पानी ने पैर मरोड़ी, घुटना और कमर भी हुई टेढ़ी
बांका। यह समस्या वर्षो पुरानी है पर जब देखें तब गढ़ती एक नई कहानी है। समस्या है फ्लोराइड युक्त पानी
बांका। यह समस्या वर्षो पुरानी है पर जब देखें तब गढ़ती एक नई कहानी है। समस्या है फ्लोराइड युक्त पानी से होने वाली बीमारी की। इसके निदान के हालिया प्रयास भी फेल साबित हुए। बांका शहर की चमक-दमक और चहल-पहल से महज कुछ किमी दूर ही प्रभावित गावों में नजारा बदल जाता है। ये ब्लैक एंड ह्वाइट फिल्मों की झुग्गी बस्तियों की सीन क्रिएट करती प्रतीत होती हैं। बीमार मैले-कुचैले बच्चे टेढ़े-मेढ़े होकर चल रहे हैं, यही हाल बड़ों का भी है। कोई देखने वाला नहीं। पांच दर्जन से अधिक लोगों को पानी ने बीमार और बेकार कर रखा है। ऐसा नहीं है कि स्वस्थ जीने की लालसा नहीं है इन्हें। लालसा है पर उपाय क्या? बिना पानी के जी नहीं सकते हैं और पानी पीएंगे तो बीमार होकर मरेंगे। मरना तो हर हाल में है। ऐसे में राजपुर की उमा देवी की बात दिल को छूती है- उपाय की छय बाबू! पानी नय पीबै त दू-चार दिन में मरी जैबे और पानी पीयै के बाद बीमारी से, पर बीमार होय क भी कुछ साल त जीबै!
बांका शहर से दो किमी पश्चिम समुखिया मोड़ के पास से पूरब अंदर जाने पर राजपुर एसकेपी स्कूल से पहले एक गांव है रामनगर। सुबह आठ बजे सड़क किनारे दस साल का मुन्ना नल जल योजना की टूटी पाइप को कपड़े से जोड़ने का प्रयास कर रहा है। पूछने पर पहले सकुचाया फिर पानी का पूरा दर्द सुना गया। तब तक पास के झोपड़ी से पांच साल का दिखने वाला एक और बच्चा निकला। उसका पैर हाथ और पूरा शरीर पानी में फ्लोराइड की अधिक मात्रा के नाकाम हो गया है। पूछने पर उसके पिता ने बताया पानी से शरीर की हड्डी ही खराब हो गई है। इसकी उमर 14 साल की हो गई और यह केवल दो साल से चल फिर पा रहा है।
इस गांव में पंचम तांती, ¨पटू, रतन मंडल, नकुल तांती आदि ऐसे कई हैं जो पानी में फ्लोराइड की अधिक मात्रा के शिकार हो गए हैं। फ्लोराइड ने किसी की पैर मरोड़ी है तो किसी का घुटना और कमर। पास के राजपुर गांव की स्थिति भी बदतर है। गांव के लोगों की पहचान ही लाल दांतें बन गई है। जिसने दस साल गांव का पानी पिया, उसकी दांतें लाल हो गई। अब तक कोई टूथपेस्ट इस लाली को हटाने में कारगर नहीं हो सकी है।
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फ्लोराइड दूर करने का संयत्र बेकार
रामनगर ही नहीं अमरपुर, मकदुमा, बेलहर, कटोरिया आदि के पांच दर्जन से अधिक गांवों में पीएचईडी ने फ्लोराइड से मुक्ति के लिए विशेष संयत्र लगाया था। आठ साल पहले से चरण वार गांवों में इस संयत्र को लगाया जा रहा है। लेकिन हालत यह कि लगने के साथ ही यह बेकार भी होता जा रहा है। चापानल का दूषित और अपंग बनाने वाला पानी ही प्यास बुझाता है, बांकी स्वच्छ पेयजल के लिए लगे संयंत्र हाथी के दांत साबित हो रहे हैं।
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20 फीसद गांव नहीं हो सके फ्लोराइड मुक्त
विश्व बैंक की सहायता से लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण बांका के दस पंचायतों को पूरी तरह शुद्ध पानी देना है। इसके अलावा पीएचईडी 1465 वार्ड में स्वच्छ जल पहुंचाने के अभियान में जुटा है। इसके तहत गांवों को फ्लोराइड, आयरन मुक्त पानी पिलाने की योजना पर काम कर रहा है। लेकिन अभी विभाग 20 प्रतिशत लक्ष्य को भी हासिल नहीं कर सका है। अभी पवई, मालडीह, मिर्जापुर, अंगारू जबड़ा, ¨सहनान, बटसार, काठबनगांव, जयपुर, लहौड़िया आदि पंचायत के सभी गांवों में फ्लोराइड मुक्त पानी पहुंचाने का अभियान चल रहा है। इसमें कुछ गांवों में फ्लोराइड मुक्त संयंत्र बन कर तैयार है।
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स्थानीय लोगों की राय
रामनगर के कुंदन तांती ने बताया कि गांव में सात आठ पहले पानी सप्लाई संयंत्र लगा है। लेकिन अब यह दस मिनट भी पानी नहीं दे रहा है। इस दौरान अगर हर घर में एक बाल्टी भी पानी पहुंचना मुश्किल है। मंती देवी ने बताया कि यह पानी का टंकी केवल दिखाने के लिए बना है। फ्लोराइड संयंत्र भी बेकार है। हम लोग गांव में लगे चापानल से ही पानी का प्यास बुझाते हैं। अब इस पानी से कमर टूटे या जान जाए, उनके पास दूसरा कोई उपाय नहीं है। राजपुर के बिट्टू ¨सह ने बताया कि उनके गांव में भी फ्लोराइड मुक्त पानी का संयंत्र लगा है। लेकिन गांव के लोगों को सप्ताह में मुश्किल से दो दिन भी पानी नसीब नहीं हो पाता है। कभी पंप स्टार्ट नहीं होता तो कभी सोलर चार्ज नहीं होता है।