साइलेज के रूप में पशुओं को सालो भर मिलेगा हरा चारा
पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए शुरु किया गया त्वरित चारा विकास कार्यक्रम केवीके और सुधा डेयरी पश
पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए शुरु किया गया त्वरित चारा विकास कार्यक्रम
केवीके और सुधा डेयरी पशुपालकों को दे रही तकनीकी जानकारी
फोटो - 08 बीएएन 02
जासं, बांका : नदियों की बदल रही भौगोलिक स्थिति से जिले में ¨सचाई व्यवस्था दम तोड़ती जा रही है। फसल उत्पादन में कमी आने से पशुओं को हरा चारा नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में गर्मी के मौसम में पशुपालकों को अपने पशुओं को लेकर गंगा किनारे या अन्य प्रांतों में जाना पड़ता है। इससे क्षेत्र में पशुपालन को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है। लेकिन अब यहां के किसान साइलेज के रूप में हरा चारा को संग्रहित कर सालों भर अपने पशुओं को हरा चारा खिला सकते हैं। इसके लिए सरकार ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत त्वरित चारा विकास कार्यक्रम की शुरुआत की है। जिसका लाभ किसानों व पशुपालकों तक कृषि विज्ञान केंद्र व सुधा डेयरी विपुल के माध्यम से पहुंचाई जा रही है। जिन्हें साइलेज तैयार करने की तकनीकी जानकारी दी जा रही है। साइलेज उत्पादन के लिए बंकर निर्माण, मोटर चलित चारा काटने की मशीन और प्लास्टिक की खरीद पर 55 हजार 500 की राशि खर्च होती है। इसमें जो किसान सुधा डेयरी के सदस्य हैं, उन्हें इस लागत पर 50 फीसद का अनुदान भी दिया जा रहा है।
साइलेज उत्पादन से जुड़े पांच दर्जन किसान :
साइलेज उत्पादन के लिए वर्ष 2016 में ही बांका एवं मुंगेर जिले में पंचायत स्तर पर किसानों को प्रशिक्षण दिए गए थे। अभी जिले में पांच दर्जन किसान साइलेज उत्पादन से जुड़े हैं। इसमें दो दर्जन से अधिक किसान अमरपुर प्रखंड के हैं। जो अपने पशुओं को पौष्टिकता के साथ सालों भर हरा चारा खिला कर दूध का उत्पादन बढ़ा रहे हैं।
45 दिनों में तैयार हो जाता है साइलेज :
सब्जियों व फलों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए आचार बनाया जाता है। उसी तरह पशुओं के लिए हरे चारा का साइलेज तैयार किया जाता है। 10 फीट लंबे,आठ फीट चौड़े व पांच फीट गहरे बंकर में पांच टन हरा चारा संग्रहित की जा सकती है। साइलेज तैयार करने के लिए मकई, ज्वार, बाजरा, संकर नेपियर, सुडान घास, बरसील, लुर्सन व लोबिया का उपयोग किया जाता है। जिसे काट कर बंकर में दबा दिया जाता है। एक ¨क्वटल चारे पर एक किलो नमक व एक किलो गुंड़ का घोल डालने के बाद उसे प्लास्टिक से बंद कर मिट्टी या गोबर से दबाया जाता है। जो 45 दिन में पशुओं को खिलाने के लिए तैयार हो जाता है।
साइलेज की गुणवत्ता :
साइलेज में पाचक व पौष्टिक होने से पशुओं में दूध देने की क्षमता बढ़ जाती है। स्वास्थ्य भी ठीक रहता है।
दूध में फैट की मात्रा बढ़ जाती है।
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पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्र के किसानों को साइलेज तैयार करने के तकनीकों की जानकारी दी जा रही है। जिससे वे सालों भर अपने पशुओं को हरा चारा खिला कर दूध का उत्पादन बढ़ा सके। खास कर डेयरी के लिए यह काफी उपयोगी साबित हो रहा है। अभी पांच दर्जन किसान साइलेज तैयार कर रहे हैं।
डॉ धमेंद्र कुमार, पशुपालन वैज्ञानिक, केवीके
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