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उत्तर कोयल नहर के अस्तित्व पर संकट

तीन जिले के किसानों का लाइफलाइन मानी जाने वाली उत्तर कोयल नहर के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

By Edited By: Published: Thu, 19 Jan 2017 04:36 PM (IST)Updated: Thu, 19 Jan 2017 04:36 PM (IST)
उत्तर कोयल नहर के अस्तित्व पर संकट
उत्तर कोयल नहर के अस्तित्व पर संकट

औरंगाबाद : तीन जिले के किसानों का लाइफलाइन मानी जाने वाली उत्तर कोयल नहर के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। नहर की स्थिति जर्जर हो गई है। नहर पर किसी का ध्यान नहीं है जिस कारण परेशानी बढ़ी है। नहर से झारखंड के पलामू, बिहार के औरंगाबाद एवं गया जिले की करीब 1 लाख 11000 हेक्टेयर भूमि का पटवन होता है। नहर की स्थिति जर्जर होने से किसानों की परेशानी बढ़ी है। नवीनगर से गया जिले तक नहर के दोनों किनारे सुरक्षा के लिए बिछई गई प्लेटें लगभग उखड़ चुकी है। बरसात में सुरक्षा की इस अभेद्य दीवार से प्लेटें गायब होने के कारण कई स्थानों पर नहर टूटते रहता है। नहर टूटने से किसानों को पानी से वंचित होना पड़ता है। विभागीय अधिकारी पैसे के अभाव में मरम्मत कराने में असफल रहे हैं। देखा जाए तो अब मरम्मत पर करोड़ों रुपये खर्च आएगा। यह कार्य तभी संभव होगा जब ¨सचाई मंत्री स्तर से इसके लिए कमिटी गठित कर जायजा लिया जाए। हजारों गांव के किसान नहर का तटबंध कमजोर होने से खासे ¨चतित हैं। कुटुंबा प्रखंड के वर्मा, पिपरा, ढीबर, एरका जगदीशपुर बेलाईं गांव के किसान तटबंध कमजोर होने से इस कारण ¨चतित रहा करते हैं कि बरसात के दिनों में कहीं तटबंध टूटा तो गांव जलमग्न हो जाएगा जिससे भारी क्षति की संभावना बनी रहती है। उत्तर कोयल नहर के अंबा डिविजन के एसडीओ नरेश चौधरी से जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि तटबंध का प्लेटें लगाए जाने का डीपीआर बनकर एसी के माध्यम से विभागीय अधिकारी को दिल्ली में सौंपा जाएगा। इसके लिए विभागीय अधिकारी दिल्ली में हैं। इसके तहत डैमेज तटबंध की मरम्मति से लेकर अन्य कार्य कराए जाने की मांग रखी गई है। इसके लिए झारखंड राज्य से लेकर बिहार तक में फैले नहर का पुनरीक्षण कार्य कराए जाएगा। किसानों ने कहा कि तटबंध मरम्मत नहीं कराए जाने से पटवन की परेशानी बढ़ी है। एरका गांव के किसान वशिष्ठ प्रसाद ¨सह, सुरेंद्र ¨सह, रमाकांत ¨सह्, मित्रसेनपुर के श्रीकांत पांडेय एवं झीकटीया के किसान मुन्नु पांडेय ने बताया कि बरसात से पहले नहर का मरम्मत जरूरी है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो खेतों का पटवन प्रभावित होगा।


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