जलस्रोतों के संरक्षण को ले सजग है प्रशासन, तालाबों का होगा जीर्णोद्वार
सुपौल जिला प्रशासन जल स्त्रोतों को लेकर पूरी तरह सजग है। मनरेगा योजना के तहत तालाबों का जीर्णोद्वार किया जा रहा है। ताकि यहां के अवाम को जल संकट का सामना नहीं करना पड़े। अब तक 14 तालाबों का जीर्णोद्वार हो गया है।
जागरण संवाददाता, सुपौल । जल ही जीवन है और जल के बिना सृष्टि की कल्पना बेमानी सी है। ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में जल संकट भी एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आएगी। भूजल के गिरते स्तर को देखकर अब जलस्रोतों के संरक्षण की ओर पहल की गई है। जल के पारंपरिक स्रोतों के संरक्षण की कवायद चल रही है। जल-जीवन-हरियाली योजना के साथ-साथ ऊर्जा संरक्षण व जल संरक्षण आदि को भी समेकित किया गया है और इसके संरक्षण की पहल की जा रही है।
तालाब और कुओं का हो रहा जीर्णोद्वार
इसके तहत तालाब एवं कुआं का जीर्णोद्धार किया जा रहा है ताकि आने वाले समय में लोगों को जल की समस्या से जूझना न पड़े। जीर्ण-शीर्ण और जमींदोज हो चले जल के पारंपरिक स्रोतों की ओर सरकार की नजरें इनायत हुई हैं और प्रशासन इसके संरक्षण को लेकर बढ़-चढ़कर भूमिका निभा रहा है। सुपौल जिले में भी जल संरक्षण को लेकर पहल हुई है और यहां भी तालाब व कुआं का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है।
पांच एकड़ से अधिक के तालाब का लघु सिंचाई विभाग करेगा जीर्णोद्वार
जिले में पांच एकड़ से अधिक के तालाब के जीर्णोद्धार का जिम्मा लघु सिंचाई प्रमंडल सुपौल को दिया गया है तो पांच एकड़ से कम के तालाब व कुआं का जीर्णोद्धार मनरेगा के तहत कराया जा रहा है। विभाग से उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार पांच एकड़ से अधिक के चिन्हित 25 तालाब में से 15 तालाब का जीर्णोद्धार कार्य पूर्ण हो गया है। मनरेगा योजना के तहत पांच एकड़ से कम के चिन्हित 31 तालाब में से 14 तालाब का जीर्णोद्धार कार्य पूर्ण हो चुका है।
डेझ़् सौ से अधिक कुओं का होगा जीर्णोद्वार
161 सार्वजनिक कुआं के जीर्णोद्धार का कार्य जिले में शुरू किया गया जिसमें 153 ग्रामीण क्षेत्र व तीन शहरी क्षेत्र में कुआं का जीर्णोद्धार कार्य पूर्ण कर लिया गया है। कोरोना संक्रमण काल में जलस्रोतों के संरक्षण के कार्य को मनरेगा योजना से जोडऩे के बाद इस वित्तीय वर्ष में मनरेगा योजना अंतर्गत 45513 योजनाएं जिले में क्रियान्वित की जा रही है जिनमें अब तक कुल 36 लाख 52 हजार मानव दिवस का सृजन किया गया और लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान किए गए हैं।
पारंपरिक जलस्रोतों के संरक्षण के प्रति अगर ऐसी ही सजगता रही तो आने दिनों में लोगों व भावी पीढ़ी को जल की समस्या से जूझना नहीं पड़ेगा। पारंपरिक जल स्रोतों के माध्यम से भी लोगों की प्यास बुझेगी और जल के लिए मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी।