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इस गांव में रहते हैं पशु प्रेमी... कुएं में गिरे साढ़ को इस तरह दे दिया नया जीवनदान, चार दिनों से था भूखा-प्यासा

जमुई में गांव वालों की मदद से एक साढ़ को नया जीवन मिल गया। साढ़ चार दिन से कुएं में गिरा था। गांव के लोगों ने करीब सात घंटे की कड़ी मशक्‍कत के बाद उसे बाहर निकाल दिया।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Thu, 25 Mar 2021 04:30 PM (IST)Updated: Thu, 25 Mar 2021 04:30 PM (IST)
इस गांव में रहते हैं पशु प्रेमी... कुएं में गिरे साढ़ को इस तरह दे दिया नया जीवनदान, चार दिनों से था भूखा-प्यासा
जमुई में गांव वालों की मदद से एक साढ़ को नया जीवन मिल गया।

संवाद सूत्र, चंद्रमंडी(जमुई)। पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम और लगाव आज भी गांव के लोगों में खूब देखने को मिलता है। चाहे वह पशु उसे नुकसान ही क्यों ना पहुंचाता हो, उसे भी लोग कष्ट में देखना नहीं चाहते हैं। यही कारण है कि जो साढ किसानों की फसलों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाते हैं, गांव के लोगों को देखते ही मारने के लिए दौड़ते हैं, उसे भी लोग नया जीवन दे देते हैं।

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जमुई के लोगों ने पेश की पशु प्रेम की मिसाल

ऐसा ही एक मामला जमुई में देखने को मिला। चकाई थाना क्षेत्र के पोझा पंचायत अंतर्गत दुम्मा गांव में चार दिन पूर्व से कुएं में गिरे और भूखे-प्यासे एक सांढ़ को बुधवार को ग्रामीणों ने कड़ी मशक्कत के बाद निकालने में सफलता प्राप्त की। स्थानीय लोगों ने बताया कि करीब चार दिन पूर्व एक सांढ़ कहीं से आकर गांव स्थित कुएं में गिर गया। कुआं में कम पानी होने के कारण सांढ़ को काफी चोट भी लगी और वहीं अंदर में गिरा रहा। बाद में गांव के लोगों को उस पर नजर पड़ी तो ऊपर से खाने के लिए पुआल डाल दिया लेकिन ग्रामीण सांढ़ को नहीं निकाल नहीं पाए।

गांव वाले पिछले चार दिनों से दे रहे थे भोजन

पिछले चार दिनों से ग्रामीण कुआं में पुआल डालकर कर सांढ़ को जीवित रखे हुए थे। इसी क्रम में बुधवार को सामाजिक कार्यकर्ता वापी कुमार, सुनील कुमार, अशोक कुमार ,रंजीत कुमार नीरज राय ,कौशल पकौड़ी राय आदि एकजुट होकर लगभग सात घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद अन्य ग्रामीणों के सहयोग से कुएं में गिरे सांढ़ को रस्सी के सहारे निकालने में सफलता प्राप्त की। सांढ़ को निकालने के बाद ग्रामीणों ने उसका इलाज भी कराया। इसके बाद ग्रामीणों ने राहत की सांस ली। स्थानीय लोगों द्वारा सांढ़ को खाना-पानी दिया जा रहा है। इससे साढ़ को भूखे नहीं रहना पड़ा।  


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