यहां से बक्सर तक बनेगा अश्वगंधा कॉरीडोर, औषधीय पौधों का होगा विकास, BAU की ऐसी है तैयारी
Ashwagandha corridor केंद्र सरकार से राशि मिलने के बाद काम होगा। औषधीय पौधों के विकास के लिए अनुसंधान चल रहा है। जानिए... इसके क्या हैं फायदे।
भागलपुर [ललन तिवारी]। भागलपुर से बक्सर तक गंगा के किनारे औषधीय कॉरीडोर बनेगा। प्रधानमंत्री के बीस लाख करोड़ में चार हजार करोड़ के राहत पैकेज से कॉरीडोर विकसित करने के लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय(बीएयू) को राशि मिलने वाली है। बीएयू का क्षेत्र बक्सर से भागलपुर तक है। इस इलाके में गंगा के किनारे अश्वगंधा के पौधे लगाए जाएंगे। विश्वविद्यालय ने इसकी तैयारी शुरु कर दी है। सरकार के आदेश का इंतजार कर रहा है।
बीएयू में पहले से हो रहा काम
बीएयू के प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. आरके सोहाने का कहना है कि औषधीय पौधों के विकास और किसानों तक इसकी पहुंच के लिए पहले से ही अनुसंधान किया जा रहा है। पैकेज मिलने के बाद व्यापक पैमाने पर काम किया जाएगा। औषधीय पौधों के लिए बाजार की कोई समस्या नहीं है। कोरोना जैसी महामारी के दौरान उत्पादन से ज्यादा इनकी मांग है। सरकार से आदेश मिलते ही किसानों को औषधीय खेती का प्रशिक्षण देकर इसके लिए प्रेरित किया जाएगा।
अश्वगंधा पर ही फोकस क्यों
अश्वगंधा में रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत ज्यादा है। यह इम्यूनिटी बूस्टर की तरह काम करता है। कोरोना काल में इसकी विश्वस्तर पर मांग हो रही है। अश्वगंधा की खेती आसान है। इसे अपनाकर किसान तीव्र गति से समृद्ध बनेंगे। अश्वगंधा की जड़ सबसे उपयोगी है। हर उम्र के लोग इसका प्रयोग कर सकते हैं। दवा बनाने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।
गंगा का किनारा ही क्यों
देश की सांस्कृतिक विरासत गंगा नदी है। औषधियां और गंगा दोनों हिमालय की गोद से निकली है। गंगा के जल में औषधीय गुण पाए जाते हैं। गंगा के किनारों को सरकार पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना चाहती है। बक्सर से भागलपुर तक की दूरी 445 किलोमीटर है। गंगा किनारे के कुछ गांवों का चयन कर उसके कुछ रकवे में प्रयोग के तौर पर किसानों के खेतों में औषधीय पौधों की खेती की जाएगी।
नालंदा में लगाए गए कई औषधीय पौधे
पान अनुसंधान केंद्र, इस्लामपुर, नालंदा के प्रभारी डॉ. एसएन दास कहते हैं कि यहां के हर्बल गार्डन में औषधीय पौधे अश्वगंधा, सतावरी, तुलसी, मधुनाशनी, सफेद मूसली तथा गिलोय सहित एक सौ पौधों का कलेक्शन है। जरूरत पर बड़े पैमाने पर पौधे तैयार कर किसानों को उपलब्ध कराए जा सकते हैं। इन पौधों पर अनुसंधान भी जारी है।
औषधीय पौधों की खेती की बिहार में अपार संभावनाएं हैं। इसका बाजार भी उपलब्ध है। कोरोना के दौर में यह जरूरत भी है। बड़े क्षेत्र में किसान इसकी खेती करेंगे। विवि इसकी कंक्रीट कार्ययोजना तैयार कर रहा है। - डॉ. अजय कुमार सिंह, कुलपति, बीएयू, सबौर