पूरे हो गए। लेकिन पिछले 24 साल से यह पहचान को मोहताज है। अब यहां पर केवल खंडहर बच गया है। जबकि संस्‍थान के कई छात्र शीर्ष पदों पर हैं।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Sat, 12 Jun 2021 10:16 AM (IST)Updated: Sat, 12 Jun 2021 10:16 AM (IST)
एशिया के पहले रेशम कॉलेज का सौ साल पूरा, अब खंडहर है गवाह, पिछले 24 साल से पहचान को मोहताज, जानिए
भागलपुर में स्‍थापित एशिया के पहले रेशम महाविदयाल के सौ साल पूरे हो गए।

जागरण संवाददाता, भागलपुर। भागलपुर के रेशम उद्योग को मजबूती प्रदान करने के लिए 1921 में स्थानीय नाथनगर में स्थापित एशिया का पहला रेशम संस्थान आज अपनी पहचान को मोहताज हो गया है। वर्ष 1921 से 1977 तक यहां के एक वर्षीय सर्टिफिकेट कोर्स में छात्र रेशम उत्पादन, कीट पालन से लेकर रेशम वस्त्रों की रंगाई, छपाई व बुनाई का प्रशिक्षण पाते थे। वर्ष 1977 में बिहार की जनता पार्टी की सरकार ने इसकी अहमियत को देखते इसे बिहार रेशम महाविद्यालय का दर्जा दे दिया। वर्ष 1978 से 1997 तक यहां बीटेक इन सिल्क टेक्नोलॉजी की चार वर्षीय कोर्स की पढ़ाई हुई। इसमें छात्रों को रेशम धागे का उत्पादन सहित वस्त्रों की रंगाई, छपाई, डिजाइन आदि की आधुनिक शिक्षा दी जाती थी।

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उससे भागलपुर सहित देश के समस्त रेशम उत्पादन इकाईयों को लाभ मिल रहा था। लेकिन 1997 में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद

(एआईसीटी) ने शिक्षकों की कमी सहित अन्य आवश्यक संसाधनों की कमी पूरी करने तक इसकी मान्यता रद कर दी। तब से यह महाविद्यालय में डिग्री स्तरीय पढ़ाई बंद है। भागलपुर के पूर्व सांसद शाहनवाज हुसैन के उद्योग मंत्री बनने के बाद उद्योग विभाग द्वारा यहां आवश्यक संसाधनों की पूर्ति किए जाने व एआइसीटीई की मान्यता बहाल होने की आशा जगी है।

आनन.फानन में शुरू हुई पढ़ाई अब बंद होने के कगार पर

भागलपुर के पूर्व सांसद व शिक्षाविद् डॉ. रामजी सिंह ने इस महाविद्यालय में दोबारा बीटेक की पढ़ाई शुरू कराने के लिए 1998 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट के आदेश पर उद्योग विभाग ने यहां 2005 में इंटरस्तरीय वोकेशनल कोर्स इन सिल्क टेक्नोलॉजी की पढ़ाई तो शुरू कराई लेकिन कॉलेज की मान्यता हासिल करने के प्रति उदासीन बना रहा। हालांकि इन दिनों इस संस्थान में शिक्षक व शिक्षणेतर कर्मियों के 76 सृजित पद की तुलना में मात्र नौ रह जाने से अब यह भी बंद होने के कगार पर पहुंच गया है।

संस्थान ने अब तक किया प्रयास

संसाधन की ओर से महाविद्यालय की मान्यता पाने के लिए विगत दो वर्षों से प्रयास जारी है। यह जानकारी देते हुए प्राचार्य सुनिता मिश्रा ने बताया कि उन्होंने यहां 2021-22 सत्र की पढ़ाई शुरू कराने के लिए विगत अप्रैल में एआइसीटीई को पुन: आवेदन दिया है। इस बीच उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन ने फरवरी में रेशम महाविद्यालय की संसाधन संबंधी कमियां दूर कराकर वहां पुन: पढ़ाई शुरू कराने का आश्वासन दिया है।

ऊंचे पदों पर हैं रेशम महाविद्यालय से पृर्ववर्ती छात्र

इस रेशम संस्थान व महाविद्यालय से सिल्क की तकनीकी डिग्री कोर्स की पढ़ाई पूरी करने वाले कई पूर्ववर्ती छात्र आज बीआइटी मेसरा व पटियाला जैसे इंजीनियरिंग कॉलेज में टेक्सटाइल इंजीनियरिंग के विभागाध्यक्ष हैं। कई पूर्ववर्ती छात्र जिला उद्योग के महाप्रबंधक के रूप में व वस्त्र मंत्रालय के विभिन्न विभागों में सेवा दे रहे हैं।

करोड़ों के उपकरण हुए बेकार

1997 में रेशम महाविद्यालय में बीटेक की पढ़ाई बंद होने के बाद वहां की प्रयोगशाला में रखी करीब 30 करोड़ से अधिक की मशीनें खराब हो चुकी हैं। इनमें यार्न टेस्टिंग मशीन, कलर डिजाइन मशीन, कंप्यूटर आदि शामिल हैं।

एआइसीटीई से मान्यता पाने के लिए अप्रैल में आवेदन किया गया है। लेकिन मानव बल व संसाधन की कमी बाधा उत्पन्न कर रही है।

-सुनीता मिश्रा, प्राचार्या, रेशम संस्थान

यहां के वोकेशनल कोर्स को डिग्री कोर्स में बदलने के लिए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को प्रस्ताव भेजा गया है। भारत सरकार के माध्यम से आधारभूत संरचना की कमियां दूर की जाएंगी।

शाहनवाज हुसैन, मंत्री, उद्योग विभाग 


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