एक चापाकल से बुझती है दूबेडीह के 150 घरों की प्यास
बांका। क्षेत्र में गर्मी के मौसम के दस्तक देते ही जल संकट का सिलसिला शुरु हो गया है। सरकार के सात निश्चय में शामिल नल जल योजना भी लोगों की प्यास बुझाने में नाकाफी साबित हो रही है।
बांका। क्षेत्र में गर्मी के मौसम के दस्तक देते ही जल संकट का सिलसिला शुरु हो गया है। सरकार के सात निश्चय में शामिल नल जल योजना भी लोगों की प्यास बुझाने में नाकाफी साबित हो रही है। लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने के लिए करोड़ों खर्च किये जा रहे हैं। बावजूद इसके क्षेत्र के कई इलाकों में तो नल जल योजना धरातल पर भी नहीं उतर सकी है। आज भी कई इलाकों में चापाकल से ही लोगों की प्यास बुझ रही है। शहर ही नहीं गांवों से भी कुंए से पानी पीने की परंपरा खत्म होने के बाद लोग चापाकल पर ही आश्रित हो गए हैं। वहीं, दूबेडीह गांव के लोगों को जीवन की मौलिक व मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसना पड़ रहा है। महज एक चापाकल से दूबेडीह गांव के करीब 150 घरों की प्यास बुझती है। ऐसे में नल जल योजना लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने में कितना कारगर साबित हो रहा है, इसका बखूबी अंदाजा लगाया जा सकता है।
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रात में महिलाओं को होती है परेशानी
दूबेडीह गांव के एक छोर में चापाकल है। जहां से लोग पीने के साथ ही अन्य कामों के लिए पानी ले जाते हैं। एक चापाकल गांव के दूसरे छोर पर स्थित प्राथमिक विद्यालय दूबेडीह में एक चापाकल है। जिससे लोगों को थोड़ी राहत मिलती है। पर स्कूल खुलने के बाद ग्रामीणों को वहां से पानी लेने नहीं दिया जाता है। रात में पानी की जरूरत पड़ने पर खासकर महिलाओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीण लूखो देवी, जयमंति देवी, निर्मला देवी, दयानंद राउत व दिलीप राउत ने बताया कि गांव में एक ही चापाकल रहने से रात के समय पानी लाने में काफी परेशानी उठानी पड़ती है। आयोजन में सताती है पानी की चिता
गांव में किसी भी तरह के आयोजन में लोगों को सबसे अधिक पानी की चिता सताती है। यहां शादी-विवाह, श्राद्ध कर्म व अन्य आयोजनों में होने वाले भोज भंडारे में लोग सबसे पहले पानी के व्यवस्था की फिक्र करते हैं।
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कोट..
दूबेडीह गांव में जल्द ही पेयजल की सुविधा दुरूस्त की जाएगी। इसके लिए यहां नल जल योजना को धरातल पर उतारा जायेगा। लेकिन इससे पूर्व पीएचईडी विभाग की ओर से वहां एक चापाकल लगाए जाएंगे। इसके लिए विभाग के जेई को निर्देश दिया गया है।
शशिभूषण साहू, बीडीओ