सड़क चौड़ी करने के चक्कर में सूखा दिए 150 फलदार पेड़, लाखों रुपये हुए बर्बाद
आजादी के पूर्व लगाए गए इन पेड़ों को हाइड्रा मशीन और जेसीबी के जरिये उखाड़कर 166 पेड़ों में 120 पेड़ लगाए गए। इन पेड़ों के सूखने से 70 लाख की योजना कारगर साबित नही हो पाई।
बांका [बोध नारायण तिवारी]। राज्य सरकार द्वारा लाखों रुपये खर्च करने के वावजूद बूढ़े बरगद को बचाने का प्रयास नाकाम रहा। करीब सौ वर्ष पुराने पेड़ की डालियों की कटाई की गई। इन्हें मशीन से उखाड़कर दूसरे स्थान पर लगाया गया। इनमें से एक-दो पेड़ को छोड़ सारे पेड़ सूख गए।
बांका जिले के धोरैया प्रखंड के अंतर्गत धोरैया पंजवारा मुख्य मार्ग पर आवागमन के बढ़ते दबाव को देखते हुए सड़कों का निर्माण और चौड़ीकरण का कार्य भी होना है। इनमें बाधक बने इन पेड़ों को हटाकर थोड़ी दूर में शिफ्ट करना था, लेकिन किया गया प्रयास सार्थक नही हुआ। आजादी के पूर्व लगाए गए इन पेड़ों को हाइड्रा मशीन और जेसीबी के जरिये उखाड़कर 166 पेड़ों में 120 पेड़ लगाए गए। इन पेड़ों के सूखने से 70 लाख की योजना कारगर साबित नही हो पाई। बताया जाता है कि पंजवारा से घोघा तक करीब 45 किलोमीटर सड़क का निर्माण कार्य होना है। दस मीटर चौड़ी सड़क के निर्माण में तीन सौ छोटे-बड़े पेड़ हटाने थे। बिहार स्टेट रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने कार्य का जिम्मा एके बिल्डर कंपनी को दिया है।
मुख्य जड़ कटने के कारण सूखा पेड़ : वन विभाग के कर्मियों की मानें तो पुराने आम के पेड़ को उखाडऩे में काफी सावधानियों की जरूरत होती है। पेड़ उखाडऩे के दौरान यदि उसकी मुख्य जड़ कट जाती है तो आम का पेड़ लगना मुश्किल हो जाता है। दूसरे प्रजाति जैसे बरगद, पीपल, नीम आदि के पेड़ इस प्रकार आसान तरीके से लग जाते हैं।
छह महीनों तक करनी थी देखभाल : सड़क किनारे सरकारी जमीन पर सौ साल पुराने आम के पेड़ को उखाड़कर लगाने के साथ-साथ उसकी देखभाल छह महीने तक करनी थी। पेड़ों को लगाने के बाद एक दिन भी इनकी सिंचाई नहीं की गई। इस कारण सारे पेड़ सूख गए। लाखों खर्च के बाद भी बूढ़े बरगद को बचाने के लिए किया गया प्रयास सार्थक नही हुआ।
कहते है अधिकारी : वन क्षेत्र पदाधिकारी अरुण कुमार ने बताया कि पंजवारा से बटसार के बीच 21 किलोमीटर तक कुल करीब 166 पेड़ों को उखाड़कर हाइड्रा मशीन के जरिये लगाना था। इनमें से 120 पेड़ हटाए गए। यह कार्य 70 लाख की राशि से होना है। संवेदक द्वारा पेड़ों की छंटाई ठीक तरीके से नहीं की गई। पेड़ लगाने के दौरान सिंचाई भी नहीं की गई। इसकी शिकायत वरीय पदाधिकारी से करने पर पेड़ को हटाने का कार्य बंद कर दिया गया है। इस कार्य को बिहार राज्य पथ निर्माण विभाग दिल्ली के संवेदक रोहित नर्सरी से करा रहा है।
पर्यावरण मित्र आलोक कुमार ने कहा कि पुराने पेड़ को उखाड़कर लगाना पर्यावरण के साथ खिलवाड़ है। यदि नया पेड़ लगाने के साथ उसका संरक्षण किया गया होता तो 15 किलोमीटर इस लंबी सड़क पर हरियाली दिखाई पड़ती। इससे सरकार को काफी नुकसान हुआ है। रुपये की बर्बादी हुई।
समाजसेवी विनय कुमार मोदी ने कहा कि भारत जैसे देश में यह तकनीक अभी तक पूरी तरह सफल नहीं हो सकी है। बड़े और विशाल पेड़ों को एक जगह से हटाकर दूसरे जगह लगाने से सिर्फ रुपये की बर्बादी होती है। ज्यादा वृक्ष मर जाते हैं। इससे तो और भी नुकसान हुआ कि जहां पेड़ था वहां तो कम से कम शीतल छाया और फल मिलता था।
कृषि विज्ञान केंद्र बांका के वैज्ञानिक डॉ मुनेश्वर प्रसाद ने कहा कि पुराने पेड़ को दूसरे जगह उखाड़कर लगाने से उसका मूल जड़ टूट जाता है। नया जड़ बनाने में उसे एक से डेढ़ महीने लग जाते हैं, यदि बरसात के मौसम में पेड़ों को लगाने का कार्य किया गया होता तो बचने की संभावना होती। साथ ही जब पेड़ की डाली को काटा जाता है, तो उससे जो हार्मोन निकलता है, उसका गंध आम की तरह होता है। गंध के कारण तना छेदक कीड़ा उसपर बैठ जाता है। वह पेड़ को सुखाने के काम करता है। इसलिए पेड़ को उस कीड़े से बचाने के लिए चुना से पेंट कर दिया जाता है।