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विद्यालय से ही होता है बच्चों में नेतृत्व क्षमता का विकास

प्रखंड मुख्यालय में संचालितनिष्ठाप्रशिक्षण के तीसरे दिन शनिवार को एसआरपी चंद्रशेखर प्रसाद साहू ने शिक्षकों के बीच विद्यालय नेतृत्व पर चर्चा किया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 07 Dec 2019 08:19 PM (IST)Updated: Sun, 08 Dec 2019 06:13 AM (IST)
विद्यालय से ही होता है बच्चों में नेतृत्व क्षमता का विकास
विद्यालय से ही होता है बच्चों में नेतृत्व क्षमता का विकास

औरंगाबाद। प्रखंड मुख्यालय में संचालित 'निष्ठा' प्रशिक्षण के तीसरे दिन शनिवार को एसआरपी चंद्रशेखर प्रसाद साहू ने शिक्षकों के बीच विद्यालय नेतृत्व पर चर्चा किया। कहा कि विद्यालय प्रधान या शिक्षक के रूप में हमें विद्यालय का नेतृत्व करना होता है। इसके लिए हमें कुशल प्रशासक, कुशल प्रबंधक, साहसी, निर्णय लेने की क्षमता, कार्य विभाजन, वित्तीय लेखा जोखा एवं अपने कार्यों के पुनरावलोकन जैसे अनेक गुणों को अपनाना चाहिए। नेतृत्व के इन गुणों को मुख्यत: तीन में बांटा जा सकता है- ज्ञान, कौशल एवं ²ष्टिकोण। विद्यालय नेतृत्व के इन तीनों गुणों को अपनाने के लिए हमें पूर्व की धारणाओं और कमजोरियों में बदलाव करना जरूरी है। बदलाव करना मुश्किल कार्य तो है परंतु असंभव नहीं है। छोटे-छोटे क्रिया सोपानों के जरिए लगातार प्रयास करने से बदलाव लाया जा सकता है। इस चर्चा में पहल पर आधारित एक वीडियो क्लिप दिखाया गया। विद्यालय नेतृत्व के लिए संवेदनशीलता आवश्यक है। सबसे पहले विचार या भावना की उत्पत्ति होना आवश्यक है। इसके बाद पहल की आवश्यकता है और इसके बाद क्रिया जरूरी है। विद्यालय नेतृत्व को चार लक्ष्यों को प्राप्त करना आवश्यक है- विद्यालय का रखरखाव, सीखने का अवसर प्रदान करना, नवाचार के लिए प्रेरित करना एवं आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति करना। विद्यालय नेतृत्व की कई भूमिकाएं हैं-स्वयं का विकास, शिक्षण अधिगम प्रक्रिया, दल का निर्माण, नवाचार, साझेदारी एवं विद्यालय प्रशासन का नेतृत्व करना। कक्षा में अधिगम में विद्यालय नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उन्होंने कहा कि प्रधानों, शिक्षकों और अन्य हित धारकों को व्यक्तिगत एवं सामाजिक गुणों से युक्त होना चाहिए। उन्हें बच्चों की देखभाल, चितन, संवेदनशीलता, अभिव्यक्ति की स्वीकृति, सहानुभूति एवं सहयोग का व्यवहार अपनाना जरूरी है। एक अनुकूल वातावरण बनाने में इन प्रवृत्तियों को अपनाना जरूरी होता है। बच्चों में सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार की भावनाएं होती हैं, उनमें असुरक्षित भावनाएं भी होती हैं लेकिन हमें उनमें सकारात्मक भावनाओं के विकास के लिए सहशैक्षिक गतिविधियों का इस्तेमाल करना चाहिए। बच्चों के साथ होने वाले दु‌र्व्यवहारों एवं उससे बचने के लिए प्रावधानों पर चर्चा की गई। प्रशिक्षक नंदलाल राम एवं जितेंद्र कुमार सिन्हा ने शिक्षार्थियों के समग्र विकास के लिए व्यक्तिगत एवं सामाजिक गुणों की आवश्यकता पर चर्चा किया।

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