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यहां हर रोज सूर्योदय से पहले बिकने चले आते मजदूर

आज मजदूर दिवस है। आज ही के दिन दुनिया के मजदूरों को अनिश्चित काम के घंटों के बदले आठ घंटे काम करने की आजादी मिली थी।

By JagranEdited By: Published: Fri, 30 Apr 2021 05:06 PM (IST)Updated: Fri, 30 Apr 2021 05:06 PM (IST)
यहां हर रोज सूर्योदय से पहले बिकने चले आते मजदूर
यहां हर रोज सूर्योदय से पहले बिकने चले आते मजदूर

औरंगाबाद। आज मजदूर दिवस है। आज ही के दिन दुनिया के मजदूरों को अनिश्चित काम के घंटों को आठ घंटे में तब्दील कर मुक्ति का मार्ग दिखाया गया था। लेकिन मुक्ति का मार्ग अंतहीन रास्ते की भांति लगातार लंबा होता गया। मजदूरों की जिदगी बेरोजगारी, भुखमरी, अशिक्षा, कुपोषण की भेंट चढ़ रही है। कई मजदूरों को यह मालूम नहीं होगा कि आज उनका दिवस है। श्रम विभाग द्वारा मजदूरों को सरकार स्तर पर मजदूरी दिलाने एवं बाल मजदूरी रोकने के लिए चलाए जा रहे अधिकांश योजना कागजों पर चलती हैं।

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जागरण टीम मजदूरों की स्थिति जानने को लेकर मंगलवार सुबह जिला मुख्यालय के जामा मस्जिद के पास नावाडीह मोड़ पहुंचा। सुबह के छह बजने को है। यहां दूर-दूर गांवों से मजदूर आकर खड़े थे। सड़क के दोनों ओर मजदूरों की कतार लगी थी। जामा मस्जिद परिसर एवं नावाडीह मोड़ मजदूरों से पटी थी। इनकी वास्तविक संख्या में गिन पाना थोड़ा मुश्किल लगा। इन मजदूरों को काम देने वाले का इंतजार है। पूरे शहर को पता है कि प्रत्येक दिन यहां मजदूरों की तादाद काम की तलाश में जुटती है। राज मिस्त्री से लेकर बगीचे में काम करने वाले भी मजदूर यहां मिल जाते हैं। जिसे भी मजदूर की जरूरत होती है सुबह-सुबह यहां पहुंच जाते हैं। यहां बिकने के लिए खड़े मजदूरों से मोल भाव करते फिर उन्हें काम पर ले जाते हैं। यहां मजदूर काम के लिए वर्षों से पहुंच रहे हैं। 48 वर्षीय सीताराम दास बताते हैं कि जब से उन्होंने होश संभाला है इस जगह काम के लिए पहुंच रहे हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि प्रतीक्षा के बाद भी काम नहीं मिलने पर निराश होकर लौटना पड़ता है। बताया कि घर से खाना लेकर निकलते हैं। जिस दिन अगर काम नहीं मिलता है भोजन उसी तरह टिफिन में घर चला जाता है। इन मजदूरों के मनरेगा सहित सरकार तमाम योजनाएं बेमानी साबित हो रही है। मजदूर विमलेश पासवान, अनिल यादव, रमेश राम बताते हैं कि मनरेगा के भरोसे तो चूल्हे भी उपवास पड़ जाएंगे। काम के लिए कार्ड लेकर घूमते रह जाते हैं। मजदूरों की बात करें तो स्वाधीनता से पूर्व और बाद भी उनकी स्थिति ज्यादा सुधरी नहीं है। मजदूरों का जीवन उसकी दिहाड़ी पर ही निर्भर है। इसमें साक्षरता भी न के बराबर है। बाल मजदूरी पर नहीं लग सकी पूरी तरह रोक

विभागीय उदासीनता के कारण बाल मजदूरी पर रोक नहीं लग रही है। ईंट भट्ठा, लाइन होटल से लेकर अन्य व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में बाल मजदूर काम करते दिख जाएंगे। इन प्रतिष्ठानों के द्वारा मजदूरों के साथ आर्थिक दोहन के साथ मनमानी की जाती है। मजदूर दिवस पर जहां सरकारी संस्थाएं बंद रहती है वहीं निजी संस्थानों में हर रोज की तरह मजदूरों से काम लिए जाते हैं। मजदूरों की माने तो काम नहीं करेंगे तो खाएंगे कहां से। गरीब व मजदूरों के सवालों को लेकर आवाज बुलंद करने वाले लोग भी सिर्फ अपनी स्वार्थ की राजनीति करते हैं। हालांकि प्रशासनिक अधिकारी बाल मजदूर व आम मजदूरों से मजदूर दिवस पर काम लेने वाले के खिलाफ कार्रवाई करने की बात करते हैं लेकिन यह सवाल है कि जब श्रम विभाग कार्रवाई करे तब कुछ होने वाला है। बता दें कि प्रशासन के द्वारा बाल मजदूरी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अभियान मुस्कान चलाया गया था। परंतु यह कारगर साबित नहीं हो सकी। लाइन होटलों एवं ईंट भट्ठों पर बाल मजदूरों द्वारा काम कराया जा रहा है।


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