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Araria News: परंपरागत तरीके से की गई गोबर्धन पूजाए, दुधारू पशुओं की लोगों ने की पूजा-अर्चना

Araria News हर साल की तरह इस बार भी परंपरागत तरीके से शहर से लेकर गांव तक लोगों ने गोवर्धन की पूजा की। इस दौरान दुधारू पशुओं को भी लोगों ने चुमाया। इस दौरान हर जगह भक्ति का माहौल देेखने को मिला।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Sun, 15 Nov 2020 04:06 PM (IST)Updated: Sun, 15 Nov 2020 04:06 PM (IST)
Araria News: परंपरागत तरीके से की गई गोबर्धन पूजाए, दुधारू पशुओं की लोगों ने की पूजा-अर्चना
अरिया में लोगों ने धूम धामन से किया गोवर्धन पूजा।

अररिया, जेएनएन। प्रकृति से जुड़ा हर चराचर जीवों का पालन हार करने वाली माता लक्ष्मी पूजा के साथ साथ रविवार को गोबर्धन पूजा भी धूमधाम के साथ मनाया गया। फारबिसगंज प्रखंड के ग्रामीण क्षेत्र के विभिन्न गावों के लोगों व किसान परिवारों ने परंपरागत ढंग से पूरी रश्म- रिवाज के साथ मनाया। इस मौके पर महिलाओं ने परंपरागत तरीके से भगवान गोधन की आकृति बनाकर उसकी पूजा की। वही इस मौके पर बैल, गाय, भैंस आदि दुधारू पशुओं को नहला धुलाकर कर चूमाया गया। पशुपालक किसान द्वारा गाय, भैंस के सिंह सिर पर सिंंंंंलगाया गया। तथा इस मौके पर गाय, भैंस सहित अन्य पशुओं को रंग- बिरंगे रस्सी - डोरे गले में पहनाया गया।  पलासी क्षेत्र में रविवार को गोवर्धन पूजा के अवसर पर मवेशियों का श्रृंगार कर पूजा - अर्चना की गईा

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गौ माता काेे सजा संवार कर की गई पूजा 

वहीं सिकटी-प्रखंड क्षेत्र मे भी परंपरागत रुप मे पशुओं की पूजा गोवर्धन पूजा (सुकरतिया)मनाया गया।जिसमे पशु पालकों ने अपने अपने पशुओं को नहला धुलाकर नये परिधान ठेका, मुखाड़ी, गलदामी पहनाकर एवं रंग लगाकर उनकी पूजा अर्चना कर धन धान्य का आशीष माँगा जाता है। घर की गृहणियां गाय को तेल सिंदुर लगाकर तथा पैर धोकर पूजा अर्चना कर धन धान्य से परिपूर्ण होने का आशीर्वाद माँगीी।इस अवसर पर  गाय भैंस के चुमावन की प्रथा भी होती है।

भगवान श्रीकृष्ण को माना जाता है पशु रक्षक देवता

पुरानी मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग मे भगवान इन्द्र ने भारी बारिश कर पृथ्वी के पशुओं के लिए घोर संकट पैदा कर दिया।तब जाकर भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल मे गोवर्धन पर्वत अपने कानी अंगुली पर उठाकर पशुओं की रक्षा की थी।तब से ही गोवर्धन पर्वत को पशुओं के रक्षक देवता मानकर आज के दिन पूजा अर्चना की जाती है।अपने अपने गोहाल मे गोबर से गोवर्धन की प्रतिमा बनायी जाती है।जिसकी पूजा होती है।इस अवसर पर पशुओं को एक खास किस्म का घास पखैव खिलाया जाता है।जिसके कारण इस पर्व को पखैवा भी कहा जाता है।इससे पहले दिपावली के दिन देर रात्रि मे पान लेकर पशुओं को पखैवा पर्व के लिए निमंत्रण देने का भी ग्रामीण क्षेत्रों मे रिवाज चलता आ रहा है।


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