मछली और मुर्गा पालन साथ-साथ, आय दोगुनी
किसान धान-गेहूं और मक्का की परंपरागत खेती पर ही आश्रित नहीं हैं।
जेएनएन,खगड़िया: बदलते समय में खेती-किसानी से लेकर रोजी-रोजगार की परिभाषा बदल रही है। अब किसान धान-गेहूं और मक्का की परंपरागत खेती पर ही आश्रित नहीं हैं। खेती किसानी दो वक्त की रोटी का जुगाड़ नहीं रहा, बल्कि सपनों को पंख देने का माध्यम बन गया है। अब यहां के किसान नई-नई तकनीक अपनाकर आमदनी दोगुनी करने में लगे हैं। एक ओर जहां अंतर्वर्ती खेती का जोर है, दूसरी ओर मत्स्य पालन के साथ-साथ मुर्गा पालन से वे आमदनी बढ़ा रहे हैं। इसमें विभागीय सहयोग भी मिल रहा है। 50 प्रतिशत अनुदान है।
पहले पोखर-तालाब में केवल मछली पालन होता था। लेकिन अब मछली पालन के साथ-साथ पोखर के महार पर मुर्गा पालन भी किया जा रहा है। फिलहाल इसकी शुरुआत बेला-नौवाद गांव से हुई है। यहां के किसान अरुण कुमार यादव एक हेक्टेयर के तालाब में मत्स्य पालन कर रहे हैं और इसके किनारे मुर्गा पालन। एक हेक्टेयर तालाब में छह माह में तीन से चार टन मछलियां पैदा होती है। जिसमें लागत खर्च डेढ़-दो लाख के आसपास आता है और आमदनी चार से पांच लाख तक है। जबकि तीन माह में एक हजार मुर्गियां भी तैयार हो जाती है। एक हजार मुर्गियों पर 75 हजार के आसपास खर्च है, जबकि मुनाफा डेढ़ लाख तक हो जाता है। अरुण की देखादेखी अब यहां के राजेश रंजन भी इस ओर अग्रसर हुए हैं। उनका तालाब बन रहा है। जबकि बेला नौवाद और चौथम के एक-एक किसान भी इस दिशा में कदम आगे बढ़ा चुके हैं। कोट
एक हेक्टेयर जलक्षेत्र के किनारे एक हजार मुर्गियों का पालन हो सकता है। मत्स्य विभाग की ओर से इस पर 50 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है। मत्स्य पालन के साथ-साथ मुर्गा पालन से किसान आर्थिक रूप से सबल हो रहे हैं। धीरे-धीरे उनका झुकाव इस ओर बढ़ रहा है।
लाल बहादुर साथी, जिला मत्स्य पदाधिकारी, खगड़िया।