दूर होती जा रही अंबा के गुड़ के लड्डू का स्वाद
अंबा का गुड़ का लड्डू कभी झारखंड एवं मध्यप्रदेश तक विख्यात था पर आज यह अपना पहचान खोता
अंबा का गुड़ का लड्डू कभी झारखंड एवं मध्यप्रदेश तक विख्यात था पर आज यह अपना पहचान खोता जा रहा है। जब विख्यात था तब मात्र तीन चार दुकानों में ही गुड़ का लड्डू बनाने का काम होता था। आज इसकी कई दुकानें खुल गई है। जब यह विख्यात था तब अंबा से झारखंड एवं मध्यप्रदेश की ओर जाने वाले एवं झारखंड से अंबा की ओर आने वाले लोग गुड़ का लड्डू खरीदकर अपने घर ले जाते थे। लोग कहते हैं कि अंबा का गुड़ का लड्डू का स्वाद जिसने एक बार चखा वो उसके दीवाने हो जाते थे। अब सैकड़ों दुकानें खुल गए हैं। मिलावटी सामान के कारण प्रसिद्ध गुड़ का लड्डू का स्वाद अब फीका पड़ गया है। पहले अंबा के इलाके में बड़े पैमाने पर ईख की खेती होती थी तब दुकानदारों को स्थानीय स्तर पर बेहतर गुड़ मिल जाता था। चना का बेसन से हलवाई दाना तैयार करते थे। दाने में हल्का चावल का चूर्ण मिलाया जाता था। गुड़ को खौलाकर व उसमें घी व सूखे मेवे बगैरह डालकर उसमें दाने को ¨भगोया जाता था और लड्डू बनाया जाता था। आज मिलावटी सामान का उपयोग होने से स्वाद कम गया है। दुकानदारों ने बताया कि अंबा के मुड़िला, बिराजबिगहा गांव में बड़े पैमाने पर ईख की खेती होती थी। मुड़िला गांव में तैयार गुड़ का अलग स्वाद होता था। दुकानदार इसी गांव के गुड़ से लड्डू तैयार करते थे तब स्वाद काफी अच्छी होती थी। आज ईख की खेती बंद हो गई। बताया जाता है कि आज भी गुड़ का लड़डू दुकानों में बनाया जा रहा है पर पहले वाला स्वाद नहीं है। वजह है कि अब न स्थानीय गुड़ मिलता है न बेहतर बेसन। घी काफी महंगा हो गया है। बेसन से अब दाने नहीं बनाए जा रहे हैं। दुकानदार हरदेव साव ने बताया कि दाना बनारस से लाया जाता है। उसी दाने से व चलानी गुड़ से लड्डू बनाए जा रहे हैं। अब गुड़ में न वह सोंधापन है न हीं दाने में लज्जत है। यही कारण है कि लड्डू में पहले वाला स्वाद नहीं है
कहा जाता है कि पहले हरदेव साव की दुकान का लड्डू प्रसिद्ध था फिलहाल रवींद्र की दुकान का लड्डू अच्छा माना जाता है। रवींद्र ने बताया कि हालांकि अब पहले जैसा स्वाद वाला लड्डू नहीं बन पा रहा है। अब लड्डू बनाने में किशमिश, वादाम, मूंगफली, तिल आदि का प्रयोग से स्वाद बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। इस प्रयोग के बाद लड्डू की मांग बढ़ी है।