कोरियंधा के हर बच्चों के हाथ में पहुंची किताब
जागरण संवाददाता बांका सरकारी विद्यालयों के बचे पुस्तकों को तरस रहे हैं। पुस्तक वितरण की सरकारी योजना पूरी तरह फेल है। पढ़ाई शुरु होने के डेढ़ महीने बाद भी सरकार बचों के बैंक अकाउंट में पुस्तक खरीद की राशि नहीं भेज सकी ना ही पुस्तक खरीद का मेला ही लगा।
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फोटो- 19 बीएएन 18, 19
- विद्यालय प्रधान की अनोखी पहल से पुस्तक की समस्या का हो गया हल - पहली और दूसरी कक्षा में सभी बच्चों को नहीं मिल सकी है पुस्तक
जागरण संवाददाता, बांका : सरकारी विद्यालयों के बच्चे पुस्तकों को तरस रहे हैं। पुस्तक वितरण की सरकारी योजना पूरी तरह फेल है। पढ़ाई शुरु होने के डेढ़ महीने बाद भी सरकार बच्चों के बैंक अकाउंट में पुस्तक खरीद की राशि नहीं भेज सकी, ना ही पुस्तक खरीद का मेला ही लगा। इस कारण करीब तीन लाख बच्चे डेढ़ महीने से बिना पुस्तक ही पढ़ रहे हैं।
ऐसे में बांका प्रखंड के कोरियंधा विद्यालय में अनोखी पहल से अधिकांश बच्चों के हाथ में पुस्तक पहुंच गई है। वे इन पुस्तकों से पढ़ाई भी शुरु कर चुके हैं। उनकी पढ़ाई बेधड़क आगे बढ़ रही है। प्रधानाध्यापक ब्रजमोहन मंडल और विद्यालय बाल संसद की पहल से अधिकांश बच्चों के हाथ में पुस्तक पहुंची है। बताया गया कि केवल पहली और दूसरी कक्षा में सभी बच्चों को पुस्तक नहीं मिल सकी है। लेकिन इससे ऊपर की कक्षा में अभी 90 से 95 प्रतिशत बच्चों तक सभी पुस्तकें उपलब्ध है। इसके लिए वार्षिक परीक्षा के बाद ही विद्यालय ने बच्चों को प्रोत्साहित किया।
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कुछ ने खरीदा, कुछ ने अदला-बदली की
पुरानी कक्षा के बच्चों से पुरानी पुस्तकें आधी कीमत पर खरीदने की पुरानी परंपरा गांवों में रही है। इस विद्यालय ने आगे होकर इसके लिए बस बच्चों को प्रोत्साहित कर दिया। इसमें बाल संसद ने सक्रिय भूमिका निभाई। प्रधानमंत्री अंशु कुमारी, उपप्रधानमंत्री दिलखुश कुमार, शिक्षा मंत्री परमानंद कुमार, मुस्कान कुमारी, आयुष कुमार, रूपा कुमारी आदि ने बताया कि हम लोगों ने आधी पुस्तकों की परिवार से अदला-बदली कर ली है। यानी किसी के घर में पांचवीं और सातवीं का छात्र है। उसने दूसरे परिवार के बच्चों को यह पुस्तक देकर अपने लिए जरूरी पुस्तक उससे अदला-बदली कर ली। कुछ बच्चों ने पुरानी कीमत की आधी कीमत देकर पुस्तक ले ली है। पहली और दूसरी के बच्चे अधिक छोटे होते हैं, इस कारण उनकी पुस्तकें ज्यादा फट जाती है। इस कारण इस क्लास के पुस्तकों की कुछ कमी हो गई है।
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राशि जाने और पुस्तक खरीद में हर बार देरी होती है। इसलिए वे हर बार सत्र समाप्त होने पर बच्चों को पुस्तकों की अदला-बदली का सुझाव देते हैं। सभी बच्चे एक गांव के हैं। ऐसे में अदला-बदली आसान है। इस माडल को अपना कर अधिकांश विद्यालय पुस्तक की समस्या से मुक्त हो सकता है।
ब्रजमोहन मंडल, प्रधानाध्यापक
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पुस्तक की राशि पटना से भेजी जानी है। इसकी प्रक्रिया संभवत: शुरु है। दूसरी तरफ समय पर बच्चों तक पुस्तक पहुंचे इसके लिए प्रखंड और सीआरसी स्तर पर मेला शुरु करा दिया गया है। गर्मी छुट्टी के बाद विद्यालय खुलने पर अधिकांश बच्चों तक पुस्तक होगी। कोरियंधा विद्यालय का प्रयोग प्रशंसनीय है।
पवन कुमार, डीईओ