बिहार का एक गांव जहां शहीद भगत सिंह को है भगवान का दर्जा, घर-घर में होती पूजा
बिहार के एक गांव में शहीद भगत सिंह भगवान की तरह पूजे जाते हैं। वहां घर-घर तक में उनकी तस्वीर लगी है। गांव की सीमा पर भगत सिंह की स्मृति में शहीद-ए-आजम प्रवेश द्वार बना है।
पूर्णिया [सुशांत]। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारी भगत सिंह (Bhagat Singh) का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। फिरंगी हुकूमत ने उन्हें मौत Death Sentence) की सजा दी, लेकिन लोगों ने उन्हें शहीद (Martyr) का दर्जा दिया है। बिहार के पूर्णिया जिले के धमदाहा स्थित हल्दीबाड़ी गांव (Haldibari village) में तो वे भगवान (God) की तरह पूजे जाते हैं। वहां शहीद भगत सिंह के प्रति लोगों की ऐसी दीवानगी है कि स्कूल व कार्यालयों से लेकर घर-घर तक में भगत सिंह की तस्वीर लगी है।
हल्दीबाड़ी गांव धमदाहा अनुमंडल के बीकोठी प्रखंड की लतराहा पंचायत में मधेपुरा की सीमा पर है। गांव में भगत सिंह के प्रति लोगों की दीवानगी के पीछे की कहानी किसी को पता नहीं है, लेकिन दशकों से ऐसा होते चला आ रहा है।
घर-घर में लगी भगत सिंह की तस्वीर
गांव की आबादी 1600 के करीब है। यह गांव विकास की रोशनी से अछूता है। मूलभूत समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं। लेकिन भगत सिंह के प्रति दीवानगी परवान पर दिखती है। कोई भी शुभ कार्य के पहले भगत सिंह की पूजा की जाती है। गांव के घर-घर में उनकी तस्वीर है। यहां के स्कूल में भी भगत सिंह की तस्वीर लगी है, ताकि बच्चों को उनके बारे में बताया जा सके।
गांव की सीमा पर 'शहीद-ए-आजम' प्रवेश द्वार
गांव की सीमा पर भगत सिंह की स्मृति में 'शहीद-ए-आजम' प्रवेश द्वार भी बना हुआ है। इसका निर्माण 2005 में लतराहा पंचायत के तत्कालीन मुखिया कौशल यादव ने ग्रामीणों की मांग पर करवाया था। कौशल यादव ने बताया कि शहीद भगत सिंह ने देश के लिए जो किया, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है। इस कारण ग्रामीण उन्हें आदर्श मानते हैं। उनके सम्मान में यह द्वार ग्रामीणों की ओर से एक छोटा सा प्रयास है।
आजादी के पूर्व से ही ग्रामीण दे रहे सम्मान
गांव के लोग कहते हैं कि देश को जब भी उनकी जरूरत पड़ेगी, तब वे सीना तानकर भगत सिंह की तरह कुर्बानी देने को तैयार रहेंगे। ग्रामीण राकेश कुमार, निर्मल ऋषि व वैद्यनाथ यादव ने बताया कि भगत सिंह ने काफी कम उम्र में देश के लिए अपना बलिदान दे दिया था। इसी कारण से देश की आजादी के पूर्व से ही ग्रामीण उन्हें सम्मान देते आए हैं। पूर्वजों द्वारा जारी की गई यह परंपरा आज भी कायम है। छात्र राजपाल ने बताया कि भगत सिंह ने कभी खुद का स्वार्थ नहीं देखा। इसी कारण युवा उनसे सीख लेते हैं।