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मौसम ने करवट ली, पक्षी हुए बेगाने

बेगूसराय। प्रवासी पक्षियों का गढ़ माना जाने वाला बखरी व इसके आसपास का फरकिया क्षेत्र मेहमान प

By Edited By: Published: Tue, 13 Dec 2016 03:06 AM (IST)Updated: Tue, 13 Dec 2016 03:06 AM (IST)
मौसम ने करवट ली, पक्षी हुए बेगाने

बेगूसराय। प्रवासी पक्षियों का गढ़ माना जाने वाला बखरी व इसके आसपास का फरकिया क्षेत्र मेहमान पक्षियों के इंतजार में आहें भर रहा है। एक समय हुआ करता था जब शीतऋतु के प्रवेश करते ही हजारों के झुंड में प्रवासी पक्षी यहां डेरा डाला करते थे। तब इन आकर्षक मेहमान पक्षियों के कलरव से इलाका गुलजार रहता था। ठंड के दस्तक देते ही रंग-बिरंगे हजारों मनमोहक विदेशी पक्षी यहां की शोभा बढ़ाते थे। परंतु, दिसंबर चल रहा है, और यहां के चौर जलाशय में वीरानी छाई हुई है। ऐसा लगता है जैसे मेहमान बेजुबानों ने इधर का रूख करने से मुंह फेर लिया है।

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दूर देश से आते हैं ये पक्षी

मालूम हो कि ये पक्षी सात समंदर पार दूर देश से हमारे यहां आकर क्षेत्र के पतिया, केहुना, बसाही, ढ़ेनुआ, रोहाय, हथौड़ी, मनडुप्पा, चेनवारी, रतनाहा, पचैला, दासीन सहित अन्य जगहों में अपना रैन बसेरा बनाते हैं। इन पक्षियों में लालसर, दिघौंच, अरुण, सराय, मैल, सामा-चकेवा, अधंगी, मलकई, कोचरा, कबूतरी, खोखैर, नदीम, नकटा, केपला, कारण, सिलौंग, सिल्ली आदि प्रमुख हैं। वन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक करीब 46 पक्षियों की मेहमान प्रजातियां साइबेरिया और कनाडा से उड़कर हमारे यहां का रूख करती हैं। जानकार बताते हैं कि दोनों ही देशों में बहुत अधिक ठंड पड़ने व पारा माइनस पर पहुंचने की स्थिति में पूरा देश बर्फ से ढं़क जाता है। जिससे वहां के पक्षी चारे की तलाश में भटकते-भटकते हमारे यहां तक पहुंच जाते हैं। झील, तालाब एवं जलाशयों में ऊंचाई से डुबकी लगाना इन्हें खूब भाता है। इनका मुख्य भोजन छोटी मछलियां, जलाशयों के अंदर उगने वाले नरम पौधे व कीट आदि होते हैं। साथ ही हमारे यहां का मौसम और वातावरण भी इनके प्रजनन के अनुकूल होता है। खेद की बात यह है कि वन विभाग द्वारा इन प्रवासी प¨रदों की गणना कभी भी नहीं की जाती है।

बहुत कम हुई पक्षियों के आने की संख्या

बताया जाता है ये मनमोहक प¨रदे ठंड प्रवेश करते ही अक्टूबर-नवंबर में हमारे यहां आते हैं। फिर मार्च अप्रैल तक गरमी प्रवेश करते ही ये प¨रदे खट्टी मीठी यादों के साथ अपने वतन को लौट जाते हैं। परंतु, हाल के कुछ वर्षो में इनके हमारे यहां आने की संख्या बहुत कम हो गई है। जिस पर पर्यावरणविदों का कहना है कि वर्तमान परिवेश में प्रकृति ने करवट बदली है। इंद्र देवता के रूठ जाने के कारण वर्षा ने मुंह फेर लिया है। स्थानीय चौर, जलाशय या तो सूख गए हैं या फिर सूखने के कगार पर हैं। जहां सालों साल पानी रहा करता था, वहां सूखा पड़ा है। धान की फसल की जगह गेहूं व सरसों की फसलें लहलहा रही है। जबकि धान इन पक्षियों का मुख्य भोजन हुआ करता था। अब पर्याप्त मात्रा में चारा नहीं मिलने से ये पक्षी धीरे-धीरे बेगाने होकर कहीं दूसरी जगह शरण ले रहे हैं। रही-सही कसर यहां के शिकारी इन्हें अपना शिकार बनाकर पूरी कर देते हैं। इन पक्षियों को हम सुरक्षा देने में भी नाकामयाब रहे हैं। इन वजहों से भी प्रवासी पक्षियों ने हमारे यहां से मुंह फेर लिया है। फिर भी अबकी बार धान की फसल होने से कम संख्या में ही सही परंतु, इन पक्षियों का झुंड कहीं-कहीं देखने को मिलता है।

इनसेट

बेजुबान पक्षियों का शिकार बेरोकटोक जारी

बखरी (बेगूसराय) : हमारे यहां प्रतिबंध के बावजूद इन बेजुबानों का शिकारमाही बेरोकटोक जारी है। बखरी सहित फरकिया व आसपास के क्षेत्रों में इन प्रवासी पक्षियों का शिकार चरम पर है। शिकारी पेड़ों पर रस्सी का फंदा व जलाशयों में जाल लगाने लगे हैं। दूसरी ओर वन विभाग के अधिकारी व स्थानीय पुलिस-प्रशासन इन बातों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर रहे हैं। पक्षी के खरीदार अधिक और 'माल' कम उपलब्ध रहने के कारण इन पक्षियों के शिकारी आमलोगों के बदले बड़े रसूखदार लोगों व होटल मालिकों से ही इनकी सौदेबाजी करना पसंद करते हैं। इस संबंध में स्थानीय लोगों का मानना है कि वन विभाग व स्थानीय पुलिस-प्रशासन अगर चाह लें तो इन मेहमान बेजुबानों की शिकारमाही पर रोक लग सकती है। और एक बार फिर से इन पक्षियों की चहचहाहट व कलरव से स्थानीय चौर के जलाशय गुंजायमान हो सकते हैं।


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