दशकों से नक्सलियों के निशाने पर रहे हैं चतराहन के व्यवसायी
संवाद सूत्र बेलहर (बांका) थाना क्षेत्र के बांका-जमुई जिला सीमा स्थित चतराहन फुलहरा कर्मटांड़ ताराकुरा आदि गांव का खासकर व्यवसायी दशकों से नक्सली संगठन के निशाने पर रहा है। वर्ष 1980 के दशक में जब नक्सली संगठन का पदार्पण हुआ था। उस समय पहला पनाहगार कर्मटांड़ का ही इलाका बना था।
संवाद सूत्र, बेलहर (बांका): थाना क्षेत्र के बांका-जमुई जिला सीमा स्थित चतराहन, फुलहरा, कर्मटांड़, ताराकुरा आदि गांव का खासकर व्यवसायी दशकों से नक्सली संगठन के निशाने पर रहा है। वर्ष 1980 के दशक में जब नक्सली संगठन का पदार्पण हुआ था। उस समय पहला पनाहगार कर्मटांड़ का ही इलाका बना था। इसके बाद जंगल और पहाड़ों से घिरे बेला गांव को अपना स्थाई ठिकाना बना लिया था। जहां रहकर नक्सलियों ने पीएसवाई संगठन को तोड़कर अपने संगठन में विलय करा लिया। इसके बाद लोरिक सेना को भूमिगत कर दिया। फिर बेलहर, सुईया, आनंदपुर थाना क्षेत्र में अपना आधिपत्य कायम कर लिया। बड़े कम समय में ही नक्सलियों का साम्राज्य बेलहर के एक तिहाई इलाके में स्थापित हो गया। पुलिस को भी जंगली पहाड़ी इलाकों में जाने के लिए सौ बार सोचने पर मजबूर कर दिया। नक्सली संगठन के आतंक सामने पुलिस की संसाधन ही कम पड़ने लगी थी। नक्सलियों की गांव-गांव में जनअदालत लगने लगी थी। लेवी वसूली मुख्य पेशा बन गया था। नक्सलियों के आतंक कारण सभ्य और आर्थिक स्थिति से सुदृढ़ लोगों ने गांवों से पलायन शुरू कर दिया। नक्सलियों द्वारा संगठन चलाने के लिए व्यवसायियों से चंदा वसूल किया जाने लगा था। भयवश चतराहन, कर्मटांड़ के व्यवसायी शहरों का रुख कर लिया। वर्ष 2004 में नक्सलियों ने कर्मटांड़ के व्यवसाइयों का करीब आधा दर्जन लाइसेंसी हथियार लूटे थे। वर्ष 2015 में लेवी की रकम नहीं देने पर कर्मटांड़ गांव के व्यवसायियों पर हमला कर दिया। फिर लोग गांव छोड़कर पलायन करने लगे। तब जिला प्रशासन ने वहां एसटीएफ कैंप स्थापित किया। दो साल बाद कैंप को हटा लिया गया। इस दौरान पुलिस ने ठोस रणनीति तैयार कर नक्सलियों खिलाफ अभियान छेड़ दिया। परिणाम पुलिस के पक्ष में रहा। नक्सलियों ने जिले की सरजमीं से ही तौबा कर लिया। गुरुवार रात चतराहन गांव से ग्रामीण चिकित्सक उमेश वर्णवाल के अपहरण में नक्सली संगठन के संलिप्तता से इन्कार नहीं किया जा सकता है। वैसे, पुलिस मामले की छानबीन कर रही है।