आखिर कब तक सहेंगे कोश-कन्हा कहे जाने का दर्द, बाढ़ बदल देती है गांव का भूगोल
तटबंध के निर्माण के बाद से अंदर के 250 गांवों के लोग कोश-कान्हा का दर्द झेल रहे है। जब तटबंध का निर्माण हुआ। हर साल बाढ़ आती है । खेती-बाड़ी चली जाती है। पानी उतरने तक इन्हें निर्वासित जिंदगी काटनी पड़ती है।
जागरण संवाददाता, सुपौल । कोसी के दो पाटों के बीच अवस्थित लगभग ढाई सौ गांव के लोगों को तटबंध के बाहर के लोग कोश-कन्हा कहते हैं। इस शब्द का दर्द तटबंध के अंदर के लोग उस समय से झेल रहे हैं जब तटबंध का निर्माण हुआ। हर साल बाढ़ आती है इनके गांवों का भूगोल बदल जाता है। खेती-बाड़ी चली जाती है। पानी उतरने तक इन्हें निर्वासित जिंदगी काटनी पड़ती है। साल के छह महीने ऊंचे स्थानों पर और छह महीने तटबंध के अंदर इनकी जिंदगी कटती है। कोसी की पीड़ा झेलते तटबंध के अंदर के लोगों का अंतर्मन बार-बार सवाल करता है कि आखिर कब तक सहेंगे कोश-कन्हा कहे जाने का दर्द।
बारिश शुरू होते ही नदी की भेंट चढ़ जाते हैं गांव
जिले के तीन प्रखंड क्षेत्र सरायगढ़ भपटियाही, किशनपुर और निर्मली के गांव कोसी तटबंध के अंदर पड़ते हैं। सरायगढ़ भपटियाही प्रखंड क्षेत्र के लौकहा पलार, कोढ़ली पलार, कवियाही, करहरी, तकिया, बाजदारी, गौरीपट्टी पलार, बलथरवा, बनैनियां, सियानी, ढ़ोली, झखराही, भुलिया, कटैया, औरही, सिहपुर, सनपतहा, किशनपुर प्रखंड के बौराहा का भेलवा टोला आदि बारिश शुरू होते ही नदी की भेंट चढ़ जाते हैं। झखराही, बेंगा, लछमिनिया, झखराही, हांसा, चमेलवा, कमलदाहा, नौआबाखर आदि टोले के लोग भी परेशानी से जूझ रहे हैं। निर्मली का डेंगराही, सिकरहट्टा, मौरा, झहुरा, पिपराही, लगुनियां, दुधैला पलार आदि गांव के लोगों की भी यही परेशानी है।
घटे या बढ़े पानी बनी रहती है परेशानी
कोसी में पानी बढऩे के साथ ही इनकी तबाही शुरू हो जाती है जो घटते-बढ़ते पानी के साथ जारी रहती है। पानी का बढऩा बाढ़ का कारण बनता है तो पानी घटने के साथ ही कटाव बढ़ जाता है। कटाव भी इतना तेज कि देखते ही देखते गांव के गांव कोसी में विलीन हो जाते हैं। खेतों की खड़ी फसलें कोसी की धार में तिनके सी बहती नजर आती हैं। अपने द्वारा बोई फसल का यह हालत देख किसान खून के आंसू रोने को विवश होते हैं।