आध्यात्म व रोमांचक पर्यटन का खजाना है उमगा पहाड़, संरक्षण की दिशा में पहल
जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर मदनपुर प्रखंड मुख्यालय के पास एक पहाड़ी पर चार किलोमीटर व्यास में विस्तृत 1000 से 1200 साल पुराने 52 मंदिरों का परिसर है। यहां मौजूद पुरातात्विक साक्ष्य प्राकृतिक सौंदर्य तथा मंदिर बनाए जाने की प्राचीन तकनीक के साक्ष्य समेकित रूप से एक ऐसे भव्य परि²श्य का सृजन करते हैं जो इस स्थल यानि उमगा को विश्व स्तरीय पर्यटन केंद्र होने की क्षमता प्रदान करता है लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि न तो इन पुरातात्विक धरोहरों के संरक्षण की दिशा में कुछ किया गया है और न इस क्षेत्र को पर्यटन के लिहाज से विकसित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है।
औरंगाबाद, सनोज पांडेय । जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर मदनपुर प्रखंड मुख्यालय के पास एक पहाड़ी पर चार किलोमीटर व्यास में विस्तृत 1000 से 1200 साल पुराने 52 मंदिरों का परिसर है। यहां मौजूद पुरातात्विक साक्ष्य, प्राकृतिक सौंदर्य तथा मंदिर बनाए जाने की प्राचीन तकनीक के साक्ष्य समेकित रूप से एक ऐसे भव्य परि²श्य का सृजन करते हैं जो इस स्थल यानि उमगा को विश्व स्तरीय पर्यटन केंद्र होने की क्षमता प्रदान करता है, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि न तो इन पुरातात्विक धरोहरों के संरक्षण की दिशा में कुछ किया गया है और न इस क्षेत्र को पर्यटन के लिहाज से विकसित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। उमगा के इतिहास पर व्यापक शोध करने वाले स्थानीय इतिहासकार तथा “उमगा: द मिस्टीरियस हिल्स'' के लेखक प्रेमेंद्र मिश्र बताते हैं कि उमगा एक बहुत बड़े साम्राज्य की राजधानी थी जिसके राजाओं ने दसवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच में उमगा की पहाड़ियों पर छोटे-बड़े कुल 52 मंदिरों का निर्माण किया था, इनमें से अधिकांश अब ध्वस्त हो गए हैं। फिर भी 5-6 मंदिर अभी बचे हुए हैं जिसमें सबसे प्रमुख उमगा सूर्य मंदिर है। अन्य मंदिरों के ध्वंसावशेष मौजूद हैं। नागर शैली में बने इन मंदिरों का निर्माण बिल्कुल स्थानीय स्तर पर हुआ था और इन मंदिरों के निर्माण की पूरी प्रक्रिया के साक्ष्य इस पहाड़ी पर बिखरे पड़े हैं।
पहाड़ पर मिलती है कई दुर्लभ प्रतिमाएं
उमगा पहाड़ पर दुर्लभ प्रतिमाएं हैं जिन पर अक्सर तस्करों की नजर पड़ती है। यहां कम से कम पांच शिलालेख मौजूद हैं जिनमें से दो शिलालेखों को पढ़ने में इतिहासकारों ने सफलता प्राप्त की है। इन शिलालेखों के अनुसार मुख्य उमगा मंदिर का निर्माण यहां के राजा भैरवेंद्र के द्वारा किया गया था। बाद में उमगा नगरी को बाहरी आक्रमण का सामना करना पड़ा और 18वीं शताब्दी में यहां के शासकों ने राजधानी को उमगा से हटाकर देव कर दिया। इस पहाड़ी पर मंदिरों के अवशेष के साथ पहाड़ की तराई में पुराने किले के ध्वंसावशेष मौजूद हैं। यहां के मंदिरों में सनातन धर्म के सभी प्रतीकों के साथ शैव, वैष्णव शाक्त और सौर पूजन परंपरा के प्रतिमान भी एक साथ नजर आते हैं जो अन्यत्र दुर्लभ हैं, यहां हर साल बसंत पंचमी में दो दिनों तक विशाल मेला लगता है। पूरा इलाका प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। उमगा पहाड़ी के नजदीक ही एक प्राचीन सरोवर भी है जो इसकी खूबसूरती को और ज्यादा बढ़ा देता है। पहाड़ी के ऊपर भी सरोवर हैं, यहां पहुंचना भी बेहद आसान है क्योंकि पहाड़ की तराई तक पक्की सड़क उपलब्ध है और जीटी रोड से इसकी दूरी मात्र एक किलोमीटर है।
पर्यटकों को आकर्षित करता है पहाड़
उमगा उन तमाम लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र हो सकता है जिनकी रूचि धार्मिक क्षेत्रों, अथवा पुरातात्विक ऐतिहासिक स्थलों के अवलोकन में या इतिहास के खोए हुए अध्याय के शोध में हो, यहां का प्राकृतिक सौंदर्य भी पर्यटकों को आकृष्ट करने के लिए पर्याप्त है। इस प्रकार यहां धार्मिक, ऐतिहासिक दोनों ही तरह के पर्यटन की प्रचुर संभावनाएं हैं। दुर्भाग्य से इसके संरक्षण और विकास की दिशा में ज्यादा प्रयास नहीं हुए हैं। उमगा मंदिर तक जाने के लिए सीढि़यां बनाई गई हैं लेकिन अन्य सुविधाओं का अभाव है। यहां की पुरातात्विक धरोहरों को संरक्षित करने के लिए एक प्रस्ताव बिहार सरकार के पुरातत्व विभाग के पास लंबित है परंतु अब तक उस पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है और इन धरोहरों के संरक्षण की दिशा में कोई प्रयास नहीं किए गए हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहाड़ का लिया था जायजा
उमगा पहाड़ी का आकर्षण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को प्रभावित किया था। 2018 में वे अधिकारियों की टीम के साथ पहाड़ का दीदार करने पहुंचे थे। तब उन्होंने पर्यटन के लिहाज से पहाड़ को विकसित करने की घोषणा की थी परंतु अब तक इस पर काम शुरू नहीं हुआ है। उमगा को अगर ढंग से विकसित कर दिया जाए तो यहां पर हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचेंगे। ये बोधगया और सारनाथ के पर्यटक रूट के मध्य स्थित है जिसका लाभ इस स्थल को मिलेगा। कुछ माह पहले जिला प्रशासन ने यहां के सुविधाओं को विकसित करने के लिए एक कार्य योजना तैयार की थी जिसमें गौरीशंकर शिखर तक रोप-वे और सीढि़यों का निर्माण, पूरे परिसर में प्रकाश की व्यवस्था, पहाड़ की तराई में गाड़ियों के पार्किंग की व्यवस्था, पेयजल की व्यवस्था, बरसात और धूप से बचने के लिए पहाड़ी पर जगह-जगह इको फ्रेंडली शेड स्थापित करने, यहां हो रहे अनावश्यक अवैध अतिक्रमण और निर्माण को हटाने की योजना शामिल थी। ऐसी योजनाएं पहले भी बनती रही हैं लेकिन दुर्भाग्यवश कभी अमल में नहीं लाई जा सकीं, अगर यहां गौरीशंकर शिखर तक रोपवे का निर्माण कर दिया जाता है तथा पेयजल, बिजली, गाड़ी पार्किंग जैसी सुविधाएं विकसित की जाती हैं तो यह स्थल पर्यटकों को ज्यादा आकर्षित करेगा। मंदिर के आसपास पर्याप्त जमीन उपलब्ध है जिसे पर्यटक आवास गृह सहित बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।