सरकारें बदलती रही पर नहीं बदली गढ़हरा यार्ड की सूरत
संवाद सूत्र, गढ़हरा (बेगूसराय) : राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके
संवाद सूत्र, गढ़हरा (बेगूसराय) : राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके रेलवे यार्ड गढ़हरा की 22 सौ एकड़ खाली पड़ी भूमि का अभी भी भरपूर उपयोग नहीं हो सका है। यहां पर डीजल शेड, सामान भंडार डिपो और आरपीएसएफ के कार्यालय का निर्माण तो शुरू कराया गया। लेकिन डीजल शेड बनने के बाद आज तक उदघाटित नहीं हो सका है। वहीं आरपीएसएफ का कार्यालय फंड के अभाव में आधा अधूरा ही बन पाया है। एकमात्र समान भंडार डिपो ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। जबकि खाली पड़ी भूमि पर केंद्रीय वर्कशॉप, विद्युत शेड सहित कई कल कारखाने को स्थापित कर इसका उपयोग किया जा सकता है।
जानकारों के मुताबिक 1958 में एशिया का सबसे बड़ा गढ़हरा यार्ड का निर्माण हुआ था। 1961 में स्टोन डंप का निर्माण किया गया। जिससे उत्तरी भारत में रेलखंडों के रख रखाव और बाढ़ नियंत्रण में प्रयोग होने वाले बोल्डरों की डं¨पग यानांतरण प्वांइट बनाया गया। जिसका फायदा 1964 में खुले बरौनी रिफाइनरी के निर्माण को भी मिला। 1984 में तत्कालीन सरकार के द्वारा गढ़हरा यार्ड समाप्ति की घोषणा की गई। साथ ही रेल वर्कशॉप बनाने का प्रस्ताव दिया गया। लेकिन एशिया का सबसे बड़ा पलटैया यार्ड (गढ़हरा यार्ड) आमान परिवर्तन के बाद वीरान पड़ा है। इसके बंद होने के बाद केंद्र सरकार ने विकल्प के रूप में कोई कल कारखाना नहीं खोली। यह यार्ड 26 अप्रैल 1959 से 1993 तक अपने कार्यों को लेकर बुलंदियों में झूमता रहा। 1962 के भारत-चीन युद्ध, 1965 भारत-पाकिस्तान युद्ध, 1971 पाकिस्तान-बंगलादेश युद्ध में भी इसके महत्वपूर्ण योगदान से इंकार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि यह यार्ड राष्ट्रीय सड़क मार्ग, वायु मार्ग, जल मार्ग से जुड़े होने के कारण मार्स¨लग यार्ड था। 1958 में उत्तर बिहार की पहली बड़ी रेल लाइन की शुरुआत का सौभाग्य भी इसी यार्ड को है। यह यार्ड अपने विशाल हृदय में एक बिजी यार्ड और एक एमजी यार्ड के अलावा 22 यानांतरण गोदाम था। इतना ही नहीं गढ़हरा यार्ड में 15 माइ¨लग, 17 सं¨टग, पांच ट्रांसफॉर्मर, चार अप रिसेप्शन, चार डाउन रिसेप्शन, 14 पीओएल ग्रिड की लाइनों के साथ साथ लगभग छह बोल्डर डुगा लाइनें भी थी। यह मरम्मत डिपो का भी कार्य देखता था। जहां पांच हजार से अधिक रेलकर्मी कार्यरत थे। साथ ही 16 मार्च 1964 को रेलवे बोर्ड, दिल्ली द्वारा सीधे नियंत्रित तटस्थ गाड़ी परीक्षक की एक शाखा गढ़हरा यार्ड में स्थापित की गई। जहां क्षेत्रीय प्रबंधक सहित 15 कर्मचारी की भी तैनाती थी। लेकिन 1993 के बाद उक्त पद को समाप्त कर दिया गया। कई बार उक्त जमीन पर संबंधित कल कारखाने खोलने के लिए राजनीतिक पार्टियों द्वारा रेल मंत्री से गुहार लगाई गई। लेकिन रेल प्रशासन ने दो तीन छोटे-छोटे प्रोजेक्ट देकर अपना पल्ला झाड़ लिया। फिलहाल खाली पड़ी भूमि पर असामाजिक लोगों का कब्जा है। हालांकि खाली पड़ी भूमि पर संबंधित कल कारखाने निर्माण कराने का प्रस्ताव तो है बावजूद विभाग द्वारा उदासीन रवैया अपनाने से गढ़हरा यार्ड अपनी बदहाली का आंसू बहाने पर विवश है। बेगूसराय जिला ही नहीं गढ़हरा बरौनी के लोगों को भी प्रत्येक वर्ष रेल बजट में गढ़हरा यार्ड के जीर्णोद्धार की आस लगी रहती है। शायद इस बार केंद्र सरकार और रेल प्रशासन की गहरी ¨नद्रा टूटे और गढ़हरा यार्ड में रेल संबंधित कल कारखानों की सौगात मिल सके। यार्ड समाप्ति के बाद साल दर साल सरकारें बदलती रहीं। नये नये रेल मंत्रियों का आना जाना लगा रहा। परंतु किसी भी रेलमंत्री ने इस खाली पड़ी ऐतिहासिक गढ़हरा यार्ड की भूमि पर कारखाना लगाने की दिशा में पहल करना मुनासिब नहीं समझा। कल कारखानों के नाम पर देश के कई हिस्सों में रेलवे द्वारा जमीन खरीद कर सरकारी राजस्व घटाया जरूर गया। परंतु, पूर्व से रेलवे द्वारा खरीदी गई जमीन से राजस्व बढ़ाने की दिशा में आजतक कोई ठोस कदम नहीं उठाया।